जिंदगी भी यहाँ साँस लेने को तरसती है,
खुशी भी खुद नाखुश है,
गरीबों को महँगाई मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
हौसले वाले भी पस्त पड़े हैं,
साहस भी भयभीत है,
हर राह बड़ा ही दुष्कर है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
जीत स्वयं हारा खड़ा है,
सरकार ही लाचार है,
हर तरफ से बस भय मिला है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
महँगाई डायन बनी हुई है,
सुकून ही स्वयं बेचैन है,
दो रोटी गर मिलती नहीं है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
व्यवस्था ही अव्यवस्थ है,
स्वस्थता पूरी अस्वस्थ है,
मौसम की भी मार लगी है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
आँसुओं का सागर भी सुखा पड़ा है,
खुशी भी खुद नाखुश है,
गरीबों को महँगाई मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
हौसले वाले भी पस्त पड़े हैं,
साहस भी भयभीत है,
हर राह बड़ा ही दुष्कर है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
जीत स्वयं हारा खड़ा है,
सरकार ही लाचार है,
हर तरफ से बस भय मिला है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
महँगाई डायन बनी हुई है,
सुकून ही स्वयं बेचैन है,
दो रोटी गर मिलती नहीं है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
व्यवस्था ही अव्यवस्थ है,
स्वस्थता पूरी अस्वस्थ है,
मौसम की भी मार लगी है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
आँसुओं का सागर भी सुखा पड़ा है,
लाश बनके सब चल रहे हैं,
जिंदगी गर मिलती नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
गरीबी भी शर्मिंदा है,
लोग किसी तरह जिंदा हैं,
हरपल की असुरक्षा मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।
कोई नहीं जो समस्या देखे,
सब अपना हित साधते है,
आम जन को गर राहत नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।