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Thursday, September 1, 2011

काव्य का संसार


अनुपम, अक्षय होता है ये काव्य का संसार,
अखिल जगत में अकथ, अकाय और निराकार |

साहित्य की यह विधा अनूठी, पद्य भी कहाय,
हृदय से उत्थित, सरस शब्दों में उकेरा जाय |

भावों की ये मंजूषा, मञ्जीर, मधुर मानिक,
मुतक्का साहित्य का दृढ, मनन करो तनिक |

अमरसरित सी पावन, जनश्रुत ये अपार,
अद्भूत, असम, अनुरक्त है ये काव्य का संसार |

(शब्दार्थ: मञ्जीर=मनोहर, मुतक्का=खम्भा,
अमरसरित=गंगा, जनश्रुत=प्रसिद्द, अनुरक्त=प्रेम युक्त )

स्मरण करो सिया राम का

स्मरण करो सिया राम का,
स्मरण करो सिया राम का,
कृपा सिन्धु गुण धाम का;
उल्टा जपके भी तर जाते,
पावन से उस नाम का |
स्मरण करो सिया राम का |

घट-घट में वे बसने वाले,
श्रद्धा सुमन वे देने वाले;
शिव भी जिनको जपते हैं,
पुरुषोत्तम श्रीराम का |
स्मरण करो सिया राम का |

असुरों का वध करने वाले,
धरनि का दुःख हरने वाले,
हनुमान जस भक्त हैं जिनके
जानकीनाथ भगवान का |
स्मरण करो सिया राम का |

शबरी के फल खाने वाले,
उच्च चरित दर्शाने वाले;
भरत, लखन सम भ्रात जो पाए,
रघुकुल नायक राम का |
स्मरण करो सिया राम का |

धनुष बाण जिन हस्त को सोहे,
अनुपम रूप जगत को मोहे;
त्रिलोकी होकर भी मानव,
बन गए उस मतिमान का |
स्मरण करो सिया राम का |

Tuesday, August 30, 2011

गलती किसकी ?

समझ के भेजा था तुझे हमदर्द अपना,
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?

जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?

तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?

जगी है अब जनता और दागे चाँद सवाल,
तेरे कर्मों ने ही जगाया तो ये गलती किसकी ?
मांग रही हक़ अपना और तुझे देना भी होगा,
तुने नाफ़रमानी की है तो ये गलती किसकी ?

Saturday, August 27, 2011

पूज्य दादाजी को श्रद्धांजलि


मेरे पूज्य दादाजी को १७वी पुण्य तिथि में सादर श्रद्धांजलि |

चरणों में आपके सर नवाते रहेंगे,
संस्कारों को आपके निभाते रहेंगे,
गुजारिश है आपसे, सदा कृपा बनाये रखना,
हृदय से सुमन भेंट हम चढाते रहेंगे |

करता हूँ अर्पित मैं श्रद्धांजलि आपको,
परमात्मा में विलीन रहे आत्मा आपकी;
मोक्ष हो, मोह-माया का अंश भी न हो,
नश्वर जग से सुदूर रहे जीवात्मा आपकी |

Wednesday, August 24, 2011

सुनो ऐ सरकार !!

भ्रष्टाचारियों की हुई भरमार,
त्रस्त कर गया जब भ्रष्टाचार,
अन्ना ले आये गाँधी का अवतार,
जाग गया युवाओ का संसार,
जनता चली संग करने आर या पार;
माँगे उठाई हमने असरदार,
पर मौन है बैठा मन"मौन" सरदार,
कर्महीन ये निकम्मी सरकार;
आफत में पड़े देश के गद्दार,
क्या होगा अब सोच रहे मक्कार,
लूट जो जायेगा उनका बाजार;
पर हमे है देश से सरोकार,
करते रहेंगे वार पे वार,
जब तक जनलोकपाल न ले आकार;
अहिंसा ही है हमारा आधार,
दिखायेंगे हम एकता अपार;
सुन लो ऐ सोई सरकार !
न बनो भ्रष्टाचार का पहरेदार,
मान लो माँगे और समझ लो सार |

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