मेरे साथी:-

Wednesday, November 7, 2012

बोलती आँखें

अकसर देखा है,
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कुछ कहते कहते 
लड़खड़ा जाती है जिह्वा,
हृदय के भाव
आते नहीं अधरों तक ।
पर 
ये बोलती आँखें 
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो 
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं 
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए 
शब्दों का भण्डार ,
भाषा इनकी है 
हर किसी से भिन्न ।
जो बातें 
अटक जाती हैं
अधरों के स्पर्श से पूर्व,
उन्हें भी ये 
बयाँ करती बखूबी;
ये बोलती आँखें 
कहती हैं सब कुछ,
कोई समझ है जाता 
को अनभिज्ञ रह जाता,
पर बतियाना रुकता नहीं,
हर भेद उजागर करती
ये बोलती आँखें ।


9 comments:

  1. खुदा जाने मेरा क्या वजन है उनकी निगाहों में
    सुना है आदमी को वो नजर में तौल लेते है,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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  2. waah bahut khub
    दिनों दिन लेखनी में सुधार हो रहा है ...:)))

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  3. पठनीय उम्दा रचना |
    आशा

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  4. जो जुबां न कह सके कह देती हैं आँखें...सुंदर रचना!!

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  5. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

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  6. ये बोलती आंखें
    कभी चुप नहीं होती ,
    खुली हो तो
    कुछ कहती ही है;
    अनवरत करती हैं
    भावनाओं का उद्गार,
    आवश्यक नहीं इनके लिए
    शब्दों का भण्डार

    बहुत सुंदर !
    बहुत खूबसूरत !
    वाऽह ! क्या बात है !

    ई. प्रदीप कुमार साहनी जी

    सुंदर भाव ! सुंदर शब्द !
    खूबसूरत रचना !

    …आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
    शुभकामनाओं सहित…

    ReplyDelete
  7. सुंदर अभिव्यक्ति

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