फटी-सी एक डायरी में,
लिख रखा है मैंने;
है पाई-पाई का तेरे,
हर जख्मों का हिसाब |
कब तूने तोड़ा दिल,
कब की थी रुसवाई;
कब हुई थी बेवफा,
हर तारीख है जनाब |
क्यों फोन का मेरे,
न दिया था जवाब,
भागती ही रही दूर,
ओढ़ नकली हिज़ाब |
पछताओगी एक दिन,
याद करोगी मुझको;
जब ढल जायेगा यौवन,
जब लगाओगी खिजाब |
वो मुस्कुराहट भी तेरी,
बेशर्मों-सी ही थी;
जब घुटनों के बल आके,
तुझे देता था गुलाब |
बस दोस्त कभी कहती,
कभी प्यार थी बनाती;
बिन पेंदी के लौटा का,
तुझे दूंगा मैं खिताब |
दुखाया है इस दिल को,
तूने जाने कितनी बार;
आंसूं हैं दिए तूने,
मुझ गरीब को बेहिसाब |
झूठे तेरे प्रेम पत्र,
फेंक दिए हाँ मैंने;
कोई गिरा गंगा में,
कोई जा गिरा चिनाब |
कभी प्यार से की बातें,
कभी गोलियां जैसे बोली;
लहू-लुहान किया दिल को,
क्या तेरा भाई था कसाब ?
न हो तू यूँ बेताब,
तुझे मिल जायेगा जवाब;
जब छापूंगा ये किताब,
तेरे जख्मों का हिसाब |