फना तेरे मोहब्बत पे मैं भी होता,
नजर भर प्यार से गर देख तू लेती..
ईश्क की आग में जल भी मैं जाता,
मुस्कुरा कर थोड़ा जो निहार तू लेती..
अश्कों के सागर भी बहा मैं देता,
मांग कर दिल गर जो तोड़ तू देती..
जुदाई का ये गम भी उठा मैं लेता,
जला अलख प्यार का गर दूर तू होती..
मनाने का हुनर भी सीख मैं लेता,
इक प्यार से गर मुझसे रूठ तू जाती..
सहज ही स्वतः ही तेरा मैं होता,
एक क्षण को भी गर मेरी तू होती...
-प्रदीप कुमार साहनी
आभार आदरणीय शास्त्री जी
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