जब भी तेरी याद है आई,
आँखों ने बूँदे छलकाई,
सिहर उठा हर वक्त तन व मन,
जब भी तेरी याद है आई ..
तेरे मेरे प्यार के वो पल,
न जाने कैसे गए पिघल,
तड़प उठे जज्बात हृदय के,
जब भी तेरी याद है आई ..
दूर तो मुझसे हुई कई पल,
दिल से पर कहाँ पाई निकल,
होंठ मंद ही मंद मुसकाए,
जब भी तेरी याद है आई ..
बिन तेरे ये जग है सूना,
तेरे भी दिल में मैं हूँ ना,
तेरे और नजदीक हूँ आया,
जब भी तेरी याद है आई ..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-08-2015) को "आशाएँ विश्वास जगाती" {चर्चा अंक-2055} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रेममयी रचना..
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