Wednesday, October 12, 2011
Tuesday, October 11, 2011
आबो हवा
नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |
Wednesday, September 28, 2011
रावण दहन
खुद ही बनाते हैं, खुद ही जलाते हैं,
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |
समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |
रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |
उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |
हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |
इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |
समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |
रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |
उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |
हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |
इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |
Saturday, September 24, 2011
सूखे नैन
नहीं आते आंसू,
सुख गया सागर,
इतना बहा कि अब
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
याद है मुझको
तेरा वो रूठना,
दो बुँदे बहाके
तुझे मना थी लेती,
झर गई वो बूंदें
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
आंसू नहीं मोती हैं
तुम्ही तो थे कहते,
एक भी ये मोती
तुम बिखरने नहीं देते,
खो गए वो मोती
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
वर्दी पहने जब निकले थे
दी मुस्कान के साथ विदाई,
आँखों में था पानी
दिल रुलाता था जुदाई,
सुख गया वो पानी,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
तब भी बहुत बहा था
जब ये खबर थी आई
देश रक्षा में तुने
अपनी जान है लुटाई,
पर अब नहीं बहते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
जानती हूँ मैं
तुम नहीं हो आने वाले,
पर ये दिल ही नहीं मानता
तेरा इंतज़ार है करता,
करवटें बदल रोते-रोते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |
Monday, September 19, 2011
दो पल की खुशियाँ
खुशियों भरा जीवन अब मिलता है कहाँ,
चैन-सुकून हर पल अब रहता है कहाँ,
जिंदगी हर वक़्त लिए एक छड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |
संघर्ष ही जीवन का दूसरा नाम हो गया है,
कठिनाइयों का आना तो अब आम हो गया है,
किस्मत हर वक़्त मुह बाये खड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |
भागते ही हम रहते हैं श्वांस भी न लेते,
जीवन को सिद्दत से हम जी भी न लेते,
हम सबको हर वक़्त लगी हड़बड़ी होती होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |
कल क्या होगा किसी ने देखा भी नहीं,
निरंतर खुशियों की कोई रेखा भी नहीं,
जिंदगी भी तो बस घड़ी दो घड़ी होती है,
इसलिए दो पल की खुशियाँ भी बड़ी होती है |
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-प्रदीप