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Wednesday, May 18, 2011

चौखट

चौखट के भीतर का जीवन जीने को मजबूर थी जो,
सहमी हुई सी, दर से दबकर जीने को मजबूर थी जो |

पहले पापा के इज्ज़त को चौखट भीतर बंद रहना,
शादी बाद सासरे में चौखट का उसपे पाबंद रहना |

सपना कोई देख लेना उसके लिए गुनाह होता था,
जीवन जीने का लक्ष्य उसका बच्चे और निकाह होता था |

वो अबला अब बलशाली बन चौखट का दंभ तोड़ चुकी है,
वो नारी स्वयं अपने पक्ष में हवा के रुख को मोड़ चुकी है |

नैनों में चाहत भी होती लक्ष्य भी इनके अपने होते,
चौखट और वो चाहरदीवारी अब तो बस वे सपने होते |

कोई काम नहीं धरा में इनके बस की बात नहीं जो,
कोई बात नहीं रहा अब इनके हक की बात नहीं जो |

नीति से राजनीति तक हर क्षेत्र में इनकी साझेदारी है,
देश रक्षा से रॉकेट साईंस तक हर चीज में भागेदारी है |

चौखट के भीतर-बाहर, हर तरफ सँभाले रखा है,
अबल से सबला बनकर भी मर्यादा भी सँभाले रखा है |

हर जिम्मा अब अपना इनको खुब निभाना आता है,
घर, गाड़ी या देश हो इनको सब चलाना आता है |

पुरुषों से कंधा हैं मिलाती देश की नारी नहीं है कम,
इस आँधी को बाँध के रखले,चौखट में नहीं वो दम |

Saturday, May 14, 2011

ऊफ्फ ये गर्मी!!!

मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।

महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।

भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।

नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।

विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।

मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।

Tuesday, May 10, 2011

माँ

जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |

खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |

जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |

"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |

संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |

शत-शत नमन है उस  जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |

Monday, May 9, 2011

चल एकल

थक कर अब न बैठ तू, है दूर नहीं अब मंजिल,
हो कोई नहीं जब साथी, पथ पर चल तू एकल ।

तिमिर तम हो चहुं ओर, दीपक तू कर उज्ज्वल,
सह राही की राह न देख, पथ पर चल तू एकल ।

हिम्मत को न हार तू, धैर्य रख हो सबल,
आशावान, कर्तव्यनिष्ठ बन, पथ पर चल तू एकल ।

कष्टों से भयभीत न हो, भय कर देगा निर्बल,
सहनशील और सत्यशील हो, पथ पर चल तू एकल ।

राह अगर न दृष्य हो, गढ़ अपनी राह तू निकल,
दृढ निष्चय कर बढ़ चल, पथ पर चल तू एकल ।

Friday, April 8, 2011

देश तुम्हारे साथ है अन्ना

भ्रष्टाचार पर तीर की भाँति,
अन्ना आँधी चल निकली है।
भ्रष्टाचारियों!! सावधान अब,
जनता भी जगने चली है।

लोकपाल बिल हो मंजूर,
जनता की भी भागेदारी हो।
सख्त नियम और सख्त कदम हो,
भ्रष्टों की न साझेदारी हो।

हाथ से हाथ जुड़ते ही रहे,
देशहित में सब साथ हो चलें।
यह आँधी बस कामयाब हो,
हम अन्ना के हाथ बन चलें।

देशभक्ति के भाव को दिल में,
फिर से अब जगाना होगा।
गोरों को गाँधी ने खदेड़ा,
हमे अपनो को भगाना होगा।

अन्ना ने जो दी है ज्वाला,
इसे अग्नि बनाना होगा।
अन्ना के संग सर उठाकर,
भ्रटाचार जलाना होगा।

क्रांति की अगणित मशालें,
अब हमारे हाथ है अन्ना।
तुम अकेले नहीं हो यहाँ,
देश तुम्हारे साथ है अन्ना।


भारत माता की जय।

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-प्रदीप