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Wednesday, January 27, 2016

कैसा तेरा प्यार था

(तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा)

कैसा तेरा प्यार था ?
कुंठित मन का वार था,
या बस तेरी जिद थी एक,
कैसा ये व्यवहार था ?

माना तेरा प्रेम निवेदन,
भाया नहीं जरा भी मुझको,
पर तू तो मुझे प्यार था करता,
समझा नहीं जरा भी मुझको ।

प्यार के बदले प्यार की जिद थी,
क्या ये कोई व्यापार था,
भड़क उठे यूँ आग की तरह,
कैसा तेरा प्यार था ?

मेरे निर्णय को जो समझते,
थोड़ा सा सम्मान तो करते,
मान मनोव्वल दम तक करते,
ऐसे न अपमान तो करते ।

ठान ली मुझको सजा ही दोगे,
जब तू मेरा गुनहगार था,
सजा भी ऐसी खौफनाक क्या,
कैसा तेरा प्यार था ?

बदन की मेरी चाह थी तुम्हे,
उसे ही तूने जला दिया,
आग जो उस तेजाब में ही था,
तूने मुझपर लगा दिया ।

क्या गलती थी मेरी कह दो,
प्रेम नहीं स्वीकार था,
जीते जी मुझे मौत दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?

मौत से बदतर जीवन मेरा,
बस एक क्षण में हो गया,
मेरी दुनिया, मेरे सपने,
सब कुछ जैसे खो गया ।

देख के शीशा डर जाती,
क्या यही मेरा संसार था,
ग्लानि नहीं तुझे थोड़ा भी,
कैसा तेरा प्यार था ?

अब हाँ कह दूँ तुझको तो,
क्या तुम अब अपनाओगे,
या जो रूप दिया है तूने,
खुद देख उसे घबराओगे?

मुझे दुनिया से अलग कर दिया
जो खुशियों का भंडार था,
ये कौन सी भेंट दी तूने,
कैसा तेरा प्यार था ?

दोष मेरा नहीं कहीं जरा था,
फिर भी उपेक्षित मैं ही हूँ,
तुम तो खुल्ले घुम रहे हो,
समाज तिरस्कृत मैं ही हूँ ।

ताने भी मिलते रहते हैं,
न्याय नहीं, जो अधिकार था,
अब भी करते दोषारोपण तुम,
कैसा तेरा प्यार था ?

क्या करुँ अब इस जीवन का,
कोई मुझको जवाब तो दे,
या फिर सब पहले सा होगा,
कोई इतना सा ख्वाब तो दे ।

जी रही हूँ एक एक पल,
जो नहीं नियति का आधार था,
करती हूँ धिक्कार तेरा मैं,
कैसा तेरा प्यार था ?

-प्रदीप कुमार साहनी

Saturday, January 9, 2016

हमसफर न हुए

चंद कदम भर साथ तुम रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

पग पग वादा करते ही रहे,
होकर भी एक डगर न हुए ।

तेरी बातें सुन हँसती हैं आँखें,
खुशबू से तेरी महकती सांसे,

दो होकर भी एक राह चले थे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

एक ही गम पर झेल ये रहे,
होकर भी एक हशर न हुए ।

फिर से तेरी याद है आई,
पास में जब है इक तन्हाई,

भ्रम में थे कि हम एक हो रहे,
संग चल कर हमसफर न हुए,

अच्छा हुआ जो भरम ये टूटा,
होकर भी एक नजर न हुए ।

दिल में दर्द और नैन में पानी,
अश्क कहते तेरी मेरी कहानी,

यादें बन गये वो चंद लम्हें,
संग चल कर हमसफर न हुए,

धरा रहा हर आस दिलों का,
होकर भी एक सफर न हुए ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Friday, January 8, 2016

गर मेरी तू होती

फना तेरे मोहब्बत पे मैं भी होता,
नजर भर प्यार से गर देख तू लेती..

ईश्क की आग में जल भी मैं जाता,
मुस्कुरा कर थोड़ा जो निहार तू लेती..

अश्कों के सागर भी बहा मैं देता,
मांग कर दिल गर जो तोड़ तू देती..

जुदाई का ये गम भी उठा मैं लेता,
जला अलख प्यार का गर दूर तू होती..

मनाने का हुनर भी सीख मैं लेता,
इक प्यार से गर मुझसे रूठ तू जाती..

सहज ही स्वतः ही तेरा मैं होता,
एक क्षण को भी गर मेरी तू होती...

-प्रदीप कुमार साहनी

Monday, December 14, 2015

मन हुँकार बैठा है

उस आईने में खुद को देख रहा है कोई,
वो सज संवर के होने शिकार बैठा है ।

इस माहौल से हैं वाकिफ तुम और हम भी,
इस उजड़े हुए बाग में ढूँढने बहार बैठा है ।

फिर कोई आके सहला रहा है दिल को,
दे देने को फिर गम कोई तैयार बैठा है ।

ये प्यार करने वाले, अब फिर दिख रहे,
वो लूटने को फिर दिल-ए-करार बैठा है ।

जो जिंदा है वो बस, सो रहा है बेखबर,
जो कत्ल हो चुका वो यूँ पुकार बैठा है ।

चुन लिए हैं हमने कुछ दोस्त ऐसे ऐसे,
जो पास मैं बुलाऊँ वो फरार बैठा है ।

अब मौत की खबर भी वो गा कर सुनाता,
लेने को भी अर्थी, देखो कहार बैठा है ।

है आस रखो जिसपे वो सपने ही दिखाता,
हर सपने तेरे लेकर वो डकार बैठा है ।

अपना जिसे समझो वो हो गया पराया,
गैर कोई आके किस्मत सँवार बैठा है ।

काम का समझकर, आगे किया जिसको,
विश्वास को लुटाकर वो बेकार बैठा है ।

हर आग को बुझाना, अंधकार को मिटाना,
अलख फिर जगाने, मन हुँकार बैठा है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Tuesday, December 8, 2015

सफर


छुक छुक करती गाड़ी,
और ये रात का सफर,
खिड़की पे टिका सर,
हवा की ठंडी ठंडी लहर ।

बाहर धुप्प अँधेरा,
जैसे वक्त गया ठहर,
कैसी है ये जगह,
है कौन सा ये शहर ।

शांत मन है स्थिर,
सुखद सी ये पहर,
साफ स्वच्छ वातावरण,
नहीं प्रदूषण का जहर ।

चंद लम्हों का शमां,
फिर, फिर वही नजर,
फिर वही भागदौड़,
फिर, फिर वही डगर ।

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