अकसर देखा है,
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कुछ कहते कहते
लड़खड़ा जाती है जिह्वा,
हृदय के भाव
आते नहीं अधरों तक ।
पर
ये बोलती आँखें
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए
शब्दों का भण्डार ,
भाषा इनकी है
हर किसी से भिन्न ।

जो बातें
अटक जाती हैं
अधरों के स्पर्श से पूर्व,
उन्हें भी ये
बयाँ करती बखूबी;
ये बोलती आँखें
कहती हैं सब कुछ,
कोई समझ है जाता
को अनभिज्ञ रह जाता,
पर बतियाना रुकता नहीं,
हर भेद उजागर करती
ये बोलती आँखें ।
खुदा जाने मेरा क्या वजन है उनकी निगाहों में
ReplyDeleteसुना है आदमी को वो नजर में तौल लेते है,,,,,
RECENT POST:..........सागर
waah bahut khub
ReplyDeleteदिनों दिन लेखनी में सुधार हो रहा है ...:)))
खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteपठनीय उम्दा रचना |
ReplyDeleteआशा
जो जुबां न कह सके कह देती हैं आँखें...सुंदर रचना!!
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteबिल्कुल सच.
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ReplyDeleteये बोलती आंखें
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए
शब्दों का भण्डार
बहुत सुंदर !
बहुत खूबसूरत !
वाऽह ! क्या बात है !
ई. प्रदीप कुमार साहनी जी
सुंदर भाव ! सुंदर शब्द !
खूबसूरत रचना !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
सुंदर अभिव्यक्ति
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