दर्द-ए-ईश्क पत्थर को भी रुलाता है ऐ "दीप",
हर शख्स किसी न किसी के प्यार में खोया होगा;
यूँ ही नहीं गिरा करती हैं ओंस की बुँदे,
आसमान भी शायद किसी के गम मे रोया होगा ।
चकोर के दिल में भी उठती होगी चाँद के लिए हुक,
मयूर ने भी घटा संग प्रेम का बीज बोया होगा;
पत्थर दिल कहते हैं कि आँसू नहीं आते,
पर उसने भी किसी की याद मे आँख भिंगोया होगा ।
नदियों ने भी सौंपी होंगी सागर को ख्वाहिशे,
पौधे ने भी लताओ संग सपना संजोया होगा;
कभी खुशी तो कभी गम के आँसू देता ये दर्द,
इस दर्द को भी सबने सिद्दत से जीवन मे पिरोया होगा ।
Tuesday, June 28, 2011
Saturday, June 25, 2011
महँगाई से मोहब्बत
आज हर तरफ है छाई महँगाई,
हर एक के उपर आज आफत है आई,
महँगाई में ही सर्वोच्चता का दीदार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
हर किसी के होठों पे बस इसका नाम है,
महँगाई खाश है बाकि सब आम है,
महँगाई के बिना चल पाना दुस्वार हो गया,
ये देख के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
सरकार के नीति का ही कुछ गोलमाल है,
लफड़ा करुँ तो ये अपने ईज्जत का सवाल है,
हाथ खड़े करके ही अपना जीवन साकार हो गया,
इसलिए तो महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
परेशान तो हैं क्योंकि सबके बढ़ते दाम हैं,
हर एक के उपर आज आफत है आई,
महँगाई में ही सर्वोच्चता का दीदार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
हर किसी के होठों पे बस इसका नाम है,
महँगाई खाश है बाकि सब आम है,
महँगाई के बिना चल पाना दुस्वार हो गया,
ये देख के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
सरकार के नीति का ही कुछ गोलमाल है,
लफड़ा करुँ तो ये अपने ईज्जत का सवाल है,
हाथ खड़े करके ही अपना जीवन साकार हो गया,
इसलिए तो महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
परेशान तो हैं क्योंकि सबके बढ़ते दाम हैं,
पर क्या करें हम तो एक इंसान आम हैं,
सी नहीं सकता इसलिए जख्मों पे निसार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
सबके लिए मेरे पास एक राय है,
अगर आपके खर्च है ज्यादा और कम आय है,
आप भी कहो महँगाई का सबको खुमार हो गया,
आज से महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।
Friday, June 24, 2011
मजा कुछ और है !!
किताबें तो पढ़ के बहुत आनन्द आता है,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।
बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।
रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।
बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।
औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।
अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।
बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।
रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।
बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।
औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।
अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर एक असहाय को सहाय देने का मजा कुछ और है ।
नींद में तो ख्वाबों का पुलिन्दा सा बँध जाता है,
पर जागती आँखों से स्वप्न देख लेने का मजा कुछ और है ।
प्रेम रस से सराबोर प्रेमी-प्रेमिका हैं फिरते,
पर अपने ईष्टदेव से भक्ति पुर्ण प्रेम करने का मजा कुछ और है ।
अपनी तो हजारों ईच्छा पूरी कर लेते हैं हम,
पर माँ-बाप के अरमान पूरा कर देने का मजा कुछ और है ।
अपनी जरुरत के लिए जंगल का जंगल उड़ा देते हैं हम,
पर प्यार से एक पेड़ लगा जाने का मजा कुछ और है ।
भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हम,
पर हृदय को भव्य बना लेने का मजा कुछ और है ।
जिन्दगी की अमिट साख पे मर ही मिटते हम,
पर जिन्दगी को जिन्दगी बना लेने का मजा कुछ और है ।
Monday, June 20, 2011
कवि हृदय मेरा
बचपन में जब नासमझ था,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।
बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।
हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।
फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।
समय के साथ मैं चलता रहा,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।
बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।
हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।
फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।
समय के साथ मैं चलता रहा,
पढ़ाई के साथ ही पलता रहा,
पर धीमे-धीमे धीमा पड़ा,
ये कवि हृदय मेरा ।
दिल में तो एक ओज-सा था,
पर पढ़ाई का बोझ-सा था,
शिक्षा संग न चल पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
उच्च शिक्षा की बारी आई,
अभियंत्रण में हाथ लगाई,
किताबों बीच ही दबा रहा,
ये कवि हृदय मेरा ।
सेमेस्टरों में धँसा रहा,
परीक्षाओं में फँसा रहा,
साहित्य पटल पर चमक न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।
अभियंता बन निहाल हुआ,
शादी कर खुशहाल हुआ,
पर उपेक्षित रह गया,
ये कवि हृदय मेरा ।
जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
समय की कमी से जूझ रहा हूँ,
पर आशा है सुप्त न रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
घर और नौकरी निभाना है,
जिन्दगी को भी भुनाना है,
सब के साथ बस जागृत रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
रचता रहूँ है कामना,
लेखनी को दूँ आराम ना,
पुष्ट और संतुष्ट रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।
नहीं हूँ मैं कवि,
पर दिल में काव्य की है छवि,
भावनाओं संग छलक है पड़ता,
ये कवि हृदय मेरा ।
Thursday, June 16, 2011
शादी की सालगिराह मुबारक हो
'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।
इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )
(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)
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-प्रदीप