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Tuesday, May 15, 2012

"बच्चा बिकाऊ है"

पिछले दिनों अचानक
एक खबर है आई,
सरकारी अस्पताल को
किसी ने मंडी है बनाई |

चर्चा थी वहां तो
सब कुछ ही कमाऊ है,
गुपचुप तरीके से वहां
"एक बच्चा बिकाऊ है" |

सुनकर ये खबर
मैं सन्न-सा हुआ,
पर तह तक जाके
मन खिन्न-सा हुआ |


दो दिन का बच्चा एक
बिकने है वाला,
पुलिस-प्रशासन कहाँ कोई
रोकने है वाला !

अस्पताल वालों ने ही
ये बाजार है सजाई,
बीस हजार की बस
कीमत है लगाई |

बहुतों ने अपना दावा
बस ठोक दिया है,
कईयों ने अग्रिम राशी तक
बस फेंक दिया है |

पता किया तो जाना खबर
नकली नहीं असली है,
बच्चे को जानने वाली माँ
"घुमने वाली एक पगली" है |

इस एक समस्या ने मन में
सवाल कई खड़े किये,
मन में दबे कई बातों को
अचानक इसने बड़े किये |

लावारिश पगली का माँ बनना
मन कहाँ हर्षाता है,
हमारे ही "भद्र समाज" का
एक कुरूप चेहरा दर्शाता है |

बच्चे पर बोली लगना
भी तो एक बवाल है,
पेशेवर लोगों के धंधे पर
ज्वलंत एक सवाल है |

सभ्य कहलाते मनुष्यों का
ये भी एक रूप है,
अच्छा दिखावा करने वालों का,
भीतरी कितना कुरूप है |

सरकार से लेके आम जन तक का
इस घटना में साझेदारी है,
किसी न किसी रूप में सही
हम सबकी इसमें हिस्सेदारी है |

समस्या का नहीं हल होगा
कभी हड़ताल या अनशन से,
हर मर्ज़ से हम निजात पाएंगे
बस सिर्फ आत्म-जागरण से |

Thursday, May 3, 2012

जिंदगी जिंदगी कहाँ

जिंदगी का काम ही है अनवरत चलते जाना,
ये जो रुक ही जाये तो जिंदगी जिंदगी कहाँ ;
लगा रहता है जिंदगी में लोगो का आना-जाना,
ना आये जाये कोई तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

माना कि सफ़र में कभी आंसू हैं निकलते,
और कभी होठों पे मुस्कान है आती;
खुशियाँ और गम है जिंदगी के ही पहलू,
दो पहलू ना हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

माना कि हैं मिलते कांटे ही कांटे पथ में,
धुप्प-सा अँधेरा कभी दिखाई भी है पड़ता,
जाल फेंक कष्टों का परखती है जिंदगी,
जो संघर्ष न हो तो जिंदगी जिंदगी कहाँ |

Friday, April 27, 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

Friday, April 6, 2012

विनती

पवन तनय तुम अंतर्यामी, विघ्न हरो हे सबके स्वामी |
दूर करो हर कष्ट राह के, उर में बसो संग सिय राम के ||

बल बुद्धि के आप निधाना, गावो बस तुम राम गुण-गाना |
बल विवेक प्रभु हमको देना, सब अवगुण को तुम हर लेना ||

नित भज लूँ प्रभु नाम तुम्हारा, तुम ही तो हो नाथ हमारा |
विपदा मेरी मिटाना देवा,           तत्पर हो करूँ तेरी सेवा ||

शंकर सुवन तुम हे दुख भंजन, भक्ति तेरी ज्यों पावन चन्दन |
भक्तों का तू जीवन तर दे,          भक्ति भाव से झोली भर दे ||

अंजनी सूत तुम राम के दासा, पूर्ण करो इस मन की आशा |
विनय करूँ तेरी हे हनुमाना, विनती मेरी तुम ना ठुकराना ||

सभी को महा प्रभु हनुमत जी की जयंती की बधाइयाँ |

Monday, February 13, 2012

यारों कुछ तो याद करो

कॉलेज के लिए

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे PIET थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

कॉलेज में था संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों कुछ तो याद करो.... 

मिल-जुल के था बंकिंग करना, मिल-जुल कैंटिन जाना,
मिल-जुल के कॉलेज के वक्त पे, दूर तक घुमने जाना,
मिल-जुल के ना जाने कितने कर डाले हड़ताल थे हमने,
मिल-जुल कर जो रखी थी हमने, याद तो वो बुनियाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

कभी-कभी वो रेल का सफर, वो कैंपस की तैयारी,
बिना टिकट वो पकड़ा जाना, निभाना अपनी यारी,
तरह-तरह के ग्रुप बना था अपना जीवन जीना,
कभी-कभी जो बीत गए तल, उनपे वाद-विवाद करो ।
यारों कुछ तो याद करो.... 

यारों कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
कॉलेज के जो रिश्ते हैं तुम उनको न बर्बाद करो |
यारों कुछ तो याद करो |

नवोदय के लिए

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |

यारों, कुछ तो याद करो |

जगह-जगह से हम सब बन्दे नवोदय थे पहुंचे,
डरे-डरे से सहमे-से थे, हम सब सारे बच्चे,
धीरे-धीरे हम सबका जो बना था वो याराना,
पल-पल पनपे उस पौधे को पल-पल अब आबाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

नवोदय में संग-संग रहना, संग-संग पढना-लड़ना,
संग-संग हरदम मस्ती करना, संग-संग हँसना-रोना,
संग-संग गप्पे करने की वो याद अभी है ताज़ी,
संग-संग के अपनी यादों को, दिल से न आज़ाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

अन्जाने उस जगह में भी जो प्यार मिला था सबका,
अन्जानों का साथ हुआ था अपनों जैसा पक्का,
चार वर्षों का सुखमय जीवन, चार वर्षों की यारी,
चार साल के सफ़र का अनुभव जेहन से तुम याद करो |
यारों, कुछ तो याद करो.... 

यारों, कुछ तो याद करो,
रब से तुम फ़रियाद करो,
नवोदय के रिश्तें हैं जो, उनको न बर्बाद करो |
यारों, कुछ तो याद करो |

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