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Monday, November 21, 2011

हस्ती हमारी


आशियाँ हमने बना रखा है तूफानों में,
और तूफानों को समेट रखा है अरमानो में,
हस्ती अब तो इतनी है हम दीवानों में,
अँधेरे में भी तीर लगते हैं निशानों में |

आशाएं हैं भरी हमारी उड़ानों में,
हौसलों की उठान है आसमानों में,
साहस है भरा, जो बिकते नहीं दुकानों में,
अक्सर तौलतें हैं खुद को पैमानों में |

देखेंगे कितना है दम इन हुक्मरानों में,
दिखायेंगे कितना है जोश हम जवानों में,
क्या रखा है अब उन पुराने फसानों में,
वो कर दिखायेंगे जो नहीं हुआ जमानों में |

Wednesday, October 26, 2011

आओ एक दीप जलायें

आओ एक दीप जलायें,
मन के अँधियारे में,
जीवन के गलियारे में,
मन-मंदिर रोशन करायें,
आओ एक दीप जलायें |

अज्ञान को भगाये दूर,
ज्ञान फैलायें हम भरपूर,
सबको सच्ची राह दिखायें,
आओ एक दीप जलायें |

खुशियाँ ही बस खुशियाँ बाँटे,
दहशत के कोई पल न काटे,
सिद्दत से दीवाली मनायें,
आऔ एक दीप जलायें |

Wednesday, October 12, 2011

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"


"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

बहुत पुराना है नारा ;

हकीकतन इससे सबने

पर कर लिया किनारा |



वो औद्योगीकरण के नाम पे,

जंगल के जंगल उड़ाते हैं;

पेड़ काट के नई इमारतों का,

अधिकार दिए जाते हैं |



नीति कुछ ऐसी है-

"जंगल हटाओ, विकास रचाओ !" 

पर कहते हैं जनता से,

"पेड़ लगाओ, देश बचाओ !!"

Tuesday, October 11, 2011

आबो हवा

नहीं रहा अब
दुनिया पे यकीन,
भरोसे जैसी कोई
अब चीज कम है ;
बदल गये लोग
बदल गई मानसिकता,
बदल गई सोच
खतम हुई नैतिकता ;
हमने ही सब बदला
और कहते हैं आज
कि अच्छी नहीं रही
अब आबो हवा |

Wednesday, September 28, 2011

रावण दहन


खुद ही बनाते हैं, खुद ही जलाते हैं,
यूँ कहें कि हम अपनी भड़ास मिटाते हैं |

समाज में रावण फैले कई रूप में यारों,
पर उनसे तो कभी न पार हम पाते हैं |

रावण दहन के रूप में एक रोष हम जताते हैं,
समाज के रावण का खुन्नस पुतले पे दिखाते हैं |

उसी रावण की तरह होता है हर एक रावण,
पुतले की तरह हर रावण को हम ही उपजाते हैं |

हर भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी एक रावण ही तो है,
यहाँ तक कि हम सब अपने अंदर एक रावण छुपाते हैं |

इन सब से मुक्ति शायद बस की अब बात नहीं,
इसलिए रावण दहन कर अपनी भड़ास हम मिटाते हैं |

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