सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज सी आती है,
मन थोड़ा भयभीत पर एक खौफ जगा जाती है।
हृदय उद्वेलित हो उठता है, हर रोम उसक सा जाता है,
ये कौन-सी ऐसी विपदा है या कोई अनर्गल बातें है,
ये कौन-सा ऐसा भय है जो दिकभ्रांत कर जाता है।
ये आवाज नहीं बस खौफ है जो अंतर्मन में व्याप्त है।
जोश विडंबित बैठा है और सुस्त भुजायें सोई हैं।
काल पे कोई जोर नहीं,ये काल का ही कमाल है;
ये जाल बड़ा ही उत्कृष्ट है,है ये समय का आतंक।
मन थोड़ा भयभीत पर एक खौफ जगा जाती है।
हृदय उद्वेलित हो उठता है, हर रोम उसक सा जाता है,
ये कौन-सी ऐसी विपदा है या कोई अनर्गल बातें है,
ये कौन-सा ऐसा भय है जो दिकभ्रांत कर जाता है।
ये आवाज नहीं बस खौफ है जो अंतर्मन में व्याप्त है।
जोश विडंबित बैठा है और सुस्त भुजायें सोई हैं।
काल पे कोई जोर नहीं,ये काल का ही कमाल है;
ये जाल बड़ा ही उत्कृष्ट है,है ये समय का आतंक।
है काल का ये रौद्र रूप एक अदना मानव क्या करे?
भयाक्रांत हो निर्जीव-सा माटी का मूरत क्या करे?
हर 'लम्हा' इसके सैनिक हैं, हर 'कष्ट' ही इसका वार है।
भाग्योदय का सोचे कैसे? ये भाग्य भी इसके वश में है।
है घेर रखा चहुँ ओर से, ये बड़ा विलक्षण पहरा है।
हर एक क्षण आतंकित है, पल-पल डर से ठहरा है।
'सोच' तो कुंठित हो चुका, और जंग लगी है 'समझ' में।
ये दोष नहीं अपना कोई, ये भाग्य और काल का चाल है;
ना हो सकता कुछ भी भला, है ये समय का आतंक।
(सब कहते है "टाईम अच्छा नही चल रहा यार"। उसी स्थिति का मैने चित्रण करने की कोशिश की है।)
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