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Monday, August 15, 2011

गर्जना

न कुचलो हमारी स्वाधीनता को इस तरह,
कि इसके लिए हमने बहुत कुछ सहा है,
खैरात में नहीं मिली है हमे ये आजादी,
कितने कुर्बान हुए हैं और कितनो का लहू बहा है |

प्राणों से भी प्यारी है हमे ये स्वतंत्रता,
रक्षा को इसकी हम जान तक लुटा देंगे,
कोशिश न करना इसे छीनने की हमसे,
सरफिरे हैं तेरा वजूद तक मिटा देंगे |

देश के ठेकेदारों ! वक्त है संभलो,
आँच आये आजादी को वो काम मत करना,
गोरे अंगरेजो को सन ४७ मे भगाया,
साहस न करना,गेहुँए अंगरेज मत बनना |

सवा अरब जनता अगर सनक गई काफिर,
यातनाओ के जवाब मे हम भी दिखा देंगे,
उनको तो हमने बस खदेड़ के था छोड़ा,
गर्जना सुन तेरा नामोनिशान डूबा देंगे |

Saturday, August 13, 2011

अंतर्द्वंद

सोचा की इस बार आज़ादी का जम कर जश्न मनाऊँ,
तभी ख्याल आया देश की मौजूदा हालात का,
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

भागते हुए निहत्थे किसान कहीं गोलियां खा रहें हैं,
रैलियों में निहत्थे लोग कहीं लाठियां खा रहें हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मौलिक अधिकारों का भी यहाँ हनन हो रहा है,
रोज नए घोटालेबाजों का जनम हो रहा है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

महंगाई इतनी है की लोग दो जून की रोटी को तरसते हैं,
नेताओं और रसूखदारों के यहाँ धन ही धन बरसते हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

अमर शहीदों की गाथा याद करके उन्नत हो जाता है भाल मेरा,
अपने चुने हुए लोगों के करतूत के ख्याल से शर्म से झुक जाता है भाल मेरा; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

हर एक मुद्दे पर नेताओं की राजनीती भारी है,
नियम-कानून कुछ नहीं हर एक नीति हारी है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मानव आज मानवता के मूल्यों को कहाँ बुझ रहा है,
स्त्रियों का वर्ग हर कोने में असुरक्षा से जूझ रहा है; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

यह अंतर्द्वंद मेरे नहीं हर एक के मन में चल रहा है,
किसकी खुशियाँ मनाऊँ और किसका गम करूँ, हर एक के मन में चल रहा है;

क्या इसी अंतर्द्वंद का जश्न मनाऊँ?
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

Friday, August 12, 2011

एक प्रश्न

खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,
पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;
फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं  लगाते,
पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ?

नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,
अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,
लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम,
मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा |

सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक,
तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का,
एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु,
गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न का |

Tuesday, August 9, 2011

बहना मेरी

तब  था मैं बस छोटा सा, जब तू थी जीवन में आई,
पुलकित था मन हर्षित था, जब तू थी आँगन में आई |

बाल मन भी गदगद था, खुशियाँ खुद अंगना थी आई,
संग पलने संग बढ़ने को, जीवन में बहना थी आई |

हाथ मेरे बांधेगी राखी, सोच के मन उद्वेलित था,
खेलूँगा इस गुडिया से, जान के मन प्रफुल्लित था |

जैसे जैसे जीवन बीता, तू बस खुशियाँ देती गयी,
जीवन के हर एक मोड़ पर, तू बस खुशियाँ देती गयी |

आज तेरा निज जीवन है, पर मेरे लिए तू वैसी है,
गृहस्थ में तू है व्यस्त बड़ी, पर बहना मेरी तू वैसी है |

हाथ मेरा इंतजार है करता, राखी के त्यौहार का,
राखी से तेरे हाथ सजेगा, अमूल्य उस उपहार का |

दुआ है मेरी इश्वर से, सुख पाये बहना मेरी,
जो गम आये मुझे मिले, खुश रहे बहना मेरी |

Saturday, August 6, 2011

एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये

नहीं चाहता मखमल के गद्दे में मुझको आराम आये,
नहीं चाहता व्यापार में मेरा कोई बड़ा दाम आये,
चाहत मेरी बड़ी नहीं बस छोटी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |
                                          
नहीं चाहता लाखों की लौटरी कोई मेरे नाम आये,
नहीं चाहता खुशियों भरा बहुत बड़ा कोई पैगाम आये,
ख्वाहिश मेरी ज्यादा नहीं बस थोड़ी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता मधुशाला में मेरे लिए अच्छा जाम आये,
नहीं चाहता फायदा भरा बहुत बड़ा कोई काम आये,
सपने  मेरे अनेक नहीं बस एक ही तो है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता प्रसिद्धि हो, नाम मेरा हर जुबान आये,
नहीं चाहता जीवन में कोई अच्छा बड़ा उफान आये,
इश्वर से दुआ मेरी बस इतनी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं कोई देशभक्त बड़ा मैं, नहीं देश का लाल बड़ा,
पर दिल में एक ज्वाला सी है, देश हित करूँ कुछ  काम बड़ा,
भारत माँ के चरणों में नत एक बात मन में आये,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

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