मेरे साथी:-

Tuesday, February 7, 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

Thursday, February 2, 2012

विडम्बना

एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को;
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं;
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसे,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

Tuesday, January 31, 2012

जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा

आज अपने, सुप्त सपने, फिर जगाने जा रहा,
जिन्दगी को, एक हसीं, अब मोड़ देने जा रहा ।

चाहता हूँ, पतझड़ों में, चंद हरियाली भरुँ,
बंजरों में, आज फिर एक,बीज बोने जा रहा ।

देख लेंगे, तेज कितना, टिमटिमाते "दीप" में है,
सख्त दरख्तों, में भी कोंपल, फिर फुटाने जा रहा ।

आए हैं वो, आज फिर से,बनके एक हमदर्द-सा,
जब मैं सारे, दर्द को,दिल से भुलाने जा रहा ।

पत्थरों को, घिस कर अब, आग जलती है नहीं,
आग जो, दिल में लगी, उसे अब बुझाने जा रहा ।

देखा है खुद, गैरों को, अपनो के साये में ढले,
फूलों से अब, काँटों को चुन-चुन हटाने जा रहा ।

हो गया अब, आँसुओं से, मुँह धोने का रसम,
जिंदगी को, जीतकर अब, जश्न मनाने जा रहा ।

बस हुआ, सपनों में गिरना, गिरते-गिरते दौड़ना,
अपने साये, पे अब अपना, हक जमाने जा रहा ।

सोच में हैं, वो कि हमसे, क्या कहे क्या न कहे,
मैं हूँ कि, उनकी हरेक, बातें भुलाने जा रहा ।

आँहे भरते, जीने का अब,वक्त पूरा हो चुका,
जिन्दगी को, एक हसीं अब, मोड़ देने जा रहा ।

Saturday, January 28, 2012

हे ज्ञान की देवी शारदे

(मेरे ब्लॉग पर ये (१०० वीं ) सौवीं पोस्ट माता शारदे को समर्पित है । मुझे इस बात से अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज के ही शुभ दिन यह सुअवसर आया है ।)
हे ज्ञान की देवी शारदे,
इस अज्ञ का जीवन तार दे,
तम अज्ञान का दूर कर दे माँ,
तू प्रत्यय का उपहार दे ।

तू सर्वज्ञाता माँ वीणापाणि,
मैं जड़ मूरख ओ हंसवाहिनी,
चेतन कर दे,जड़ता हर ले,
मैं भृत्य तेरा हे विद्यादायिनी ।

जग को भी सीखलाना माँ,
सत्य का पाठ पढ़ाना माँ,
जो अकिञ्चन ज्ञान से भटके,
मति का दीप जलाना माँ ।

मैं दर पे तेरे आया माँ,
श्रद्धा सुमन भी लाया माँ,
सुध मेरी बस लेती रहना,
तेरे स्मरण से मन हर्षाया माँ ।

माँ कलम मेरी न थमने देना,
भावों को न जमने देना,
न लेखन में अकुलाऊँ माँ,
काव्य का धार बस बहने देना ।

माँ विनती मेरी स्वीकार कर,
मुझ मूरख का उद्धार कर,
कृपा-दृष्टि रखना सदैव,
निज शरण में अंगीकार कर ।

जय माँ शारदे ।


(सभी ब्लॉगर मित्रों को माँ शारदे पूजा की हार्दिक शुभकामनाये |)

Thursday, January 26, 2012

मात-पिता के चरणों में

मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम,
मात-पिता के चरण की माटी सौ चन्दन समान ।

मात-पिता की निःस्वार्थ सेवा, शत यज्ञ का फल दे,
मात-पिता पावन कर देते, गंगा का जल से ।

मात-पिता के स्नेह की छाया ताप में दे आराम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता गुरु से भी बढ़कर, मात-पिता भगवान,
मात-पिता के संस्कारों से बनता कोई महान ।

मात-पिता की दया से मिलते हैं इस जग में नाम,
मात-पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

मात-पिता के दरश से मिलते सुख, शक्ति प्रबल,
मात-पिता के हस्त जो सर पे सब कर्म लगे सरल ।

मात-पिता गुण-धाम हैं इनका क्या मैं करुँ गुणगान,
मात पिता के चरणों में ही बसते तीरथ-धाम ।

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-प्रदीप