मॉनसून की यारों;
घटायें हर तरफ अब
घिरने लगी हैं |
हर वर्ग हर शख्स
था इंतज़ार में इसके;
मौसम के कोप से
निजात था पाना |
अमीर थे सोचते
कि मौसम होगा ठंढा;
ए.सी. नहीं चलेगा
तो बिजली बिल बचेगा |
गरीब था सोचता
कि बारिश जो होगी;
बाल-बच्चे परिवार
कुछ चैन से रहेंगे |
किसान का सर्वस्व तो
मॉनसून पे ही निर्भर;
जो बारिश न हुई तो
सब कुछ लूट जायेगा |
जो लूटने में लगे हैं
हर माह उनका मॉनसून है;
इन्तजार तो हिस्सा है
बस आम जनता का ही |
बारिश की बूंदें अब
भिगोने है लगी;
प्यास हर किसी की
है मिटाने में लगी |
झर-झर करती बूंदें
खुशहाल करती जिंदगी;
हर दिल को हर्षाती
दस्तक ये मॉनसून की |