मेरे साथी:-

Monday, August 1, 2011

मुस्कुरा दिया करना

जिन्दगी रुठी भी रही तो शिकवा नहीं कोई,
बस जब तुझे देखुँ, मुस्कुरा दिया करना;
घाव भर जायेंगे देख कर ही तुझको,
जब पास तेरे आऊँ खिलखिला दिया करना ।

वर्षों की थकान यूँ ही मिट जायेगी,
नींद बनकर थोड़ा सुला दिया करना;
कभी-भी मन जब काठ बन जाये,
इतना एहसान करना,रुला दिया करना ।

समझ न पाऊँ गर दुनिया की रीत,
हौले से बस थोड़ा समझा दिया करना;
नफरत भरी दुनिया में झुलस जाऊँ थोड़ा,
द्वेष की आग को बुझा दिया करना ।

भाग तो रहा हूँ मंजिल की खोज में,
बैठ जाऊँ थककर, उठा दिया करना;
भाग-दौड़ की दुनिया में,जब भागता ही जाऊँ,
प्यार की छाँव में बिठा दिया करना ।

भुल जाऊँ हर जख्म, भुल जाऊँ हर गम,
सर पर बस हाथ फिरा दिया करना;
जुड़ा है तुझसे,हर श्वास, हर खुशियाँ,
बस जब तुझे देखुँ, मुस्कुरा दिया करना ।

Monday, July 25, 2011

कीमत

जिन्दगी की कीमत उन्हे क्या मालुम जो सुरक्षा चक्र के बीच घुमा करते है,
रोजाना सर पर कफन बाँध कर घर से निकलने वाले एक आम जन से पुछो कि जिन्दगी क्या चीज है ।

पानी का कदर उन्हे क्या मालूम जो घरों में स्विमिंग पूल बनवा कर रखते हैं,
दिन भर खून जैसा पसीना बहाने वाले मजदूर से पुछो की पानी क्या चीज है ।

रिश्तों का मतलब उन्हे क्या मालूम जो अक्सर रिश्ते बनाते और बिखेरते हैं,
स्टेशन पे भीख माँगते एक अनाथ बच्चे से पुछो कि अपनापन क्या चीज है ।

Sunday, July 10, 2011

अवतार: नन्ही-सी देवी का


नन्ही-सी देवी ने अवतार धर लिया,
मेरे मन मष्तिस्क को निसार कर दिया;
खुशियों की आज मेरी न सीमा है कोई,
बगिया को आज मेरे गुलजार कर दिया ।

सबको हँसी की सौगात देन आई,
दिल को एक सुन्दर जज्बात देने आई;
आना उसका सुखद है हम सबके लिए,
रत्नों के संग्रह में आफताब देने आई ।

जीवन के मुकुट में आज रत्न जड़ गया,
चलते-चलते रास्ता एक सोपान चढ़ गया;
"दीप" करे आभार जिसने दिया ये उपहार,
मेरे हृदय का आकार थोड़ा और बढ़ गया ।

Wednesday, July 6, 2011

कि मैं साथ हूँ

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ,
रहेंगी खुशियाँ पास
कि मैं साथ हूँ ।

करना मेरा विश्वास
कि मैं साथ हूँ,
न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

गम का बादल तुझपे कभी छाने नहीं दुँगा,
कमल-सा ये चेहरा मुर्झाने नहीं दुँगा ।
मुस्कान आयेगी रास
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

साथ ले चलुँगा तुझे, कभी खोने नहीं दुँगा,
टूट भी जाऊँ मैं भले, तुझे रोने नहीं दुँगा ।
रखुँगा तेरा आस
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

एक भी स्वप्न आँखों का कभी टूटने नहीं दुँगा,
जिंदगी की दौड़ में पीछे छुटने नहीं दुँगा ।
रहोगे तुम खाश
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

Saturday, July 2, 2011

गूंजेगी मीठी किलकारियाँ

मेरे घर गूंजेगी अब मीठी किलकारियाँ,
वो रुदन और क्रंदन अब अकसर सुनाई देगा |

खुशियों की भेंट लेकर कोई तैयार है पड़ा,
देवी कदम रखेगी या कोई देवदूत दिखाई देगा |

बगिया में मनके पुष्प खिलने है वाला,
महक उसका जीवन को नयी ऊंचाई देगा |

कोई कह रहा बालक, कोई बालिका है कहता,
पर एहसास उसके आने का मन को तरुनाई देगा |

हर अपना मेरा बेसब्र हो बाट जोह रहा,
गोद में कोई नया जाने कब अंगडाई लेगा |

माता-पिता, भाई-बहन प्रफुल्लित है बड़े,
उसके लिए प्रतीक्षा भी दिल को मिठाई देगा |

आभार है उनको जो उसे लाने है वाली,
ममता के छाँव में उनके वो जम्हाई लेगा |

हर्षित “दीप” बार-बार कहता है रब से,
कुशल मंगल आगमन की ये हृदय दुहाई देगा |

Thursday, June 30, 2011

चवन्नी की विदाई

( मित्रो, सुना है आज से अधिकारिक तौर पे चवन्नी का अस्तित्व ख़त्म कर दिया जायेगा | इसी बात पे मैंने अपनी ये कविता लिखी है | कृपया अपनी राय रखें |)

जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है,
तुझको रुख्सत करने वाली और कोई नही महँगाई है ।

देश से तेरा वजूद आज मिटने को है आया,
तुझपे भी समय का ये कोप है छाया |

पहला सिक्का बनके अठन्नी आज इठलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

मोल तेरा आज यहाँ रहा नहीं कुछ,
महंगाई की भेंट चढ़ सहा बहुत कुछ |

दस पैसा कबका गया, आज तेरी बारी आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

गरीबों और बच्चों की एक चाहत थी तुम,
दर-ब-दर भटकती, फिर भी राहत थी तुम |

कहने वाले कहते हैं, आर्थिक तरक्की आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

इस कृतघ्न समाज से विदाई शायद खुशनशीबी है तुम्हारी,
तुझको इस कदर भूलना शायद बदनशीबी है हमारी |

तेरी हंसी आज इस देश में कुम्भलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

Tuesday, June 28, 2011

दर्द-ए-ईश्क

दर्द-ए-ईश्क पत्थर को भी रुलाता है ऐ "दीप",
हर शख्स किसी न किसी के प्यार में खोया होगा;
यूँ ही नहीं गिरा करती हैं ओंस की बुँदे,
आसमान भी शायद किसी के गम मे रोया होगा ।

चकोर के दिल में भी उठती होगी चाँद के लिए हुक,
मयूर ने भी घटा संग प्रेम का बीज बोया होगा;
पत्थर दिल कहते हैं कि आँसू नहीं आते,
पर उसने भी किसी की याद मे आँख भिंगोया होगा ।

नदियों ने भी सौंपी होंगी सागर को ख्वाहिशे,
पौधे ने भी लताओ संग सपना संजोया होगा;
कभी खुशी तो कभी गम के आँसू देता ये दर्द,
इस दर्द को भी सबने सिद्दत से जीवन मे पिरोया होगा ।

Saturday, June 25, 2011

महँगाई से मोहब्बत

आज हर तरफ है छाई महँगाई,
हर एक के उपर आज आफत है आई,
महँगाई में ही सर्वोच्चता का दीदार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

हर किसी के होठों पे बस इसका नाम है,
महँगाई खाश है बाकि सब आम है,
महँगाई के बिना चल पाना दुस्वार हो गया,
ये देख के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

सरकार के नीति का ही कुछ गोलमाल है,
लफड़ा करुँ तो ये अपने ईज्जत का सवाल है,
हाथ खड़े करके ही अपना जीवन साकार हो गया,
इसलिए तो महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

परेशान तो हैं क्योंकि सबके बढ़ते दाम हैं,
पर क्या करें हम तो एक इंसान आम हैं,
सी नहीं सकता इसलिए जख्मों पे निसार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

सबके लिए मेरे पास एक राय है,
अगर आपके खर्च है ज्यादा और कम आय है,
आप भी कहो महँगाई का सबको खुमार हो गया,
आज से महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

Friday, June 24, 2011

मजा कुछ और है !!

किताबें तो पढ़ के बहुत आनन्द आता है,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।

बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।

रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।

बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।

औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।

अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर एक असहाय को सहाय देने का मजा कुछ और है ।

नींद में तो ख्वाबों का पुलिन्दा सा बँध जाता है,
पर जागती आँखों से स्वप्न देख लेने का मजा कुछ और है ।

प्रेम रस से सराबोर प्रेमी-प्रेमिका हैं फिरते,
पर अपने ईष्टदेव से भक्ति पुर्ण प्रेम करने का मजा कुछ और है ।

अपनी तो हजारों ईच्छा पूरी कर लेते हैं हम,
पर माँ-बाप के अरमान पूरा कर देने का मजा कुछ और है ।

अपनी जरुरत के लिए जंगल का जंगल उड़ा देते हैं हम,
पर प्यार से एक पेड़ लगा जाने का मजा कुछ और है ।

भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हम,
पर हृदय को भव्य बना लेने का मजा कुछ और है ।

जिन्दगी की अमिट साख पे मर ही मिटते हम,
पर जिन्दगी को जिन्दगी बना लेने का मजा कुछ और है ।

Monday, June 20, 2011

कवि हृदय मेरा

बचपन में जब नासमझ था,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।

बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।

हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।

फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।

समय के साथ मैं चलता रहा,
पढ़ाई के साथ ही पलता रहा,
पर धीमे-धीमे धीमा पड़ा,
ये कवि हृदय मेरा ।

दिल में तो एक ओज-सा था,
पर पढ़ाई का बोझ-सा था,
शिक्षा संग न चल पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

उच्च शिक्षा की बारी आई,
अभियंत्रण में हाथ लगाई,
किताबों बीच ही दबा रहा,
ये कवि हृदय मेरा ।

सेमेस्टरों में धँसा रहा,
परीक्षाओं में फँसा रहा,
साहित्य पटल पर चमक न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

अभियंता बन निहाल हुआ,
शादी कर खुशहाल हुआ,
पर उपेक्षित रह गया,
ये कवि हृदय मेरा ।

जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
समय की कमी से जूझ रहा हूँ,
पर आशा है सुप्त न रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

घर और नौकरी निभाना है,
जिन्दगी को भी भुनाना है,
सब के साथ बस जागृत रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

रचता रहूँ है कामना,
लेखनी को दूँ आराम ना,
पुष्ट और संतुष्ट रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

नहीं हूँ मैं कवि,
पर दिल में काव्य की है छवि,
भावनाओं संग छलक है पड़ता,
ये कवि हृदय मेरा ।

Thursday, June 16, 2011

शादी की सालगिराह मुबारक हो

'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।

इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )

(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)

Saturday, June 11, 2011

फूलों की तरह हँसो

फूलों की तरह हँसो, औरों की मुस्कान तू बन,
धन से तुम गरीब ही सही, दिल से ही धनवान तू बन ।

रात देख भयभीत न हो, सुबह होगी इंतजार तो कर,
दुनिया तुझसे प्यार करेगी,औरों से तू प्यार तो कर ।

पर्वत से भी राह मिलेगा, थक कर बस यूँ हार न तू,
तलाश ही ले तू अपनी मंजिल, मन को अपने मार न तू ।

जीत तुझको भी मिलेगी, राह पे अपने चल निकल,
"दीप" दिखा तू औरों को, राह भी तेरा हो उज्ज्वल ।

Thursday, June 9, 2011

उसने एहसान कर दिया

आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया,
मैं तो था एक अदना प्राणी उसने एक सुलझा इंसान कर दिया ।

सुबह से लेके शाम तक मेरे ही फिक्र में रहती वो,
गम को जीवन में चंद लम्हों का मेहमान कर दिया ।

भटक रहा था नभ में बिना किसी लक्ष्य को लिए,
लक्ष्य देकर मुझको कर्म को मेरा ईमान कर दिया ।

गुलजार कर दिया उसने मेरे हर एक लम्हे को,
हर एक पल खुशियों से मेरा मिलान कर दिया ।

हर एक जिंदगी में मैं उससे ही मिलता रहुँ,
मेरी जिंदगी में वो रहे रब से ये एलान कर दिया ।

भगवान का शुक्रगुजार हूँ वो मुझको है मिली,
आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया ।

Friday, June 3, 2011

आज के लोग

नकाब पे नकाब लगाते हैं लोग,
अपनी असल पहचान छुपाते हैं लोग,
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
और बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।

जाने कितने ही रिश्ते बनाते हैं लोग,
पर कितने रिश्ते निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे लोग होशियार हो चले,
काम निकल जाने पे भूल जाते हैं लोग ।

वादे पे वादे किये जाते हैं लोग,
उन वादों से अकसर मुकर जाते हैं लोग,
भरोसा आखिर करे तो किसपे ऐ "दीप",
भरोसे तो अकसर तोड़ जाते हैं लोग ।

इंसानों को ही अकसर सताते हैं लोग,
दुश्मनी भी शान से निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे इंसान ही इंसान का दुश्मन,
इंसान से शैतान भी बन जाते हैं लोग ।

अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
पर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता नहीं ऐ "दीप",
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।

प्रकृति की कृति बदल जाते हैं लोग,
भगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ताक में रखकर मानवता को "दीप",
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।

Sunday, May 29, 2011

इंसान तू खुद को पहचान

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं ।

पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।

खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान की नियति का कद्रदान हूँ ।

जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।

मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये सुरुर है ।

अपनों का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण हैं ।

हर किसी से किसी न किसी को आस है,
इसलिए हर इंसान अपने आप में खास है ।


बड़ा वो नहीं जिसके पास बहुत ज्ञान है,
महान तो वो है जिसे खुद की पहचान है ।

(शीर्षक का सुझाव-पूनम श्रीवास्तव)

Friday, May 27, 2011

नेता बन जाते तो...

संसद में हंगामा हम भी खुब मचाते,
उद्घाटन समारोह में हम भी खुब जाते,
हम तो अंतर्मुखी बन घर में बैठ गए,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

भाषणबाजी में दो कदम आगे बढ़ जाते,
आरोप प्रत्यारोप हम भी खुब लगाते,
माँ ने कहा बेटा अच्छा इंसान बन,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

झुठे वादे कर मूर्ख हम भी खुब बनाते,
चुनाव जीतकर जनता के पास भी न जाते,
गुरुजी ने सिखाया था झुठ नहीं बोलना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

विदेश भ्रमण का संयोग हम भी कुछ लगाते,
बाहुबलि बन हर तरफ रौब हम जमाते,
जमीर ने कहा सदा भला काम करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

लाल बत्ती लगा गाड़ी हम भी खुब दौड़ाते,
बड़े-बड़े अफसरों को हम भी पीट आते,
अंतर्मन ने कहा कभी दिखावा नहीं करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

स्विस बैंक में खाता हम भी एक खुलवाते,
काली कमाई को उसमे आराम से छुपाते,
'काला धन राख समान' सीखा है हमने,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

दो-एक बार भले जेल भी हम जाते,
पैसों के बल पे अपनी ईज्जत हम बचाते,
पिताश्री ने बेटे को इंजीनियर बना दिया,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

Tuesday, May 24, 2011

हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता

राह-ए-जिन्दगी में करोड़ों से होती है मुलाकात,
ऐ "दीप" हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता ।
समन्दर में चाहे जिस ओर मोड़ लो कश्ती,
अफसोस! हर तरफ एक किनारा नहीं होता ।
चंद लोग हर कदम पे चलते साथ-साथ,
सब लोग के मरजी पे वश हमारा नहीं होता ।
चंद लोग ही सफर को आसाँ हैं करते,
हर कोई दिल-ए-गुलजार तुम्हारा नहीं होता ।
सफर में गर कोई छोड़ देता है हाथ,
चंद साथ के छुटने से कोई बेसहारा नहीं होता ।
निकाल लो चाहे झील से कुछ पानी,
उस पानी के लिए झील कभी बेजारा नहीं होता ।

Wednesday, May 18, 2011

भ्रष्ट पच्चीसा

                भ्रष्ट समाज का हाल मैं,       तुमको रहा सुनाय |
                भूल भयो तो भ्रात, मित्र, झापड़ दियो लगाय    ||

                ज्यों सुरसा का मुख बढे,      वैसो फैलत जाय |
                हनुमान की पूंछ सम, अंत न इसका भेन्ताय ||

देश की दुर्गत हाल भई है      | जनता-जन बेहाल भई है ||
बसते थे संत नित हितकारी | आज पनपते भ्रष्टाचारी |१|

राजनीति व नेता, अफसर    | ढूंढ़ रहे सब अपना अवसर    ||
मधुशाला में जाम ज्यों होता | व्यभिचार अब आम यूँ होता |२|

ज्यों बालक फुसलाना होता | वैसा घुस खिलाना होता        ||
एक कर्म नहीं आप ही होता | बिन पैसा सब शाप ही होता |३|

काम चाहिए अगर फटाफट    | जेब भरो तुम यहाँ झटाझट ||
बिन पैसा पानी भी न मिलता | पैसों से सरकार भी चलता |४|

जब हो सब यूँ भ्रष्टाचारी      | तब पैसों की महिमा प्यारी ||
सोकर चलती तंत्र सरकारी | गर्व करो ये राज हमारी     |५|

लोकपाल बिल है लटकाई | कई की इससे सांशत आई ||
देशभक्त बदनाम हो चलते | निजद्रोही निज शान से फलते |६|

गाँधी भी निज नेत्र भर लेते | गर देश दशा दर्शन कर लेते ||
कह जाते मैं नहीं हूँ बापू      | भला होई तुम मार दो चाकू |७|

ऐसे न था सोच हमारा      | देश चला किस राह तुम्हारा ||
यह नहीं सपनों का भारत | खो गया अपनों का भारत |८|

राज्य, देश सब एक हाल है | भ्रष्टों का यह भेड़ चाल है   ||
है हर महकमा बेसहारा      | भ्रष्ट ने सबमे सेंध है मारा |९|

फ़ैल चूका विकराल रूप है | ज्यों फैला चहुँओर धुप है      ||
जस जेठ की गर्मी होती    | तस तापस ये भ्रष्ट की नीति |१०|

जो समझे ईमान धर्म जैसा | वो मेमना श्वानों मध्य जैसा ||
सत्य मार्ग पे जो चल जाये | जग में हंसी पात्र बन जाये  |११|

सच्चों का यहाँ एक न चलता   | गश खाकर बस हाथ ही मलता ||
जो ध्रूत चतुर चालाक है बनता | उसका ही संसार फल-फूलता |१२|

अपना है यह देश निराला | चाँद लोगों ने भ्रष्ट कर डाला     ||
लोग स्वार्थी हो रहे नित   | को नहीं समझे औरों का हित |१३|

स्वार्थ ही सबको भ्रष्ट बनाता | स्वार्थ ही सब कुकर्म करता    ||
स्वार्थ है सबके जड़ में व्याप्त | स्वार्थ ख़तम हर भ्रष्ट समाप्त |१४|

महंगाई का अलग तमाशा   | बीस कमाओ खर्च पचासा ||
घर का बजट बिगड़ता जाये | चीर निद्रा में राजा धाये  |१५||

महंगाई अम्बर को छूता    | धन, साधन कुछ नहीं अछूता ||
जन-जन ही बेहाल हुआ है | दो-एक मालामाल हुआ है    |१६|

अब धन निर्धन क्या कमाए | क्या खिलाये क्या वह खाए           ||
महंगाई ने कमर है तोड़ी      | आम जन की नस-नस है मरोड़ी |१७|

सरकारी धन अधर में लटका | बीच-बिचौलों ने सब झटका ||
एक नीति न धरा पर आई     | कागज में होती है कमाई   |१८|

सरकारी हैं बहुत योजना        | सब बस अफसर के भोजना  ||
जो नित नीति के योग लगाते | स्वयं ही उसका भोग लगाते |१९|

मन मानस पर ढूंढ है छाई       | देश को खुद है उबकी आई            ||
स्वयं समाज है जाल में उलझा | राजनीति एक खेल अन-सुलझा |२०|

पढ़ ले जो यह भ्रष्ट पचीसा | निज मन नाचे मृग मरीचा   ||
भ्रष्टाचार जो मिटाने जाई        | खुद अपनी लुटिया है डूबाई |२१|

मत समझो इसे लिट्टी चोखा | दिन दुनिया का खेल अनोखा  ||
गहराई में उतर चूका यह        | रक्त-रक्त तक समा चूका यह |२२|

जम चूका है बा यह बीमारी | फ़ैल रहा बनके महामारी        ||
कहीं तो है यह भूल हमारी   | जिम्मेदारी लें हम सब सारी |२३|

जन-जन को ही बदलना होगा   | हर भारतीय को सुधरना होगा ||
सब अपना चित निर्मल कर लें | गंगा सम मन निर्मल कर लें |२४|

भ्रष्टाचार न हो नाग हमारा    | ऐसे देश जाये जाग हमारा        ||
कहे "प्रदीप" ये राग हमारा   | स्वच्छ समाज हो भाग हमारा |२५|

            सुन्दर स्वप्न देख लिया, हो भ्रष्टाचार विमुख        |
            देश हमारा यों रहे ज्यों,   गाँधी स्वप्न सन्मुख ||

चौखट

चौखट के भीतर का जीवन जीने को मजबूर थी जो,
सहमी हुई सी, दर से दबकर जीने को मजबूर थी जो |

पहले पापा के इज्ज़त को चौखट भीतर बंद रहना,
शादी बाद सासरे में चौखट का उसपे पाबंद रहना |

सपना कोई देख लेना उसके लिए गुनाह होता था,
जीवन जीने का लक्ष्य उसका बच्चे और निकाह होता था |

वो अबला अब बलशाली बन चौखट का दंभ तोड़ चुकी है,
वो नारी स्वयं अपने पक्ष में हवा के रुख को मोड़ चुकी है |

नैनों में चाहत भी होती लक्ष्य भी इनके अपने होते,
चौखट और वो चाहरदीवारी अब तो बस वे सपने होते |

कोई काम नहीं धरा में इनके बस की बात नहीं जो,
कोई बात नहीं रहा अब इनके हक की बात नहीं जो |

नीति से राजनीति तक हर क्षेत्र में इनकी साझेदारी है,
देश रक्षा से रॉकेट साईंस तक हर चीज में भागेदारी है |

चौखट के भीतर-बाहर, हर तरफ सँभाले रखा है,
अबल से सबला बनकर भी मर्यादा भी सँभाले रखा है |

हर जिम्मा अब अपना इनको खुब निभाना आता है,
घर, गाड़ी या देश हो इनको सब चलाना आता है |

पुरुषों से कंधा हैं मिलाती देश की नारी नहीं है कम,
इस आँधी को बाँध के रखले,चौखट में नहीं वो दम |

Saturday, May 14, 2011

ऊफ्फ ये गर्मी!!!

मौसम की ऱौद्रता हुआ अब बेहाल करने का सामान,
जो जितना गरीब है वो उतना परेशान।

महलों वाले जेनरेटर और ए.सी. में सोते है,
आमलोग ही बस पशीने में खुद को भींगोते हैं।

भूतल का जल कहने लगा- भई माफ करो मैं नीचे चला,
आसमान को मत देखो, ये मेघ भी मुँह फेर निकला।

नेतागण तो इस गर्मी भी हाथ सेंकते जाते है,
जनता की कमाई खाते है और उसी को रुलाते जाते है।

विद्युत का हालत वैसा है, यह भी कभी सुलहा है?
बिजली विभाग परेशान बेचारा घोटालो में उलझा है।

मौसम और सरकार की मार बस आमजन को तड़पाती है,
ऊफ्फ ये गरमी, आह ये वर्षा, हाय ये सर्दी सताती है।

Tuesday, May 10, 2011

माँ

जीवन की रेखा की भांति जिसकी महत्ता होती है,
दुनिया के इस दरश कराती, वह तो माँ ही होती है |

खुद ही सारे कष्ट सहकर भी, संतान को खुशियाँ देती है,
गुरु से गुरुकुल सब वह बनती, वह तो माँ ही होती है |

जननी और यह जन्भूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती है,
पर थोडा अभिमान न करती, वह तो माँ ही होती है |

"माँ" छोटा सा शब्द है लेकिन, व्याख्या विस्तृत होती है,
ममता के चादर में सुलाती, वह तो माँ ही होती है |

संतान के सुख से खुश होती, संतान के गम में रोती है,
निज जीवन निछावर करती, वह तो माँ ही होती है |

शत-शत नमन है उस  जीवट को, जो हमको जीवन देती है,
इतना देकर कुछ न चाहती, वह तो माँ ही होती है |

Monday, May 9, 2011

चल एकल

थक कर अब न बैठ तू, है दूर नहीं अब मंजिल,
हो कोई नहीं जब साथी, पथ पर चल तू एकल ।

तिमिर तम हो चहुं ओर, दीपक तू कर उज्ज्वल,
सह राही की राह न देख, पथ पर चल तू एकल ।

हिम्मत को न हार तू, धैर्य रख हो सबल,
आशावान, कर्तव्यनिष्ठ बन, पथ पर चल तू एकल ।

कष्टों से भयभीत न हो, भय कर देगा निर्बल,
सहनशील और सत्यशील हो, पथ पर चल तू एकल ।

राह अगर न दृष्य हो, गढ़ अपनी राह तू निकल,
दृढ निष्चय कर बढ़ चल, पथ पर चल तू एकल ।

Friday, April 8, 2011

देश तुम्हारे साथ है अन्ना

भ्रष्टाचार पर तीर की भाँति,
अन्ना आँधी चल निकली है।
भ्रष्टाचारियों!! सावधान अब,
जनता भी जगने चली है।

लोकपाल बिल हो मंजूर,
जनता की भी भागेदारी हो।
सख्त नियम और सख्त कदम हो,
भ्रष्टों की न साझेदारी हो।

हाथ से हाथ जुड़ते ही रहे,
देशहित में सब साथ हो चलें।
यह आँधी बस कामयाब हो,
हम अन्ना के हाथ बन चलें।

देशभक्ति के भाव को दिल में,
फिर से अब जगाना होगा।
गोरों को गाँधी ने खदेड़ा,
हमे अपनो को भगाना होगा।

अन्ना ने जो दी है ज्वाला,
इसे अग्नि बनाना होगा।
अन्ना के संग सर उठाकर,
भ्रटाचार जलाना होगा।

क्रांति की अगणित मशालें,
अब हमारे हाथ है अन्ना।
तुम अकेले नहीं हो यहाँ,
देश तुम्हारे साथ है अन्ना।


भारत माता की जय।

Thursday, April 7, 2011

जीत लिया हमने जहाँ

क्रिकेट की दुनिया के सिरमौर हो गए,
कन्गारुई बादशाहत खो गई कहाँ;
लहराया तिरंगा अब दुनिया में यारों,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

सचिन का सपना अब पूरा हुआ,
वर्षों का सुखा आज मिटा यहाँ;
धोनी बन उभरा है अगला कपिल,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

खुशी के आँसू हर आँखों में आए,
गदगद हो झुमे सब जहाँ-तहाँ;
गौरव में सर फिर ऊचाँ उठा,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ|

टेस्ट के बादशाह तो हम पहले ही थे,
एकदिवसीय के अब हुए शहंशाह;
सानी हमारी हर एक ने मानी,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ

युवी की रौनक, सचिन की चमक,
धोनी की धमक में खोया जहाँ;
विराट, गंभीर,जहीर के दम पे,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ .

जश्न-ए-विजय है बदस्तुर जारी,
भारतीय गौरव गाथा में डूबी फिजा;
गर्व से बोलो, अब विश्व कप है अपना,
लो जीत लिया है अब हमने जहाँ .

Tuesday, February 15, 2011

कविता

" जब कवि का उर बिंध जाता है अचूक वेदना के सर से,
तब झर-झर कविता बहती है कवि के अंतर से |"

ये कविता क्या है? मानव ह्रदय का उदगार है,
भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक रूप है,
और पूरी श्रृष्टि का इसमें समाहार है|
जब उर में कोई अमिट और करुण वेदना का संचार होप्ता है,
उसमे विचारों और भावनाओं का अम्बार होता है,
तब आँखों से नीर का बहाव और ह्रदय से कविता का उदभव होता है;
सब कुछ सरल अभिव्यक्ति होती है कुछ ना इसमें वैभव होता है|

ह्रदय की कोई बात जब होठों तक आकर अटक जाती है,
कविता बनकर तब वह स्वयं बाहर उमड़ जाती है|
मुख्यतः प्राकृतिक सौंदर्य और भावना ही इसका मुख्य आधार होता है,
पुरे ब्रह्माण्ड में ही कविता का विस्तार होता है|
रवि की किरण की भी जहाँ अक्षमता होती है,
वहां भी पहुचने की इसमें क्षमता होती है|

इसे शब्दों में बांधने की कोशिश एक बहुत बड़ी गुश्ताखी है,
मैं ये कर रहा हूँ पर पहली गलती के लिए माफ़ी है|
कलम-कागज़ से वर्णित करना अगर इतना ही सरल होता,
लाखों तर गए होते और किसी एक को महान कहना विरल होता|
छोड़ रहा हूँ कोशिश इसे वर्णित और अलंकृत करने को शब्द नहीं हैं,
यह स्वयं इतना विस्तृत और लोकचर्चित है की कुछ और कहने की जरुर नहीं है|

मोमबत्ती

एक मोमबत्ती जलती जाती,
जल-जल के कुछ कहती जाती;
ताप में खुद को पिघलाती,
रौशन जहाँ को कर जाती|

एक धागे से संजोग बनाती,
अद्भुत लौ ये दिखलाती;
तूफ़ान से अगर ये लड़ जाती,
जब तक न बुझे लडती जाती|

हर मानव को कुछ सिखलाती,
मानवता का ये पाठ पढ़ाती;
परहित ही सर्वोपरि है,
खुद जलकर सबको बतलाती|

हर कष्ट को खुद ही सह जाती,
औरों का भला करती जाती;
क्षण-क्षण विलुप्त होती जाती,
पर हर पल को दहका जाती|

हर किरणें उसकी समझाती,
लड़ने का बल ये दिलवाती;
अंतर्मन में उल्लास ये भरती,
खुशियों के दरश ये करवाती|

माना की ये गलती जाती,
पर पुनः पुनः जमती जाती;
उठ-उठ कर तुम लड़ते जाओ,
इस जोश को हममे भर जाती|

Monday, February 14, 2011

समय का आतंक

सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज सी आती है,
मन थोड़ा भयभीत पर एक खौफ जगा जाती है।
हृदय उद्वेलित हो उठता है, हर रोम उसक सा जाता है,
ये कौन-सी ऐसी विपदा है या कोई अनर्गल बातें है,
ये कौन-सा ऐसा भय है जो दिकभ्रांत कर जाता है।
ये आवाज नहीं बस खौफ है जो अंतर्मन में व्याप्त है।
जोश विडंबित बैठा है और सुस्त भुजायें सोई हैं।
काल पे कोई जोर नहीं,ये काल का ही कमाल है;
ये जाल बड़ा ही उत्कृष्ट है,है ये समय का आतंक।


है काल का ये रौद्र रूप एक अदना मानव क्या करे?
भयाक्रांत हो निर्जीव-सा माटी का मूरत क्या करे?
हर 'लम्हा' इसके सैनिक हैं, हर 'कष्ट' ही इसका वार है।
भाग्योदय का सोचे कैसे? ये भाग्य भी इसके वश में है।
है घेर रखा चहुँ ओर से, ये बड़ा विलक्षण पहरा है।
हर एक क्षण आतंकित है, पल-पल डर से ठहरा है।
'सोच' तो कुंठित हो चुका, और जंग लगी है 'समझ' में।
ये दोष नहीं अपना कोई, ये भाग्य और काल का चाल है;
ना हो सकता कुछ भी भला, है ये समय का आतंक।

(सब कहते है "टाईम अच्छा नही चल रहा यार"। उसी स्थिति का मैने चित्रण करने की कोशिश की है।)

Friday, February 11, 2011

प्रेमोत्सव या प्रेम का व्यापार

आज सुबह समाचार पत्र पर अचानक से नजर पड़ी,
"वेलेनटाईन डे की तैयारी" शीर्षक कुछ अटपटा सा लगा।
हृदय मे कुछ दुविधा उठी,
मन ही मन मै सोचने लगा|

वेलेनटाईन डे के नाम पर ये क्या हो रहा है?
कई फायदा उठा रहे है कईयों का कारोबार चल रहा है।
एक खाश दिन को प्रमोत्सव पता नहीं किसने चुना,
प्रेम अब हृदय से निकल के बाजार मे आ गया है।
व्यापारीकरण के दौर मे प्यार भी व्यापार हो गया है।
ग्रिटिंग्स कार्ड, बेहतरीन गिफ्ट्स, यहाँ तक की फूलो के भी दाम है
हर चीज अब खाश है बस प्रेम ही आम है।

कुछ इसे मनाने की जिद मे अड़ते रहते है,
कुछ संस्कृति के नाम पे इसे रोकने को लड़ते रहते है।
पर सोचने वाली बात है कि सच्चा प्रेम है कहाँ पे?
पार्क में घुमना, होटल में खाना प्रेम का ही क्या रूप है?
भेड़ों की चाल में शामिल हो जाना ही जिन्दगी है तो,
ऐसी जिन्दगी में सोचने की जगह ही कहाँ है?

अगर सच्चा प्रेम है तो क्या उसका कोई खाश दिन भी होता है?
हर दिन क्या प्रेम के नाम नहीं हो सकता?
क्या मानव होकर हर दिन हम मानव से प्यार नहीं कर सकते?
हर दिन किसी  से या देश से प्यार का इजहार नहीं कर सकते?
जो भी हो पर मष्तिष्क की स्थिति यथावत ही है,
मतिभ्रम है और ना थोड़ी सी राहत ही है।
पर किसी न किसी को तो सोचना ही होगा,
आगे आके गलतियों को रोकना ही होगा|
मष्तिष्क मे आया कि जेहन मे ये ना ही आता तो अच्छा था।

क्रिकेट का खुमार

हर कोई है खोया आज क्रिकेट के खुमार में,
जकड़े गये हैं सब आज विश्व कप के बुखार में।

प्रेमोत्सव के उत्साह में भी थोड़ी-सी कमी आई है,
विभिन्न दलों के गणित में सबने अकल लगाई है।

राह की हर मुश्किल को अब भारत कुचलता जायेगा,
बड़बोलेपन वाला हर दल अब तो फिसलता जायेगा।

धोनी, विरेन्द्र, गौतम, भज्जी और युवी पे दाव है,
सचिन, जहीर, पठान का पावर दिख जाये बस चाव है।

अश्विन, नेहरा, श्रीशंत, चावला, मुनाफ हैं बेताब से,
सुरेश रैना, विराट कोहली उभरेंगे तेजाब से।

हर शख्स समीक्षक बन गया, लगा है समीक्षा में,
अपना भारत विजयी बने, दिन रात कटे इस इच्छा में|

एक-एक दिन का इंतजार अब बेहाल कर चला है,
विश्व कप की आशा सबको निहाल कर चला है।

क्रिकेट की दीवानी जनता ईश्वर से मनोहार में लगी है,
अपने लाडले "सैनिकों" को शुभकामना के गुहार में लगी है।

क्रिकेट के खुमार को दिल में धर्म-सा संजोए हैं,
एक सूत्र की तरह यह पूरे राष्ट्र को पिरोए है।

कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर, हर किसी की तमन्ना है,
गुजरात और असम सब सोचे की विश्वकप अब अपना है।

खुमार ये रग-रग में सबके सर चढ़के बोलता है,
स्कोर पुछके किससे भी रन रेट को हरकोई तोलता है।

खुशी है कि यूँ कटुता पे ब्रेक तो हो जाता है,
हर जाति हर धर्म का दिल आज एक तो हो जाता है|

Wednesday, January 26, 2011

सबसे विराट गणतंत्र हमारा

सच है कि हर जन-गन-मन आज प्याज के आँसू रोता है,
पर ये भी सच कि अपना भारत सूरज बन चमकता है।

नेता,अफसर शासक में कुछ सच है कि हैं भ्रष्टाचारी,
कठिन डगर में लेकिन फिर भी ऊँची हुई मसाल हमारी।

सौ कोटि हम हिन्दुस्तानी सौ टुकड़ों में रहते हैं,
पर सौ कोटि हम एक ही बनके दुनिया का ताज पहनते हैं।

नई दुल्हन को बिठाये हुए लुट जाए कहार की ज्यों पालकी,
चंद लोगों ने कर रखी है आज हालत त्यों हिन्दुस्तान की।

सामरिक,आर्थिक,नैतिक बल में भारत जैसा कोई नहीं है,
धर्मनिरपेक्षता,एकता,अखंडता,मानवता में हमसा कोई नहीं है।

खेल जगत में उदीयमान हिन्द भारत भाग्य विधाता है,
हर क्षेत्र में मजबूत ये धरिनी, महिमा हर कोई गाता है।

पूरब से लेके पश्चिम तक है साख फैलाये जनतंत्र हमारा,
हर एक देश ने माना लोहा, है सबसे विराट गणतंत्र हमारा।

( इस गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
हम सबको एक भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए।
मेरा देश महान। )

Thursday, January 20, 2011

क्यों मिलती नहीं है मौत भी

जिंदगी भी यहाँ साँस लेने को तरसती है,
खुशी भी खुद नाखुश है,
गरीबों को महँगाई मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

हौसले वाले भी पस्त पड़े हैं,
साहस भी भयभीत है,
हर राह बड़ा ही दुष्कर है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

जीत स्वयं हारा खड़ा है,
सरकार ही लाचार है,
हर तरफ से बस भय मिला है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

महँगाई डायन बनी हुई है,
सुकून ही स्वयं बेचैन है,
दो रोटी गर मिलती नहीं है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

व्यवस्था ही अव्यवस्थ है,
स्वस्थता पूरी अस्वस्थ है,
मौसम की भी मार लगी है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

आँसुओं का सागर भी सुखा पड़ा है,
लाश बनके सब चल रहे हैं,
जिंदगी गर मिलती नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

गरीबी भी शर्मिंदा है,
लोग किसी तरह जिंदा हैं,
हरपल की असुरक्षा मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

कोई नहीं जो समस्या देखे,
सब अपना हित साधते है,
आम जन को गर राहत नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

Wednesday, January 19, 2011

एक अलग दुनिया

सोचता हूँ बस जाए अपनी एक अलग दुनिया,
जहाँ बस अपने हो,प्रेम हो,सौहार्द हो।
न कोई त्रस्त हो न कोई भ्रष्ट हो,
न कोई दगा दे,न कोई सजा दे,
न कोई नेता न राजनीति हो,
न कोई पुलिस न हो कोई कानून,
अपनत्व की धारा हो,
सब एक दूसरे का सहारा हो।
अपनो का साथ हो, सिर में बड़ों का हाथ हो।
उज्ज्वलता ही चारों ओर हो, पँछियों का कर्णप्रिय शोर हो,
जिन्दगी खुशहाल रहे, हर आशायें बहाल रहे;
संजीदगी से जीवन-यापन करे हर कोई,
बैर-वैमनस्य का कहीं कोई नाम न हो।
वह दुनिया हो, हसीन वह दुनिया हो मलिन,
ऐसे ही हो मेरी एक अलग दुनिया।

Saturday, January 8, 2011

पहली मुलाकात

( अपनी धर्म पत्नी, अपने प्यार के साथ पहली मुलाकात के वास्तविक पल को मैंने कविता के रूप में लिखने कि कोशिश कि है, पता नहीं मेरी कोशिश कहाँ तक सफल हुई है  )

दिल में बसी थी एक सूरत, होठों पे एक नाम था;
वास्तविकता से कुछ परे नहीं था, फिर भी मैं अनजान था |

मन में कई उन्माद थे, दिल में भी एक जूनून था;
ऑंखें दो से चार कब होंगी, सोच कर न सुकून था |

बस एक छवि है जिसकी देखि, वास्तविकता उसकी क्या होगी;
कुछ खुशियाँ तो कुछ उलझन भी थे, प्रतिक्रिया उसकी क्या होगी |

कशमकश में ही रात कटी थी, आने वाली सौगात जो थी;
पल-पल भी मुश्किल हो चल था, होने वाली मुलाक़ात जो थी |

शमाँ भी कुछ अजीब-सा था, जिंदगियों का वहां झोल था;
रेलगाड़ियों का ही शोर था, वह स्टेशन का माहौल था |

सुबह का खुशनुमा वक़्त था, रंगीला मौसम चहुँ और था;
तनहाइयाँ नहीं, बस भीड़ थी, पर न जाने वो कीस ओर था |

धड़कने तो तेज उधर भी होंगी, लब भी उनके फड़फड़ाते होंगें;
पहली मुलाकात ये कैसी होगी, सोच के वो भी घबराते होंगे |

ये सोच के मैं दिल ही दिल में, दिल को तसल्ली देता था;
घबराहट कहीं सामने न आये, धडकनों को यूं समझाता था |

वो घडी तब आ ही गयी, चितचोर थे जो सामने आते;
अब तक जिसे बस दिल में देखा, वो आँखों के सामने आते |

धडकनों को तेज होना ही था, मन भी तब कुछ घबराया;
होठों पे मुस्कराहट थी आई, पहली मुलाकात का वक़्त जब आये |

हजारों के बीच जब उनको देखा, हम वही बस ठिठक से गए;
उनकी नज़रें भी मुझपे पड़ी, ओर उनके कदम भी रुक से गए |

नज़रों से नज़र का सामना जब हुआ, दिल में अजीब एक हुक सा लगा;
हजारों नहीं, बस हम ओर वो थे, दो पल के लिए कुछ ऐसा लगा |

उन भूरी आँखों में बस गहराई थी, उन गहराइयों में बस प्यार था;
फूलों से भी कोमल लब थे, मुस्कान का उनमे भण्डार था |

मुस्कुराता हुआ वो भोला चेहरा, जिसे अब तक था दिल में छुपाया;
जो कुछ भी था हमने सोचा, दिल ने तो कुछ बढ़कर पाया |

हाथों का स्पर्श जब हुआ, खुशियों के बादल छा गए;
नज़रें उनकी देख कर लगा, प्यार के बरसात आ गए |

कानों कि प्रतीक्षा भी टूटी, लब भी उनके खुल ही गए;
दिल कि बात को दिल ही दिल में, वो हमसे सब बोल ही गए |

थोड़ी -सी शर्म, थोड़ी-सी हया, घबराहट में उनके वो बोझिल कदम;
साथ-साथ हम चल ही पड़े थे, ये साथ निभाना है हरदम |

दिल से दिल का था रिश्ता पुराना, आँखों से आँखों कि थी पहली मुलाकात;
बातें तो कुछ खाश ना हुई, पर दिल ने किये हजारों बात |

ऐसे ही कुछ अजीब-सी थी, प्यार से वो पहली मुलाकात;
खुशियों का सागर छलका था, मचले थे दिल के जज्बात |

खाश न होकर भी खाश थी, पहली मुलाकात का वो पल;
जिंदगी के हर एक मोड़ पर, याद आएगा वो हर पल |

Friday, January 7, 2011

आशातीत

तेज हवा के झोंको में बैठा, जब पत्तियों को इनके साथ उड़ते देखता हूँ;
सोचता हूँ काश !
पत्तियों की तरह हवा के साथ मैं भी उड़ पाता |

चांदनी रात में खामोश बैठा, जब धरती को रौशनी में नहाये देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
ऐसी ही धवल उज्ज्वलता मैं भी सबको दे पाता |

राहों में जब चलते-चलते वृक्षों को मदमस्त हो लहराते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सभी ग़मों को भूल ख़ुशी में, मैं भी ऐसे ही लहरा पाता |

राह के अँधेरे में जब आसमान में तारों को टिमटिमाते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
इस बोझिल जिंदगी का चोला उतार, मैं भी आसमान में टिमटिमा पाता |

सोती-जागती आँखों से जब, कई सुनहरे और चल सपने देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सपनों कि मानिंद जिंदगी को भी, ऐसे ही साकार कर पाता |

नज़रों के सामने झुरमुठों में, पक्षियों को जब किलोलें करते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
अपना भी जीवन इनकी तरह, चंद लम्हों का खुशियों से भरा हो पाता |

निर्जीव-सा पड़ा हुआ, आँखों को मूँद सुन्या में देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
खुद में भी ऐसी शक्ति होती कि आशातीत कि आशा कभी न कर पाता |

वो आँखें

वो आँखें झील की जैसी, प्यार ही प्यार है जिसमे,
अपनत्व की उमड़ती धारा, उसमे ही तकदीर नज़र आती है |

भोली-भाली सी आँखें, बोझिल होती सपनो के भार से,
प्यार के जल की छलक जिसमे, उसमे ही तस्वीर नज़र आती है |

आकान्छाओं से भरी वो आँखें, लेकर तमन्नाओ का सागर,
चाहत पूरा करने की जिसमे, उसमे कल्पना की ज़ंजीर नज़र आती है |

मोतियाँ ढ़ोती वो भीगी आँखें, कुछ कहने को उतावली-सी,
दिल की बातों का पुलिंदा लिए, उसमे इशारों की तफ़सीर नज़र आती है |

खुलती बंद होती सी पलकें, होठों की मुस्कराहट को समेटे,
खुशियों को पाकर खुश होती, उसमे अपनों की तहरीर नज़र आती है |

जीवन रस से भरी आँखें, देखकर ही जिसे जीवन मिल जाये,
जीने की चाहत-सी जगाती, उसके बिना जिंदगी गैरहाज़िर नज़र आती है |

आधुनिकता

आधुनिक बनने कि होड़ में, भूल गए हम नैतिक मूल्यों को ;
पूरखों से आ रही शिक्षा को, भूल गए हम शिष्टता और मानवता को |

चाहा था जिसे पूर्वजों ने कभी, पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता ही जाये ;
अफ़सोस ! न समझे, हम नासमझ, लात मारी किया दूर उन रत्नों को |

रहने का ढंग, बोलने का चलन, पहनावा आदि कई जीवन के रंग ;
बद से भी बदतर हुए जा रहे, फिर भी है न होश हम अनजानों को |

गीता के मर्म भी हमे दिखते नहीं, राम-जीवन का गुढ़ भी नहीं है पता ;
दुनिया संग हम भी चकाचौंध के मारे, क्या हो रहा है ये खबर किसको ?

छाता है बादल आसमान पर भी, पर रहता नहीं वह सदा के लिए ;
पर आधुनिकता जो छाया है हम पर, बड़ा मुश्किल हटाना है इस बादल को |

कल तक जिसे थे अनैतिक समझते, उसको भी इसने जायज कर दिया ;
कुछ भी करते हैं नाम इसका लेकर, ताक में रख कर अपनी संस्कृति को |

चादर को ओढ़ आधुनिकता की, अंधों की दौड़ में दौड़े जा रहे ;
खड्ड में जा गिरे या हो अपना पतन, भाई मोडर्न हैं ! रोको मत हम दीवानों को |

मोडर्न ! मोडर्न ! सब चीखे जा रहे, मृगतृष्णा के पीछे चले जा रहे ;
पर अब तक किसी ने भी देखा नहीं, क्या खो रहे हम और इसकी कीमत को |

अजनबी

सफ़र पर न जाने था कब से अकेला, चारों तरफ बस वीराना ही था |
पल-पल बिताना भी था अति दुष्कर, फिर भी मैं मंजिल को भूला न था |

मंजिल को पाने की चाहत में मैं, काँटों के पथ पे भी चलता रहा |
सपनो को अपने संजोये हुए, कदम दर कदम मैं बढ़ाता रहा |

एक मोड़ पर अचानक मिला अजनबी, होठों पे उसकी एक मुस्कान थी |
उसने देखा मुझे कुछ अपनों की तरह, वर्षों से ज्यों उससे पहचान थी |

अब तो सारा समां बस सजग हो उठा, बहारें खिजां पे अब लदने लगी |
मेरा सूना डगर खिलखिलाने लगा, सफ़र की लगन अब बदलने लगी |

चले आने से संग में उस अनजाने के, कांटें भी तो फूल बनने लगे |
जहाँ कष्टों की ही पूरी भरमार थी, वहां सुख के नए फूल खिलने लगे |

उस अनजाने ने किया मुझसे ये वादा, कि मंजिल तक तेरे चलूँगा मैं भी |
मैंने सोचा सफ़र में चलो कोई साथी मिला, मुश्किल न होगा अब मुश्किल डगर भी |

एक दोराहे पे तभी उसने अचानक, राह अपनी बदल, भूल वादा गया |
मैंने पूछा तो उसने बस इतना कहा, सॉरी, एक मजबूरी से सामना हो गया |

मैं हंसा, पर हंसी में भी संताप था, उसको जाते हुए देखता रह गया |
न विश्वास हो एक अनजाने पर, कभी आगे, ऐसा सोचता रह गया |

दिलासा दिया खुद को है यह नियम, यहाँ मिलना-बिछुड़ना लगा रहता है |
जीवन सफ़र में कई अजनबी का, ये आना-जाना लगा रहता है |

अकेले बस चलने कि आदत ही हो, बात इससे बड़ी कुछ न हो सकती है |
पर अनजाने पे टूक भरोसा न हो, अपनी ऐसी भी आदत न हो सकती है |

विज्ञान

कलियुग को कलयुग है इसने बनाया, पुरे धरा पर बन बादल ये छाया |
आसान हुआ अब हरेक काम अपना, वह विज्ञान है जिसने सबकुछ रचाया |

मानव के मस्तिष्क की है यह उपज, छोड़ पैदल हमे उड़ना है सिखाया |
दबाव बटन काम हो जाये पूरा, वह विज्ञान है जिसने समय बचाया |

विद्युत् बनाकर किया स्वप्न पूरा, निशा को भी इसने दिवा है बनाया |
विकसित किये कई उद्योग धंधे, वह विज्ञान है जिसने पोषण कराया |

देवों की हस्ती कहाँ खो गयी अब? दुनिया में छाई अब इसकी ही माया |
धरती के भीतर छिपे भेद लाखों, वह विज्ञान है जिसने हल कर दिखाया |

संग फूलों के जैसे होते हैं कांटें, वैसे ही इसने विध्वंस भी कराया |
एटम बम जैसे कई शस्त्र रचकर, वह विज्ञान है जिसने संकट बढाया |

मशीनीकरण हुआ हर जगह अब, चल था जो कल, उसे निष्चल बनाया |
जीवन अनिश्चित हुआ संकटों से, वह विज्ञान है जिसमे अंत भी समाया |

यह विज्ञान क्या है ? एक तलवार है, जिसने दोनों तरफ एक-सा धार पाया |
रक्षा करो अपनी या खुद को काटो, यह उपयोग पर इसके निर्भर हो आया |
वह विज्ञान है जिसमे सबकुछ समाया |

( यह कविता भी मैंने स्कूल के समय ही लिखी थी )

कलम

(यह मेरी पहली कविता है | यह मैंने तब लिखी थी जब मैं आठवीं कक्षा में था| )

कलम शान है हम बच्चों की, छात्रों का हथियार है,
यही कलम दिलवाता सबको, सारा अधिकार है |

है कलम छोटा शस्त्र, पर इसकी शक्ति अपार है,
बड़े-बड़े वीर आगे इसके बन जाते चिड़ीमार हैं |

इसके बल पर मिट सकता जो फैला अनाचार है,
हरेक देश की गरिमा है यह, सबका जीवन सार है |

दीखता है छोटा लेकिन यह शिक्षा का भंडार है,
कलम से तुलना करने पर छोटा पड़ता तलवार है |

मान बचाने को कलम की, हम बिलकुल तैयार हैं,
इससे नाता जोड़ ले प्यारे हो सकता उद्धार है |

Monday, January 3, 2011

नए साल में

( सभी पंक्तियों का पहला अक्षर मिलाने पर "नया साल सबके लिए सुखद एवं मंगलमय हो" )

वरंग सी उमंग लिए,
या आसमान के जैसे खुले विचार;
सागर से भी गहरी सोच या,
श्कर लिए ख़ुशी का, गम दरकिनार|

रस कर इन चार लम्हों को,
रसती सावन की बूंदों का झार;
केंद्र में लिए लक्ष्य को अपने,
लिख दे हर दिल में बस प्यार ही प्यार|

क अकेला चल पथ में,
सुप्त पड़ जाये गर ये संसार;
बर दे सबको बस खुशियों भरा,
वा बन सबका, लगा दे पार|

कल व्यक्तित्व गर ढह भी जाये,
वंदन और पूजन न हो तार-तार;
मंगल पथ में कर मगल कर्म,
र आ भी जाये दुखते आसार|

य पर सीधा चलते चल,
र्म तब जानेगा जीवन के चार;
ह मान ले पथ में सिर्फ कांटें नहीं हैं,
होगा भला करले भला अपार|

हिंदी में लिखिए:

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-प्रदीप