मेरे साथी:-

Saturday, May 14, 2011

ऊफ्फ ये गर्मी!!!

मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।

महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।

भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।

नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।

विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।

मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।

Tuesday, May 10, 2011

माँ

जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |

खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |

जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |

"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |

संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |

शत-शत नमन है उस  जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |

Monday, May 9, 2011

चल एकल

थक कर अब न बैठ तू, है दूर नहीं अब मंजिल,
हो कोई नहीं जब साथी, पथ पर चल तू एकल ।

तिमिर तम हो चहुं ओर, दीपक तू कर उज्ज्वल,
सह राही की राह न देख, पथ पर चल तू एकल ।

हिम्मत को न हार तू, धैर्य रख हो सबल,
आशावान, कर्तव्यनिष्ठ बन, पथ पर चल तू एकल ।

कष्टों से भयभीत न हो, भय कर देगा निर्बल,
सहनशील और सत्यशील हो, पथ पर चल तू एकल ।

राह अगर न दृष्य हो, गढ़ अपनी राह तू निकल,
दृढ निष्चय कर बढ़ चल, पथ पर चल तू एकल ।

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-प्रदीप