(डायरी से एक और रचना )
अजीब सी ये अपनी दास्ताँ है बनी,
चंद लम्हें जिंदगी के घायल कर गए |
जीवन के दौड़ में बहुतो ही मिले,
कुछ साथी बने कुछ परे कर गए |
चार पल की ख़ुशी, जिंदगी भर का गम
ये चार पल की खुशियों से, बेदखल कर गए |
अकेला ही था, अकेला ही रहा,
साथ दिया जिसने खुद एकल कर गए |
जिन हाथों को अपना, समझा था मैंने,
वो हाथ ही हमें खाली हाथ कर गए |
दर्द ही मिला, अपनों से अक्सर,
ठीक समझा किसी ने, कुछ गलती कर कर |
अकेलेपन में कुछ जब तड़प उठे हम,
तो अपने ही हमसे, शिकवा कर गए |
वक़्त को समझने की कोशिश तो की,
पर वे लम्हें ही हमें नासमझ कर गए |
कम न कर पाया जिंदगी के दर्द,
गम के आंसूं दिल को पागल कर गए |
आंसूं न बहायें, जो गम में हमने,
तो गम को हम अपने नाराज कर कर गए |
03.08.2005
चंद लम्हें जिंदगी के घायल कर गए |
जीवन के दौड़ में बहुतो ही मिले,
कुछ साथी बने कुछ परे कर गए |
चार पल की ख़ुशी, जिंदगी भर का गम
ये चार पल की खुशियों से, बेदखल कर गए |
अकेला ही था, अकेला ही रहा,
साथ दिया जिसने खुद एकल कर गए |
जिन हाथों को अपना, समझा था मैंने,
वो हाथ ही हमें खाली हाथ कर गए |
दर्द ही मिला, अपनों से अक्सर,
ठीक समझा किसी ने, कुछ गलती कर कर |
अकेलेपन में कुछ जब तड़प उठे हम,
तो अपने ही हमसे, शिकवा कर गए |
वक़्त को समझने की कोशिश तो की,
पर वे लम्हें ही हमें नासमझ कर गए |
कम न कर पाया जिंदगी के दर्द,
गम के आंसूं दिल को पागल कर गए |
आंसूं न बहायें, जो गम में हमने,
तो गम को हम अपने नाराज कर कर गए |
03.08.2005
बहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeletevery nice sirji
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