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Wednesday, April 30, 2008

बेवफा

(ये कविता उन भाइयों के लिए है जिसे प्यार के बदले में बेवफाई मिली, ये उनके दिल की आवाज को बयां कर रहा है।)

समझा था मैंने तुझे वफ़ा की देवी,
पर बेवफाई की जीवित मूरत हो तुम,
सच है की तुम बहुत ही हसीं हो,
पर दिल से बहुत बदसूरत हो तुम।

कदर अपने दिल की गवाँ ली मैंने,
प्यार किया तुमसे, सोचा मुकद्दर हो तुम;
न समझी तुमने दिल की हालत को मेरी,
नासमझ कहूँ या बिल्कुल बेकदर हो तुम।

दिल्लगी को तेरी दिल की लगी समझा,
संगदिलों की टोली में भी सिरमौर हो तुम;
अलग ही लिया तेरी इशारों का मतलब,
नासमझ हूँ मैं पर कुछ और हो तुम।

दिल टूटने से पहले ही आवाज आ गई,
बर्बाद किया, कहती हो मेरा यार हो तुम?
आग तो लगी है इस दिल में बहुत,
पर कैसे कहूँ मेरा दिलदार हो तुम।


सोचता हूँ छोड़ दूँ यूं घुट-घुट कर जीना,
पर रास्ते की सबसे बड़ी दीवार हो तुम;
जानता हूँ तू बेमुरब्बत है लेकिन, भूलूँ कैसे?
आख़िर पहला प्यार हो तुम।


हंसती हो तुम, जब जब रोता हूँ मैं,
दोस्त तो हो नहीं शायद रकीब हो तुम;
ना मिलेगा मुझसा फ़िर चाहने वाला कोई,
ठुकराया है मुझको बदनसीब हो तुम।

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