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Wednesday, July 1, 2015

पिता

वट वृक्ष सा खड़ा हुआ वह शख्स पिता कहलाता है,
सामने हर संकट के होता, जो संतान पे आता है..

जिम्मेदारी के बोझ तले वो दब अक्सर ही जाता है,
हर भावों से भरा हृदय पर भावशून्य दर्शाता..

संतान के सुख में खुश होता, संतान के गम में रोता है,
माँ रो लेती फूट कर कभी, पिता सुबक रह जाता है..

हर अपनों की हर एक खुशी ढूँढ ढूँढ कर लाता है,
हर कष्टों को कर समाहित, कष्टरहित कर जाता है..

ऊँगली धर चलना सिखलाता, काँधे पे भी बिठाता है,
हर डाँट में थपकी होती, जीना वही सिखाता है..

हर मोड़ पर राह दिखाता, वो इस जनम का दाता है,
वट वृक्ष सा खड़ा हुआ वह शख्स पिता कहलाता है...

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मुसकुराते रहिए और स्वस्थ रहिए - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. मन कि भावनाओं को सुन्दर शब्दों से सजाया है

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  3. बहुत गहरी बात हैं,
    हर अपनों की हर एक खुश शी ढूँढ ढूँढ कर लाता है,
    हर कष्टों को कर समाहित, कष्टरहित कर जाता है..

    ऊँगली धर चलना सिखलाता, काँधे पे भी बिठाता है,
    हर डाँट में थपकी होती, जीना वही सिखाता है..

    हर मोड़ पर राह दिखाता, वो इस जनम का दाता है,
    वट वृक्ष सा खड़ा हुआ वह शख्स पिता कहलाता

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