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Saturday, August 11, 2012

चंद पंक्तियाँ


जुगनुओं से रोशन ये जहाँ होता नहीं यारों,
वो आज भी भर नींद कभी सोता नहीं यारों,
दो जून की रोटी मुकम्मल जिन्हें नसीब नहीं होती,
सरकारी वादों से उनका कुछ होता नहीं यारों |

कोई डेढ़ सौ की कमाई पे भी कभी रोता नहीं यारों,
कोई करोड़ों में खेलकर भी खुश होता नहीं यारों,
कोई किस्मत के लकीरों का सब खेल है समझता,
कोई हार हार के भी आस कभी खोता नहीं यारों |

खून से कभी धब्बों को कोई धोता नहीं यारों,
खाने को आम, बबूल कोई कभी बोटा नहीं यारों,
खुशनसीबी नहीं की यूँही जिए जा रहे "दीप",
लक्ष्य के बिना मतलब कुछ भी होता नहीं यारों |

Friday, August 10, 2012

***आ जाओ गोपाल***


आ जाओ गोपाल
फिर हर लो हर कष्ट धरा का
बनके तारणहार;
असुरों के आतंक से मुक्ति 
दे दो खेवनहार;
फिर बाँटो खुशियाँ हर घर घर
बनके नन्द के लाल |
आ जाओ गोपाल |

कंस यहाँ हर रूप में बैठे
कलुषित भ्रष्टाचार;
चक्र सुदर्शन चला दो फिर से
नाशो हर विकार;
मधुर मुरलिया पुनः सुनाओ
हे ग्वालों के ग्वाल |
आ जाओ गोपाल |

भूखों का फिर भूख हरो तुम
दो माखन उपहार;
द्रौपदियों की लाज बचाओ
सबके पालनहार;
दंभ हरो हर दुष्टों का फिर
हे कृष्णा बृजलाल |
आ जाओ गोपाल |

Sunday, August 5, 2012

बिन दोस्ती

क्या होता शमा ये क्या बताऊँ यारों,
भगवान न होते और ये बंदगी न होती;
दोस्तों के बिना शायद कुछ भी न होता,
ये सांसें भी न होती, ये जिंदगी न होती |

खुशियाँ न होती और मुस्कान भी न होते,
जिस्म तो होता पर उसमे जान भी  न होती;
रहता अधूरा शायद हर जश्न-ए-जिंदगी,
दोस्तों के बना अपनी शान भी न होती |

नर्क सा होता उस स्वर्ग का भी मंजर,
महफिल भी शायद वीरान-सी ही होती;
दोस्ती है मिश्रण हर रिश्ते का "दीप",
जिंदगी बिन लक्ष्य के बाण-सी ही होती |

(सभी मित्रों को समर्पित यह रचना)

Saturday, July 7, 2012

काश तुम समझ पाते


काश तुम समझ पाते,
कि जब चुना था तुम्हें,
तो कितना विश्वास था तुमपे,
अच्छा जँचे थे तुम;

बेहतर लगे थे सबसे,
सबसे सच्चे भाते,
बहुत आस था तुमसे,
काश तुम समझ पाते |

थे तो कई,
मैदान में लेकिन,
तेरे ही नाम को,
पसंद किया हमने;

इन बातों पे थोड़ा,
तुम गौर तो फरमाते,
भावनाओं को हमारी,
काश तुम समझ पाते |

यूं सिला दोगे,
यूं रुलाओगे हुमे,
भूल जाओगे सबकुछ,
ये सोचा न था;

चुनाव को हमारे,
तुम सही तो ठहराते,
बहुत खुशी होती हमे,
काश तुम समझ पाते |

चुन करके गए,
फिर दर्शन भी न हुए,
ज्यों जन-प्रतिनिधि नहीं,
ईद का चाँद हो गए;

कभी-कभार तो आते,
बस हाल ले के जाते,
गर्व होता हमको,
काश तुम समझ पाते |

आज हम परेशान हैं,
तरह तरह की समस्याओं से,
हमारे बीच के होके भी,
तुम हमारे न रहे;

हर वोट की कीमत,
ऐ काश तुम चुकाते,
बन जाते महान,
काश तुम समझ पाते |

जन-जन है लाचार,
दो रोटी को तरसते,
और लगे हो तुम,
झोली अपनी भरने में;

निःस्वार्थ होकर थोड़ा,
परमार्थ भी दिखाते,
सच्चा नेता कहलाते,
काश तुम समझ पाते |

Sunday, July 1, 2012

दूरियाँ

दूरियां हमेशा दर्द ही नहीं देती, 
कभी कभी खुशनुमा एहसास भी कराती है ये दूरियां; 
दूरियां हमेशा रिश्तों को नहीं तोडती, 
अक्सर टूटते रिश्तों को भी मजबूत कराती है ये दूरियां | 

दूरियाँ हमेशा नफरत ही नहीं फैलाती, 
कभी कभी अनुपम प्रेम की अनुभूति भी कराती है ये दूरियाँ; 
दूरियाँ हमेशा फासले ही नहीं बढ़ाती, 
कभी कभी दूर हुए दो दिलों को नजदीक भी लाती है ये दूरियाँ | 

दूरियाँ सिर्फ ओझल ही नहीं करती, 
कभी कभी दिल ही दिल मे दीदार भी करती है ये दूरियाँ; 
दूरियों का मतलब सिर्फ जुदाई नहीं "दीप", 
कभी कभी एक अनोखा मिलन भी कराती है ये दूरियाँ |

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