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Friday, June 8, 2012

पहली बरसात


आज हुई पहली बरसात,
बरस गये मेघ आज घुमड़ के,
जगा गए दिल के जज्बात,
आज हुई पहली बरसात |

ताप रहा था कोना-कोना,
गर्मी से आता था रोना,
आह्लादित हो उठी जमात,
आज हुई पहली बरसात |

इन्तजार थे मेघ के,
नयन ताकते नेह से,
ईंद्र देव ने मणि बात,
आज हुई पहली बरसात |

रोज दरश वे दे जाते थे,
सब्र परीक्षा ले जाते थे,
आज दिला के गए निज़ात,
आज हुई पहली बरसात |

मन प्यासा, धरती प्यासी थी,
मरुभूमि में बगिया-सी थी,
तृप्त कर गए वो दिन रात,
आज हुई पहली बरसात |


07.06.2012

Wednesday, June 6, 2012

आंसूं पश्चाताप के



आ गए गर आँखों में आंसूं पश्चाताप के,
धुल गए वो बेरंग से गलतियों के जो छाप थे;
भूल तो हर इंसानों से ही हो जाता है "दीप",
धो देते हैं आंसूं ये हर दाग को उस पाप के |


आत्म-ग्लानि स्वयं में ही एक बड़ा दण्ड है,
गलतियों से सीख लेना पश्चाताप का खण्ड है,
अंतर्मन स्वीकार ले गलती बात बने तब "दीप",
पश्चाताप पे क्षमा है मिलती गलती चाहे प्रचन्ड है |

Thursday, May 31, 2012

***मुर्दा ***

जिन्दा तो हैं यहाँ
पर प्राण का नाम नहीं,
फिरते हैं यात्र-तत्र
बने जीवित मुर्दा;

कुंठित है सोच
अपंग क्रियाकलाप,
कलुषित है हर अंग
क्या नैन-मुख-गुर्दा |

एक धुंधली ज्योति
है लिए अंतरात्मा,
है उसे लौ बनाके
स्वयं को प्राण देना;

मुर्दा बनके जीना
मृत्यु से भी बद्तर,
है जीवित अगर रहना
बस यही ज्ञान लेना |

Monday, May 21, 2012

थोडा प्यार होना चाहिए



चंद लम्हों  की जिंदगी है खुशगवार होनी चाहिए,
खुशगवार मौसम के लिए थोडा प्यार होना चाहिए |

प्यार ही है नेमत और ये प्यार ही है पूजा,
पर प्यार है तो थोड़ी-सी तकरार होनी चाहिए |

तकरार से बढती है खूबसूरती इस प्यार की,
तकरार के साथ-साथ इजहार होना चाहिए |

इजहार न होके अगर हो जाये इनकार,
इनकार में भी रजामंदी बरक़रार होना चाहिए |

मुश्किलें हो, कांटे हो या हो लोहे की दीवार,
जो भी हो पर थोडा प्यार होना चाहिए |

नैनों के बाण जरा सोच के चला ज़ालिम,
आँखों के तीर दिल के पार होने चाहिए |

छलनी कर डालो भले इस दिल को लेकिन,
घायल मजनू को लैला का दीदार होना चाहिए |

जिंदगी हो भरा मौसम-ए-बहार से ऐ "दीप",
जिंदगी भर खिला दिल-ए-गुलजार होना चाहिए |

जख्म हो, दर्द हो या हो दिल पे कोई वार,
जो भी हो पर थोडा प्यार होना चाहिए |

Tuesday, May 15, 2012

"बच्चा बिकाऊ है"

पिछले दिनों अचानक
एक खबर है आई,
सरकारी अस्पताल को
किसी ने मंडी है बनाई |

चर्चा थी वहां तो
सब कुछ ही कमाऊ है,
गुपचुप तरीके से वहां
"एक बच्चा बिकाऊ है" |

सुनकर ये खबर
मैं सन्न-सा हुआ,
पर तह तक जाके
मन खिन्न-सा हुआ |


दो दिन का बच्चा एक
बिकने है वाला,
पुलिस-प्रशासन कहाँ कोई
रोकने है वाला !

अस्पताल वालों ने ही
ये बाजार है सजाई,
बीस हजार की बस
कीमत है लगाई |

बहुतों ने अपना दावा
बस ठोक दिया है,
कईयों ने अग्रिम राशी तक
बस फेंक दिया है |

पता किया तो जाना खबर
नकली नहीं असली है,
बच्चे को जानने वाली माँ
"घुमने वाली एक पगली" है |

इस एक समस्या ने मन में
सवाल कई खड़े किये,
मन में दबे कई बातों को
अचानक इसने बड़े किये |

लावारिश पगली का माँ बनना
मन कहाँ हर्षाता है,
हमारे ही "भद्र समाज" का
एक कुरूप चेहरा दर्शाता है |

बच्चे पर बोली लगना
भी तो एक बवाल है,
पेशेवर लोगों के धंधे पर
ज्वलंत एक सवाल है |

सभ्य कहलाते मनुष्यों का
ये भी एक रूप है,
अच्छा दिखावा करने वालों का,
भीतरी कितना कुरूप है |

सरकार से लेके आम जन तक का
इस घटना में साझेदारी है,
किसी न किसी रूप में सही
हम सबकी इसमें हिस्सेदारी है |

समस्या का नहीं हल होगा
कभी हड़ताल या अनशन से,
हर मर्ज़ से हम निजात पाएंगे
बस सिर्फ आत्म-जागरण से |

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