मेरे साथी:-

Friday, April 8, 2011

देश तुम्हारे साथ है अन्ना

भ्रष्टाचार पर तीर की भाँति,
अन्ना आँधी चल निकली है।
भ्रष्टाचारियों!! सावधान अब,
जनता भी जगने चली है।

लोकपाल बिल हो मंजूर,
जनता की भी भागेदारी हो।
सख्त नियम और सख्त कदम हो,
भ्रष्टों की न साझेदारी हो।

हाथ से हाथ जुड़ते ही रहे,
देशहित में सब साथ हो चलें।
यह आँधी बस कामयाब हो,
हम अन्ना के हाथ बन चलें।

देशभक्ति के भाव को दिल में,
फिर से अब जगाना होगा।
गोरों को गाँधी ने खदेड़ा,
हमे अपनो को भगाना होगा।

अन्ना ने जो दी है ज्वाला,
इसे अग्नि बनाना होगा।
अन्ना के संग सर उठाकर,
भ्रटाचार जलाना होगा।

क्रांति की अगणित मशालें,
अब हमारे हाथ है अन्ना।
तुम अकेले नहीं हो यहाँ,
देश तुम्हारे साथ है अन्ना।


भारत माता की जय।

Thursday, April 7, 2011

जीत लिया हमने जहाँ

क्रिकेट की दुनिया के सिरमौर हो गए,
कन्गारुई बादशाहत खो गई कहाँ;
लहराया तिरंगा अब दुनिया में यारों,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

सचिन का सपना अब पूरा हुआ,
वर्षों का सुखा आज मिटा यहाँ;
धोनी बन उभरा है अगला कपिल,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

खुशी के आँसू हर आँखों में आए,
गदगद हो झुमे सब जहाँ-तहाँ;
गौरव में सर फिर ऊचाँ उठा,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

टेस्ट के बादशाह तो हम पहले ही थे,
एकदिवसीय के अब हुए शहंशाह;
सानी हमारी हर एक ने मानी,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ

युवी की रौनक, सचिन की चमक,
धोनी की धमक में खोया जहाँ;
विराट, गंभीर,जहीर के दम पे,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ .

जश्न-ए-विजय है बदस्तुर जारी,
भारतीय गौरव गाथा में डूबी फिजा;
गर्व से बोलो, अब विश्व कप है अपना,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ .

Tuesday, February 15, 2011

कविता

" जब कवि का उर बिंध जाता है अचूक वेदना के सर से,
तब झर-झर कविता बहती है कवि के अंतर से |"

ये कविता क्या है? मानव ह्रदय का उदगार है,
भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक रूप है,
और पूरी श्रृष्टि का इसमें समाहार है|
जब उर में कोई अमिट और करुण वेदना का संचार होप्ता है,
उसमे विचारों और भावनाओं का अम्बार होता है,
तब आँखों से नीर का बहाव और ह्रदय से कविता का उदभव होता है;
सब कुछ सरल अभिव्यक्ति होती है कुछ ना इसमें वैभव होता है|

ह्रदय की कोई बात जब होठों तक आकर अटक जाती है,
कविता बनकर तब वह स्वयं बाहर उमड़ जाती है|
मुख्यतः प्राकृतिक सौंदर्य और भावना ही इसका मुख्य आधार होता है,
पुरे ब्रह्माण्ड में ही कविता का विस्तार होता है|
रवि की किरण की भी जहाँ अक्षमता होती है,
वहां भी पहुचने की इसमें क्षमता होती है|

इसे शब्दों में बांधने की कोशिश एक बहुत बड़ी गुश्ताखी है,
मैं ये कर रहा हूँ पर पहली गलती के लिए माफ़ी है|
कलम-कागज़ से वर्णित करना अगर इतना ही सरल होता,
लाखों तर गए होते और किसी एक को महान कहना विरल होता|
छोड़ रहा हूँ कोशिश इसे वर्णित और अलंकृत करने को शब्द नहीं हैं,
यह स्वयं इतना विस्तृत और लोकचर्चित है की कुछ और कहने की जरुर नहीं है|

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