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Friday, April 18, 2008

याद

एक आग सी दील मी लगती है, एक तीर जीगर में चलता है;
जब याद इसी की आती है, एक दर्द सा दील में उठता है।

सिर्फ एक झलक बस पाने को, ये नैन तरसने लगते हैं;
ये हालत उसे बताने को ये होंठ तड़पने लगते हैं।

आहट उसकी सुनने को ये कान फड़कने लगते हैं;
और सोच के उसकी बातों को ये आँख बरसने लगते हैं।

ये जाती नहीं जब आती है, बस आती है और आती है;
बेखबर करके दुनीया से, ये याद बहुत सताती है।

जब याद की बदरी छाती है, हर शमा धुंधला होता है;
हर रात ही काली होती है, जब याद कीसी की आती है।

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