मेरे साथी:-

Saturday, December 8, 2012

संकलन-1

जब जागो तुम नींद से, जानो तभी सवेरा है ।
जाग के भी गर आँख बंद, चारो तरफ अँधेरा है ।।

तुम जो आये है खिला, मन का ये संसार ।
चहक रहा है अंग-अंग, आया है बहार ।।

ऑक्टोपस हैं हर जगह, चूस रहें हैं खून।
मानव बीच हरवक्त छुपे, अक्टूबर या जून ।।

आहट है ये मौत की, बूझ सको तो बूझ ।
जो इसको है बूझ गया, रहा स्वयं से जूझ ।।

बेटियाँ महकाती हैं, घर-आँगन सब एक-सा ।
चंचल मन रिझाता सबको, हृदय होता नेक-सा ।।

झिझक ये कैसी पूछता, आईना आधी रात ।
आँखे खुद ही बोलती, हर राज की बात ।।

रिश्तों की जमीन को, सींचों तुम बस प्यार से ।
अटूट-सा रिश्ता बन जाता, दोस्त हो या यार से ।।

एक तरफ हैं पूजते, बना के दुर्गा काली ।
कोख में ही हैं मारते, मानवता को गाली ।।

जीवन स्त्री का नहीं, परिचय की मोहताज |
वो समाज का कल है, वो समाज का आज ||

महिलाएं हैं हर जगह, पांव रही पसार ।
हर क्षेत्र में जम रहीं, हर और विस्तार ।।

जिंदगी ही पूछ रही, जीवित हैं क्या हम |
श्वास लेना ही नहीं, जीवन का है मर्म ||

रे मन गाओ गीत तुम, कलियों संग मुसकाओ |
दुनिया ही जब डोल रही, तुम भी संग में डोल जाओ ||

याद आई है फिर, तेरी मेरी वही कहानी |
गुजरे हुए वो शाम सुहाने, रेत पे बनी निशानी ||

नोक-झोंक तो अंग हैं, प्यार का, उद्गार का |
रिश्तों को सुदृढ़ करे, खुशनुमा संसार का ||

मेरे मन न हार तू, डरना नहीं तू जान लें |
पीड़ा नहीं है व्यर्थ मिलते, सत्य को तू पहचान ले ||

वक्त का तकाजा है, रिश्तों का हो आकलन |
बही खाते में लिखे, कहता है ये आज मन || 

पैसे और शराब से, मिल जाते हैं वोट |
लोकतन्त्र में आज कल, उड़ते नोट पे नोट ||

Saturday, December 1, 2012

तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए

बेपर्दा तो अब हम सरेआम हो गए,
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |

सम्मोहन विद्या तूने ऐसी चलाई,
दो पल में हम तेरे गुलाम हो गए |

छोड़ दिया खाना जब याद में तेरे,
दो हफ्तों में ही चूसे हुए आम हो गए |

चुराया था तूने जबसे चैन को मेरे,
रात सजा और दिन मेरे हराम हो गए |

जुदाई तेरी मुझसे जब सही न गई,
खाली कितने जाम के जाम हो गए |

गम में तेरे कुछ इस कदर रोया,
हृदय के भीतर कोहराम हो गए |

सोचता रहा मैं दिन-रात ही तुझे,
खो दिया सबकुछ, बेकाम हो गए |

समझा था मैंने, तुझे सारे तीरथ,
सोचा था तुम ही मेरे धाम हो गए |

पता नहीं क्या-क्या सपने सँजो लिए,
फोकट में ही इतने ताम-झाम हो गए |

चक्कर में तेरे जिस दिन से पड़ा,
उल्टे-पुल्टे मेरे सारे काम हो गए |

फेसबुक में देखा तो हूर थी लगी,
मिला तो अरमाँ मेरे धड़ाम हो गए |

कस जो लिया तूने बाहों में अपने,
लगने लगा जैसे राम नाम हो गए |

एक बार तो मुझको ऐसा भी लगा,
चाहतों के मेरे क्या अंजाम हो गए |

टॉप-अप जो तेरा बार-बार करवाया,
कपड़े तक भी मेरे नीलाम हो गए |

चाहकर तुझको शायद पाप कर लिया,
नरक में जाने के इंतजाम हो गए |

चबाया है तूने ऐसे प्यार को मेरे,
प्यार न हुआ, काजू-बादाम हो गए |

आंसुओं से तूने कुछ ऐसे भिगाया,
बार बार मुझको जुकाम हो गए |

घेरे से छुटकर अब लगता है ऐसे,
आम के आम, गुठलियों के दाम हो गए |

बेपर्दा तो अब हम सरेआम हो गए,
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |

Wednesday, November 21, 2012

गुमशुदा

रहता है सबके आस-पास ही
फिर भी न जाने कैसे
हो ही जाता है सबका
कभी न कभी कुछ न कुछ-
गुमशुदा |

इस भेड़ चाल के दौर में,
सब कुछ है गुमशुदा;
इसका भी कुछ गुमशुदा,
उसका भी कुछ गुमशुदा |

किसी का ईमान गुमशुदा,
किसी का जहान गुमशुदा;
गुमशुदा है अपने ही अंदर की अंतरात्मा,
जीवित होके भी जान गुमशुदा |

जीवन से बहार गुमशुदा,
किसी का संस्कार गुमशुदा;
गुमशुदा है हृदय के अंदर का बैठा वो भगवान,
तलवार तो है पर धार गुमशुदा |

मतिष्क से एहसास गुमशुदा,
हृदय से जज़्बात गुमशुदा;
गुमशुदा है मानव के अंदर की मानवता,
जुबान तो है ही पर मिठास गुमशुदा |

रिश्तों से विश्वास गुमशुदा,
अपनों पर से आस गुमशुदा;
गुमशुदा है पहले जो होता था परोपकार भाव,
एक दूजे के हृदय में आवास गुमशुदा |

नहीं है किसी को फिकर,
नहीं है किसी को खोज;
जो गुम हो गया वो गुम ही रहे,
जो एक बार गया वो सदैव के लिए-
गुमशुदा |

Monday, November 12, 2012

दीपों की आवली सजाओ

जहाँ को जगमग करते जाओ,
खुशियों की सौगात है आई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

श्री कृष्ण ने सत्यभामा संग नरकासुर संहार किया,
सोलह हज़ार स्त्रियों के संग इस धरा का भी उद्धार किया ।

असुर प्रवृति के दमन का
उत्सव आज मनाओ भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

रक्तबीज के कृत्य से जब तीनो लोकों में त्रास हुआ,
माँ काली तब हुई अवतरित, दुष्ट का फिर  तब नाश हुआ ।

शक्ति स्वरुपा माँ काली व,
माँ लक्ष्मी को पूजो भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

लंका विजय, रावण मर्दन कर लखन, सिया संग राम जी आये,
अवध का घर-घर हुआ तब रोशन, सबके मन आनंद थे छाये ।

उस त्योहार में हो सम्मिलित,
बांटों, खाओ खूब मिठाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

पवन तनय का आज जनम दिन, कष्ट हरने धरा पर आये,
सेवक हैं वो राम के लेकिन, सबका कष्ट वो दूर भगाए ।

नरक चतुर्दशी, यम पूजा भी,
सब त्यौहार मनाओ भाई,
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

मर्यादित हो और सुरक्षित, दीवाली खुशियों का बहाना,
दूर पटाखों से रहना है, बस प्रकाश से पर्व मनाना ।

अपने साथ धरती भी बचाओ,
प्रदुषण को रोको भाई;
दीपों की आवली सजाओ,
आज दीवाली आई भाई ।

(सभी को दिवाली, काली पूजा एवं लक्ष्मी पूजा की हार्दिक शुभकामनायें । आप सबका दिन सुरक्षित और मंगलमय हो )

Wednesday, November 7, 2012

बोलती आँखें

अकसर देखा है,
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कुछ कहते कहते 
लड़खड़ा जाती है जिह्वा,
हृदय के भाव
आते नहीं अधरों तक ।
पर 
ये बोलती आँखें 
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो 
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं 
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए 
शब्दों का भण्डार ,
भाषा इनकी है 
हर किसी से भिन्न ।
जो बातें 
अटक जाती हैं
अधरों के स्पर्श से पूर्व,
उन्हें भी ये 
बयाँ करती बखूबी;
ये बोलती आँखें 
कहती हैं सब कुछ,
कोई समझ है जाता 
को अनभिज्ञ रह जाता,
पर बतियाना रुकता नहीं,
हर भेद उजागर करती
ये बोलती आँखें ।


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-प्रदीप