सोचा की इस बार आज़ादी का जम कर जश्न मनाऊँ,
तभी ख्याल आया देश की मौजूदा हालात का,
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
भागते हुए निहत्थे किसान कहीं गोलियां खा रहें हैं,
रैलियों में निहत्थे लोग कहीं लाठियां खा रहें हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
रैलियों में निहत्थे लोग कहीं लाठियां खा रहें हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
मौलिक अधिकारों का भी यहाँ हनन हो रहा है,
रोज नए घोटालेबाजों का जनम हो रहा है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
महंगाई इतनी है की लोग दो जून की रोटी को तरसते हैं,
नेताओं और रसूखदारों के यहाँ धन ही धन बरसते हैं;
नेताओं और रसूखदारों के यहाँ धन ही धन बरसते हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
अमर शहीदों की गाथा याद करके उन्नत हो जाता है भाल मेरा,
अपने चुने हुए लोगों के करतूत के ख्याल से शर्म से झुक जाता है भाल मेरा;
अपने चुने हुए लोगों के करतूत के ख्याल से शर्म से झुक जाता है भाल मेरा;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
हर एक मुद्दे पर नेताओं की राजनीती भारी है,
नियम-कानून कुछ नहीं हर एक नीति हारी है;
नियम-कानून कुछ नहीं हर एक नीति हारी है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
मानव आज मानवता के मूल्यों को कहाँ बुझ रहा है,
स्त्रियों का वर्ग हर कोने में असुरक्षा से जूझ रहा है;
स्त्रियों का वर्ग हर कोने में असुरक्षा से जूझ रहा है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?
यह अंतर्द्वंद मेरे नहीं हर एक के मन में चल रहा है,
किसकी खुशियाँ मनाऊँ और किसका गम करूँ, हर एक के मन में चल रहा है;
किसकी खुशियाँ मनाऊँ और किसका गम करूँ, हर एक के मन में चल रहा है;
क्या इसी अंतर्द्वंद का जश्न मनाऊँ?
क्या इनका जश्न मनाऊँ?