एक वो जमाना था कभी, आज ये एक जमाना है,
तब पास रहने की इच्छा थी, अब दूर रहने का बहाना है..
अपनो के नजदीक थे तब, अब रिश्ते बस निभाना है,
तब वक्त बिताना भाता था, अब देख नजर चुराना है..
खुशियाँ ही तब चाहत थी,अब काम-दाम पे निशाना है,
तब रिश्तों को चमकाना था, अब बस कैरियर को बनाना है..
अहम थे तब जज्बात सभी, अब बना बनाया ढहाना है,
मिल जुल कर तब रहना था, अब अपनी डफली बजाना है..
तब आँख बंद हो भरोसा था, अब हर बात पे आजमाना है,
कथनी तब कुछ और ही थी, अब करनी अलग दिखाना है..
काश जो था तब फिर अब भी हो, फिर वैसे सब कुछ सजाना है..
हर अपनों को फिर जोड़ना है, हर रुठे हुए को मनाना है.
धन्यवाद आपका ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30-07-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2052 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आभार
Deleteहर जड़ वस्तु का आनंद अस्थाई होता है असली आनंद प्रेमानंद (कृष्णा प्रेम )हैं ब्रह्मानंद हैं
ReplyDeleteवक्त बदलता है..वक्त के साथ सब बदलता है..
ReplyDeleteबहुत नेक ख़याल हैं आपके पर जरा मुश्किल लगते हैं वही आपकी भाषा में तब और अब
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