मेरे साथी:-

Wednesday, February 10, 2016

प्रिये क्यों

तनिक विलंब जो हुई है हमसे,
मुख मंडल यूँ क्षीण प्रिये क्यों,
अति लघु सी एक बात पे तेरे,
नैन यूँ तेज विहीन प्रिये क्यों ?

प्रेम प्रतीक्षा का सुख हमने,
भोग लिया है आज परस्पर,
जैसे तुम अधीर यहाँ थी,
मैं भी न धरा धीर निरंतर ।

मधुर मिलन की इस बेला में,
मन ऐसे मलीन प्रिये क्यों,
सुखदायक क्षण में ऐसे यूँ,
हृदय ये ऐसा दीन प्रिये क्यों ?

आलिंगन आतुर भुज दोनो,
मौन मनोरथ में हैं लागे,
अभिलाषा तेरी भी ऐसी,
क्यों न फिर आडंबर भागे ?

अधर हैं उत्सुक, करें समर्पण,
पद तेरे गतिहीन प्रिये क्यों ?
हृदय दोऊ हैं एक से आकुल,
अब भी लाज अधीन प्रिये क्यों ?

नयन भाव विनिमय को बेकल,
अधर सुस्थिर क्या है माया,
तू मुझमे निहित प्रिये है,
और मुझमे तेरी ही छाया ।

श्वास मध्य न भिन्न पवन हो,
प्रेम में न हो लीन प्रिये क्यों,
अंतर्मन भी एक हो चले,
खो न हो तल्लीन प्रिये क्यों ?

-प्रदीप कुमार साहनी

शायरी अगर है करनी, प्यार कर लो

शायरी अगर है करनी, प्यार कर लो,
शिद्दत से हुश्न-ए-दीदार कर लो ।

महबूब को पहले दिल से परख लो,
दिल तोड़ने की शर्त खुद ही रख लो ।

ये इश्क मुआ ऐसा, सबकुछ करा देगा,
कामयाब न हो पर शायर बना देगा ।

आँखों पे उसकी शायरी करो तुम पूरी,
पुल बाँधों तारीफ के, ये पाठ है जरुरी ।

मिलन पे लिखो और लिखो जब जुदाई,
हर अदा पे लिखो, लिखो जब ले अँगड़ाई ।

कलम में तेरे उस वक्त आयेगा धार,
दिल टूट जायेगा, तब शायरी में निखार ।

फिर क्या, शायरी की तब आयेगी बाढ़,
हर लफ्ज होगा तेज, हर पंक्ति होगी गाढ़ ।

टूटा हुआ ये दिल इस कदर सदा देगा,
हर लफ्ज बनेगी शायरी जब यार दगा देगा ।

बेवफाई और दर्द पे करो नज्म का ईरादा,
आह पे, कराह पे वाह वाह होगी ज्यादा ।

सनम न रहे पर शायर होगे तब पूरे,
दिल के जज्बात लिखो, रह गए जो अधूरे ।

मुकम्मल इश्क न मिला, तो शायरी ही करो,
मुशायरे की बढ़ाओ शान और डायरी ही भरो ।

शायरी अगर है करनी तो ये नुस्खा है नायाब,
चुन ही लो महबूब को, इश्क करो जनाब ।

प्रदीप कुमार साहनी

Tuesday, February 9, 2016

वीर लड़ाका तुझे नमन है

हे वीर लड़ाका तुझे नमन है,
लाल भारती तुझे नमन है ।

हर मुश्किल से लड़ लेते हो,
शौर्य सहित सब सह लेते हो ।
दुश्मन को हुँकार दिखाते,
कैसी भी दशा में रह लेते हो ।

युद्ध स्थल ही तेरा चमन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

दुश्मन से हो देश बचाना,
या बाढ़ से हमे बचाना,
प्राकृतिक विपदा हो कोई,
तुझको बस आता है बचाना ।

तुझसे ही फैला ये अमन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।


है आतंक से लोहा लेते,
सीमा पर भी सुरक्षा देते,
बर्फीले धरती पर भी तो,
भारत माँ की लाज बचाते ।

वतन परस्ती तेरा लगन है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

अपना सुख तुझे याद कहाँ है,
जोखिम से भरा तेरा जहाँ है,
भारत को परिवार बनाया,
परिजन को भी त्यागा यहाँ है ।

न्योच्छावर तूने किया जनम है,
वीर लड़ाका तुझे नमन है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Monday, February 8, 2016

यादों में तेरे दिन गुजर जाता रहा है

भीड़ में रहकर भी वास्ता है तन्हाई से,
यादों में तेरे दिन गुजर जाता रहा है ।

तू खिलखिलाती रही है, मैं मुस्कुराता रहा हूँ,
मुस्कुराहट का सबब दिल बताता रहा है ।

आँखें बंद कर अकसर यादें टटोलता हूँ मैं,
तू आती नहीं है, और ये जाता रहा है ।

रुसवाई की शिकायत क्या करोगी मुझसे,
प्यार मेरा खुद रुसवा कराता रहा है ।

मुफलिसी का आलम अब पुछो नहीं हमसे,
मैं जीतता रहा हूँ, ये हराता रहा है ।

चराग-ए-ईश्क लेकर, हूँ आगे मैं आया,
जल यादों का दिया यूँ सताता रहा है ।

इस हुश्न पर तेरे, मैं कुर्बान तो हो लूँ,
पर ईश्क ये नामुराद यूँ रुकाता रहा है ।

रहनुमा-ए-ईश्क कभी बनना नहीं है मुझको,
प्यादा बनने की चाह दिल लुभाता रहा है ।

दूर तू मुझसे,यूँ जाती रही हर वक्त ही,
दिल कमबख्त सपनो में घर बसाता रहा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

कवि की मनोदशा

एक कवि हूँ मैं,
सदैव ही उपेक्षित,
सदैव ही अलग सा,
यूँ रहा हूँ मैं ।

पता नहीं पर क्यों,
सब भागते हैं मुझसे,
हृदय की बात बोलूँ,
तिरस्कार है होता ।

कविता ही दुनिया,
कविता ही भावना,
कविता ही सर्वस्व,
मेरा भंडार है यही ।

छंद मेरे कपडे,
अलंकार मेरे गहने,
रचना ही है भोजन,
मेरा संसार यही है ।

भावनाएँ अकसर बहकर,
कविता में है ढलती,
फिर भावनाओं का मेरे,
यूँ बहिष्कार क्यों है ।

क्यों नहीं सब सुनते,
खुले दिल से कविता,
हठ कर कर सबको,
कब तक सुनाता जाऊँ ।

काव्य ही जब धर्म है,
कविता ही तो कहुँगा,
सुनने को तुझे आतुर,
कैसे बनाता जाऊँ ।

क्यों नहीं समझते,
कृपा है माँ शारदे की,
मैं भी बहुत खाश हूँ,
एक कवि हूँ मैं ।

हाँ मैं कवि हूँ,
कविता ही सर्वस्व है,
देखो भले जिस भाव से,
पर हाँ मैं कवि हूँ ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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