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Sunday, December 23, 2012

हाँ, मुद्दा यही है


हाँ,
मुद्दा यही है,
पर क्या ये सही  है,
वास्तविकता का कोई अंश है,
या सब ढपोरशंख है,
एक तरफ चीर हरण है,
फिर अनशन आमरण है,
क्या वाकई हृदय का जागरण है ?
हाँ, तावा वस्तुतः गरम है,
कई सेंक रहे रोटी नरम है,
चाह सबकी एक नई दिशा है,
पर दिखती दूर-दूर तक निशा है |
ओज है, साहस है,
पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
चोर ही चौकीदार है,
कौन वफादार है ?

Friday, December 21, 2012

संकलन-2

सबकी अपनी राय है, सबके अपने तर्क |
कौन पास कौन फेल है, किसमे कितना फर्क ||

एक अलग है अनुभव इसका, एक अलग एहसास |
एक अलग है रिश्ता शादी, रहता दिल के पास ||

सब रिश्तों को तोड़ता, होता ऐसा उधार |
आदत जिसको लग जाती, करता बारम्बार ||

आशा की बस एक किरण, हृदय को देती संचार ।
मन को देती हौसला, आगे बढ़ने का विचार ।।

आधुनिकता की दौड़ में, खो रहा सर्वस्व ।
चोटिल होती प्रकृति, अनैतिकता का वर्चस्व ।।

भींगा भींगा ये मन है, भींगी उनकी याद ।
एक अदद सानिध्य मिले, रब से यही फ़रियाद ।।

सही दिशा में न हो तो, मेहनत है बेकाम ।
किस्मत का रोना रोते, कुछ न बनता काम ।।

पूजते हैं हम नारी का, कई विभिन्न स्वरुप ।
जन्म पूर्व ही मारते, नारी का प्रथम जो रूप ।।

गीत, कविता होते हैं, हृदय के उदगार ।
किसी के रोके रुके नहीं, भावनाओं की धार ।।

सुख अलग ही देते हैं, रिश्ते-नाते प्यार ।
जीवन को चल रखे सदैव, अपनत्व की बौछार ।।

नर रूप में घूम रहे, आज कई पिशाच |
मर रही है मानवता, व्याघ्र रहे हैं नाच ||

झेल रहे हैं आम जन, नेता रोटी सेंके |
कानून साथ देता उसका, जो रुपैया फेंके ||

Wednesday, December 19, 2012

चुनौती वक़्त के साथ चलने की

देखो बू आ रही है ये दुनिया जलने की,
आज राह देखता सूरज शाम ढलने की,
जिंदगी हर एक की यहाँ पशोपेश में "दीप",
आज एक चुनौती है वक़्त के साथ चलने की |

बिखर रही मानवता माला से टूटे मोती जैसी,
रंग दिखा रही हैवानियत जाने कैसी-कैसी,
तार-तार होती अस्मिता आज सरेआम ऐ "दीप",
नैतिकता और सभ्यता की हो रही ऐसी-तैसी |

दो पल का शोक मनाने को हर कोई है खड़ा,
सच्चाई और सहानुभूति की बात करने को अड़ा,
हैवान तो है बैठा हम सबके ही बीच ऐ "दीप",
पूरा का पूरा समाज ही आज है हासिये में पड़ा |

कीमत जिंदगी और इज्ज़त की दो पैसे भी नहीं,
मौत का ही मंजर तो दिखता है अब हर कहीं,
एक-दूसरे को लूटने में ही लगे हैं सभी ऐ "दीप",
कौफजदा-सा होकर सब जी रहे हैं वहीं के वहीं |

Sunday, December 16, 2012

गम लिया करते हैं

दाव में रखकर अपनी जिंदगी को हर वक़्त हर घड़ी,
सहम-सहम के लोग आज ये जिंदगी जिया करते हैं |

सौ ग्राम दिमाग के साथ दस ग्राम दिल भी नहीं रखते लोग,
विरले हैं जो आज भी हर फैसला दिल से किया करते हैं |

बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |

एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |

अपनी अपनी कर के जी लेते हैं जिंदगी किसी तरह,
स्वार्थ की बनी चाय ही सब हर वक़्त पिया करते हैं |
अब तो ये चाँद भी आता है लेकर सिर्फ आग ही आग,
फिर क्यों सूरज से शीतलता की उम्मीद किया करते हैं |

सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |

अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |

Wednesday, December 12, 2012

बारह, बारह, बारह


बारह, बारह, बारह का, अजब गज़ब संयोग |
यादगार सबके लिए, न हो कोई वियोग ||

कोई शादी कर रहा, कहीं जन्म की तैयारी |
शुरू करे कोई नए काम, कोई करे ख़रीदारी ||

जीवन में उमंग रहे, खुशियाँ रहे हर पल |
सब कोई बाँटे मुस्कान, हँसते रहो पल-पल ||

सफल सबके काम हो, यही करूँ मैं कामना |
हे ईश्वर आशीष दे, हाथ सबका थामना ||

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-प्रदीप