(डायरी से सौन्दर्य रस की एक रचना )
बिजली गिराती हैं तेरी अदाएं,
ख़ुदा ने जो भेजा वो नूर हो तुम;
देख ही बस सकता, छूना भी मुश्किल,
पहुँच से सबकी बहुत दूर हो तुम |
आँखों में चमक, होंठों पे मुस्कान,
दिल में उमंग लिए सुरूर हो तुम;
देखकर तुझको यूँ लगता है ऐसे,
आसमान से उतरी कोई हूर हो तुम |
भोली छवि होगी, सोचा था हमने,
पर अलग छवि लिए इत्तफाक हो तुम;
कुदरत ने बनाया, कुछ ऐसा ही तुमको,
कह नहीं सकता कोई ख़ाक हो तुम |
अंदाज-ऐ-बयां तुमको कुछ ऐसा मिला,
दिल से निकली हुई आवाज हो तुम;
रहस्यों का सागर अपने दिल में लिए,
सबके लिए खुद ही एक राज हो तुम |
सरल नहीं हरदम, छेड़ना जिसको,
संगीत का ऐसा ही एक राग हो तुम;
छूने से जिसको, पिघल जाये पत्थर,
सचमुच में वो ठंडी आग हो तुम |
दिल में लिए कई मचलते अरमाँ,
जो तुम हो नहीं कोई और हो तुम;
मधुर स्वप्न लेकर आँखों में कई,
राह में बढ़ी, नया दौर हो तुम |
( कॉलेज में एक लड़की ने कहा कि बहुत कविता लिखते हो, मेरे ऊपर कोई कविता लिखो | मैंने फिर ये कविता लिखी | पर पढने के बाद लगा की कुछ ज्यादा हो गया, इसलिए उसे सुनाया नहीं और कहा कि मैं लिख नहीं पाया )
27.09.2004
सुन्दर प्रस्तुति--
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बहुत सुन्दर नायिका चित्रण !
ReplyDeleteनई पोस्ट काम अधुरा है
वाह क्या बात है..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना बधाई आपको ।
ReplyDeleteक्या बात है...
ReplyDeleteक्या बात है...
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ReplyDeleteउम्र इस मुकाम पर भावनाएम कुछ
ऐसी ही होती है.कल्पनाओं को पंख दे दिये.
क्या बात है जी ...खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुति
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteसरल नहीं हरदम, छेड़ना जिसको,
ReplyDeleteसंगीत का ऐसा ही एक राग हो तुम;
छूने से जिसको, पिघल जाये पत्थर,
सचमुच में वो ठंडी आग हो तुम |
बहुत सुन्दर रचना है। दोस्त भाव जगत और रागात्मकता में ज्यादा कुछ नहीं होता है सुना देना था रचना। किसे अच्छी नहीं लगती अपनी देह यष्टि की स्तुति ?
ohh suna diye hote sahab.......
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