मेरे साथी:-

Friday, April 18, 2008

याद

एक आग सी दील मी लगती है, एक तीर जीगर में चलता है;
जब याद इसी की आती है, एक दर्द सा दील में उठता है।

सिर्फ एक झलक बस पाने को, ये नैन तरसने लगते हैं;
ये हालत उसे बताने को ये होंठ तड़पने लगते हैं।

आहट उसकी सुनने को ये कान फड़कने लगते हैं;
और सोच के उसकी बातों को ये आँख बरसने लगते हैं।

ये जाती नहीं जब आती है, बस आती है और आती है;
बेखबर करके दुनीया से, ये याद बहुत सताती है।

जब याद की बदरी छाती है, हर शमा धुंधला होता है;
हर रात ही काली होती है, जब याद कीसी की आती है।

Thursday, April 17, 2008

चल कह कोई कहानी

माईंड हो रहा बोर , जाऊँ मैं किस और;
ये रात है सुहानी, चल कह कोई कहानी।

सो जाऊँ मैं कैसे, नींद आती नहीं ऐसे,
मच्छरों की है जवानी, चल कह कोई   कहानी |

लाइफ हो गया चौपट, सुबह बोलेगा पोपट;
न जोश है न रवानी, चल कह कोई कहानी।

नेट में करूँ ओरकुट, या खाऊँ कोई बिस्कुट;
हमे होगी नहीं आसानी, चल कह कोई कहानी।

फिल्मों का है जमाना, सब गातें हैं तराना;
दुनिया बिपाशा की दीवानी, चल कह कोई कहानी।

शाहरुख़ करेगा कॉमेडी, अक्षय करेगा ट्रेजेडी;
फ़िल्म मांगेगा नहीं पानी, चल कह कोई कहानी।

सचिन ने मारा चौका, या धौनी मारेगा छक्का;
मेरे बाप का क्या जानी, चल कह कोई कहानी।

पढ़ाई पे है ध्यान नहीं, GK का कोई ज्ञान नहीं;
है हर बात याद दिलानी, चल कह कोई कहानी।

उसका नंबर उससे लो, नाम पता सब ख़ुद से लो;
लड़की आती नहीं पटानी, चल कह कोई कहानी।

फ्लर्ट करते हो लड़की से, पॉकेट खाली है कड़की से;
याद आयेगी तुझे नानी, चल कह कोई कहानी।

नाचते हो बहुत ताल में, ध्यान है केवल माल में;
एक बात भी न मानी, चल कह कोई कहानी।

मोबाइल से सिर्फ चीपके रहो, मिस कॉल करो पर छिपके रहो;
कहो, बैलेंस नही मेरी रानी, चल कह कोई कहानी।

हर किसी को है पकड़ा, ख़ुद बन गए हो बकरा;
दिमाग की बत्ती है जलानी, चल कह कोई कहानी।

खाते रहो बस खाना, FM में सुनो गाना;
मस्ती करो दिलजानी, चल कह कोई कहानी।

न बनो कभी भी बोतल, बस हँसते रहो टोटल;
स्माइल बनाओ निशानी, चल कह कोई कहानी।

Wednesday, April 16, 2008

नज़र न लग जाए कहीं

मासूम से तेरे इस चेहरे को
किसी की नज़र न लग जाए कहीं,
झुक गई तेरी ये पलकें अगर,
सुबह में ही शाम न हो जाए कहीं |

चलती हो क्यों यूं बलखा के तुम,
रास्ते भी पागल न हो जाए कहीं,
कह दो हवा से न छेड़े इन जुल्फों को,
बादल यहाँ न छा जाए कहीं |

होठों की लाली होठों में ही रहे,
छलक कर बाहर न आ जाए कहीं,
झटकों मत अपने बालों को इस तरह,
बिन मौसम बरसात न हो जाए कहीं |

हूर से हुश्न के दीदार के लिए,
आसमान भी ज़मीन पे न उतर आए कहीं,
देखकर तेरी ये अल्हड़ अठखेलियाँ
पत्थर में भी जान न आ जाए कहीं |

झील सी तेरी इन आंखों में कोई,
डूबकर ख़ुद को ही न खो जाए कहीं,
न लो मस्ती में यूं अंगदाइयां,
जमाना ये सारा न मचल जाए कहीं |

साथ में तेरी मीठी मुकुराहट के,
ज़मीन पे फूल भी न बरस जाए कहीं,
देखकर बिंदिया माथे की तेरी,
पूनम का चाँद भी न शर्मा जाए कहीं |

चांदनी सी धवल ये रंगत तेरी,
फिजा में उड़कर न बिखर जाए कहीं,
हिरणी सी तेरी इस चाल को देख,
चलना ही सब न भूल जाए कहीं |

अनमोल ये हुश्न तेरा लगता है जैसे,
बदन से भी बाहर न चू जाए कहीं,
फूलों से नाजुक है तेरा बदन,
लचक न इसमे कभी आ जाए कहीं |

मत देखो मुझे इन मस्त निगाहों से,
दिल ये मेरा बेचैन न हो जाए कहीं,
मुस्कुराया न करो यूं देखकर मुझको,
सब्र का पैमाना न छलक जाए कहीं |

आँखों का काजल गालों पे लगा लो,
ज़माने की नज़र न लग जाए कहीं,
देखा न करो ख़ुद को आईने में कभी,
ख़ुद की ही नज़र न लग जाए कहीं |

Tuesday, April 15, 2008

ये अदा

झील सी ये आँखें, दहकते ये होंठ,दीवाना मुझे क्यों किए जा रही हो;
गुमसुम न बैठो कुछ बोलो तो सही,तड़प क्यो मुझको यूं दिए जा रही हो?


बिखरी ये जुल्फें, महकता बदन,आंखों से रस दिए जा रही हो;
मुस्कुरा दो जरा, बिखरने दो मोटी,क़यामत क्यों ऐसे किए जा रही हो?


कमर ये पतली, ये तिरछी नज़र,जुबान पे क्यों बातें लिए जा रही हो;
बेताब हूँ सुनने को आवाज तेरी,लबों को ऐसे क्यों सीए जा रही हो?


भोला ये चेहरा पर तीखे नयन,जादू क्या मुझपे किए जा रही हो;
खामोश रहकर दिल ही दिल में,अरमान दिलों का लिए जा रही हो।


कोमल ये पैर, कमल सा नाजुक,पायल का भार क्यों दिए जा रही हो;
भीड़ में ख़ुद को यूं कष्ट देकर,जुल्म क्यों मुझपे किए जा रही हो |


प्यार की मूरत है ये सूरत तेरी,दूर क्यो मुझसे किए जा रही हो;
होगा क्या मेरा गर देखा न मुझको,अंदाजा नही तुम किए जा रही हो।


हुश्न है ऐसा कुछ कह नहीं सकता, अदाओं से मदहोश किए जा रही हो;
मिला है तुमको कुदरत से इतना, शृंगार क्यों उसपे किए जा रही हो ?

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