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Monday, March 21, 2016

ढपोरशंख

 भाषणबाजी में अव्वल, करने धरने में शून्य अंक,
आज के नेता हो चले हैं, जैसे कि ढपोरशंख ।

रोज नए नए वादे होते, करने के न इरादे होते,
जनता को भी लिए लपेटे, इनके कई कई प्यादे होते ।

राजनीति एक दल दल जैसी, ये खुद ही बन गए पंक,
निरे निखट्टू आज के नेता, जैसे कि ढपोरशंख ।

बस चुनाव में इनका आना, जीत कर ठेंगा है दिखाना,
वादे इनको याद करा दो, पहले से तैयार बहाना ।

दल बदलू और स्वार्थ परक ये, अपनो को ही मारे डंक,
लाभ के लिए कुछ भी कर दें, हो गए ये ढपोरशंख ।

होली तो इनकी ही हो ली, इनकी ही होती है दीवाली,
असली पैसों से ये खेले, पर सारे हैं लोग ये जाली ।

मुँह बाये हम आम लोग हैं, माल खा रहे ये कलंक,
अव्वल अब मक्कारी में भी, ये नेता हैं ढपोरशंख ।

- प्रदीप कुमार साहनी

Wednesday, March 16, 2016

आओ बदल लें खुद को थोड़ा

बड़ी-बड़ी हम बातें करते,
पर कुछ करने से हैं डरते,
राह को थोड़ा कर दें चौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

ख्वाब ये रखते देश बदल दें,
चाहत है परिवेश बदल दें,
पर औरों की बात से पहले,
क्यों न अपना भेष बदल दें ।

चोला झूठ का फेंक दे आओ,
सत्य की रोटी सेंक ले आओ,
दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

एक बहाना है मजबूरी,
खुद से है बदलाव जरुरी,
औरों को समझा तब सकते,
खुद सब समझो बात को पूरी ।

भीड़ में खुद को जान सके हम,
स्वयं को ही पहचान सकें हम,
अहम को मारे एक हथौड़ा,
आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।

दो चेहरे हैं आज सभी के,
बदल गए अंदाज सभी के,
अपनी दृष्टि सीध तो कर लें,
फिर खोलेंगे राज सभी के ।

पथ पर पग पल-पल ही धरे यूँ,
जब-जब जग की बात करे यूँ,
क्या कर जब तक दंभ न तोड़ा,
आओ बदल ले खुद को थोड़ा ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Sunday, February 28, 2016

अजब गजब संसार

अजब गजब दुनिया है भैया,
अजब गजब हैं लोग ।
रहे भागते जीवन भर ये,
क्या ना करें प्रयोग ।।

पैसों पर ही ध्यान है सबका,
नहीं कहीं है चैन।
दिन भर तो ये रहे ऊँघते,
नींद बिना है रैन ।।

रिश्ते नाते भूल गए सब,
हुआ ये जीवन व्यर्थ ।
स्वार्थ सिद्धि ही जीवन इनका,
परहित में असमर्थ ।।

सब पर ही संदेह है अब तो,
नहीं कहीं विश्वास ।
जिससे थोड़ा लाभ है मिलता,
वही है खासम ख़ास ।।

देश की खाकर लगे बोलने,
लोग विदेशी बोल ।
दुश्मन का गुणगान हैं करते,
कैसा है ये झोल ।।

-प्रदीप कुमार साहनी

Monday, February 15, 2016

नींद नहीं अब आती है

खो गए हैं सुकून के वो पल,
रहा नहीं खुशियों का आँचल,
बिस्तर नहीं बुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

भागदौड़ में सबकुछ छूटा,
चैन तो जैसे बैठा रुठा,
जीवन रीत निभाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

आपस में बस होड़ है लगी,
चोट भी पर बेजोड़ है लगी,
निद्रा देवी बस जाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

अपनों का सानिध्य कहाँ अब,
मन सबका द्वैविध्य यहाँ अब,
माँ लोरी याद आती है,
नींद नहीं अब आती है ।

स्वयं को ही है खोया हमने,
एक अकेले रोया हमने,
अंत: सदा लगाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

पैसे पर सब बिकता है अब,
सत्य फिर कहाँ दिखता है अब,
नींद नहीं पर बिकाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

नहीं रहा अब निश्छल सा मन,
फैल रही है कटुता जन जन,
बांधव्य भी अब रुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

शत्रु मित्र भेष में फिरते,
संकट चारो ओर से घिरते,
मस्तिष्क भी अकुलाती है,
नींद नहीं अब आती है ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Saturday, February 13, 2016

खो दिए फिर हमने वीर

देश की शान के लिए खड़े जो,
हर मुश्किल में रहे अड़े जो,
मौत से हारे वो आखीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

मातृभूमि की लाज के लिए,
लड़ते रहे जो जीवन भर,
अमन-चैन के लिए जिये वो,
कभी नहीं उन्हे लगा था डर ।

प्रकृति से हार गए वो,
जीवन अपना वार गए वो,
चले तोड़ जीवन जंजीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

कभी हैं छल से मारे जाते,
कभी अपनो से धोखा खाते,
आतंक को धूल सदैव चटाया,
कर्तव्य को पर नहीं भुलाते ।

अश्रुपूरित हर नेत्र है आज,
देश की पूरी एक आवाज,
श्रद्धा सुमन अर्पित बलबीर,
खो दिए फिर हमने वीर ।

-प्रदीप कुमार साहनी

है इनपे धिक्कार

सियासती ये लोग चंद, है इनपे धिक्कार ।
भारत में रहकर करे, पाक की जय जय कार ।।
पाक की जय जय कार, लगे विरोधी नारे ।
पुलिस महकमा शांत क्यों, देशद्रोही ये सारे ।।
हो उचित कार्रवाई जल्द, जेल में इनको डालो ।
देश रक्षा पर राजनीति, छोड़ सियासत वालो ।।

कश्मीर की आजादी, माँग है ये बदरंग ।
भारत से कैसे पृथक, है अभिन्न ये अंग ।।
है अभिन्न ये अंग, हिम्मत न कर इतना ।
जन-जन ये दिखला देगा, देश में ताकत कितना ।।
धैर्य है कमजोर नहीं, जो उठ गया शमशीर ।
बलुचिस्तान भी जायेगा, मांगा जो कश्मीर ।।

ले धर्म का नाम ये,  करते हैं कुकर्म ।
मानवता के दुश्मन ये, नहीं कोई है धर्म ।।
नहीं कोई है धर्म, मातृभूमि न जाने ।
भारत को बर्बाद करें, ऐसा ये सब माने ।।
कब तक ऐसे देखते, रहेंगे हम जन आम ।
कुछ भी क्यों कर जाये ये, ले धर्म का नाम ।।

शहीद उसे है कह दिया, जो आतंक का नाम ।
ताक पे जिसने रख दिया, देश का ही सम्मान ।।
देश का ही सम्मान बस, करो अगर है रहना ।
देश की जनता जागी है, अब नहीं है सहना ।।
शर्म करो ओ गद्दारों, आतंक के मुरीद ।
देश के लिए जान दे, हैं बस वही शहीद ।।

-प्रदीप कुमार साहनी

Friday, February 12, 2016

माँ सरस्वती

२००वीं पोस्ट

( माँ शारदे की असीम अनुकंपा से सरस्वती पूजा के पावन दिन में इस ब्लॉग की २००वीं प्रस्तुति पेश कर रहा हूँ ।
इस ब्लॉग पर सौवीं प्रस्तुति भी सरस्वती पूजा के ही दिन 28-01-2012 को हुआ था ।  बीच में लिखना बंद सा हो गया था, पर माता की कृपा अपरम्पार है ।)
वंदन करुँ हे सरस्वती, आस कृपा का हाथ ।
नित माते मैं ध्यान धरुँ, हो स्नेह बरसात ।।

पूजूँ माते आपको, ले पुष्प की माल ।
दया दिखाना बस तनिक, उन्नत हो यह भाल ।।

ज्ञान दीप बस जल सके, दे इतना आशीष ।
मन ही मन में नाम जपुँ, घंटे मैं चौबीस ।।

परमारथ के मार्ग पर, रहुँ अटल अविचल ।
भक्ति भाव हृदय रहे, पावन व निश्छल ।।

हे माते इस अज्ञ को, दे देना प्रसाद ।
मानस में स्वच्छ भाव रहे, नहीं कोई अवसाद ।।

कलम यूँही चलती रहे, मात ये रखना ध्यान ।
सेवक हूँ वीणापाणि माँ, सदा ही रखना मान ।।

जय जय माते मैं करुँ, हंस विराजिनि आप ।
मेरी लेखनि अस्त्र-शस्त्र, यही मेरा सर-चाप ।।

चतुर्भुजी माँ शारदे, हाथ जोड़ हे प्रणाम ।
आपके ही आशीष से, मिले नए आयाम ।।

१००वीं पोस्ट

सभी को माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Thursday, February 11, 2016

ॐ -हे भोलेनाथ- ॐ


हे भोलेनाथ मैं करुँ निवेदन,
आप हो दानी, मैं अकिंचन ।

आप नाथ हो हे त्रिपुरारी,
दास हूँ मैं भोले भंडारी ।



सत्य, शिव और आप हैं सुन्दर,
पूजे जिनको स्वयं ही इंदर ।

अवढर दानी आप को माने,
तनिक हमारे कष्ट भी जाने ।

शिवा समेत कैलाश विराजे,
नाग गला, चन्द्र शीष में साजे ।

महादेव हे हर-हर, हर-हर,
कृपा बनाना नाथ डमरूधर ।

बंदऊँ हे त्रिनेत्र के स्वामी,
चरण वंदना अंतर्यामी ।

कालों के भी काल आप हो,
भूतनाथ विशाल आप हो ।

सोमनाथ हे, आप रामेश्वर
आस बड़ी है, हे परमेश्वर ।

ॐ नम: शिवाय कहूँ मैं,
बिगड़ी दो बनाय कहूँ मैं ।

भक्तों पर सदा कृपा है डाली,
झोली मेरी भी जाय न खाली ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Wednesday, February 10, 2016

प्रिये क्यों

तनिक विलंब जो हुई है हमसे,
मुख मंडल यूँ क्षीण प्रिये क्यों,
अति लघु सी एक बात पे तेरे,
नैन यूँ तेज विहीन प्रिये क्यों ?

प्रेम प्रतीक्षा का सुख हमने,
भोग लिया है आज परस्पर,
जैसे तुम अधीर यहाँ थी,
मैं भी न धरा धीर निरंतर ।

मधुर मिलन की इस बेला में,
मन ऐसे मलीन प्रिये क्यों,
सुखदायक क्षण में ऐसे यूँ,
हृदय ये ऐसा दीन प्रिये क्यों ?

आलिंगन आतुर भुज दोनो,
मौन मनोरथ में हैं लागे,
अभिलाषा तेरी भी ऐसी,
क्यों न फिर आडंबर भागे ?

अधर हैं उत्सुक, करें समर्पण,
पद तेरे गतिहीन प्रिये क्यों ?
हृदय दोऊ हैं एक से आकुल,
अब भी लाज अधीन प्रिये क्यों ?

नयन भाव विनिमय को बेकल,
अधर सुस्थिर क्या है माया,
तू मुझमे निहित प्रिये है,
और मुझमे तेरी ही छाया ।

श्वास मध्य न भिन्न पवन हो,
प्रेम में न हो लीन प्रिये क्यों,
अंतर्मन भी एक हो चले,
खो न हो तल्लीन प्रिये क्यों ?

-प्रदीप कुमार साहनी

शायरी अगर है करनी, प्यार कर लो

शायरी अगर है करनी, प्यार कर लो,
शिद्दत से हुश्न-ए-दीदार कर लो ।

महबूब को पहले दिल से परख लो,
दिल तोड़ने की शर्त खुद ही रख लो ।

ये इश्क मुआ ऐसा, सबकुछ करा देगा,
कामयाब न हो पर शायर बना देगा ।

आँखों पे उसकी शायरी करो तुम पूरी,
पुल बाँधों तारीफ के, ये पाठ है जरुरी ।

मिलन पे लिखो और लिखो जब जुदाई,
हर अदा पे लिखो, लिखो जब ले अँगड़ाई ।

कलम में तेरे उस वक्त आयेगा धार,
दिल टूट जायेगा, तब शायरी में निखार ।

फिर क्या, शायरी की तब आयेगी बाढ़,
हर लफ्ज होगा तेज, हर पंक्ति होगी गाढ़ ।

टूटा हुआ ये दिल इस कदर सदा देगा,
हर लफ्ज बनेगी शायरी जब यार दगा देगा ।

बेवफाई और दर्द पे करो नज्म का ईरादा,
आह पे, कराह पे वाह वाह होगी ज्यादा ।

सनम न रहे पर शायर होगे तब पूरे,
दिल के जज्बात लिखो, रह गए जो अधूरे ।

मुकम्मल इश्क न मिला, तो शायरी ही करो,
मुशायरे की बढ़ाओ शान और डायरी ही भरो ।

शायरी अगर है करनी तो ये नुस्खा है नायाब,
चुन ही लो महबूब को, इश्क करो जनाब ।

प्रदीप कुमार साहनी

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-प्रदीप