छुक छुक करती गाड़ी,
और ये रात का सफर,
खिड़की पे टिका सर,
हवा की ठंडी ठंडी लहर ।
बाहर धुप्प अँधेरा,
जैसे वक्त गया ठहर,
कैसी है ये जगह,
है कौन सा ये शहर ।
शांत मन है स्थिर,
सुखद सी ये पहर,
साफ स्वच्छ वातावरण,
नहीं प्रदूषण का जहर ।
चंद लम्हों का शमां,
फिर, फिर वही नजर,
फिर वही भागदौड़,
फिर, फिर वही डगर ।
सुूंदर रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
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