मेरे साथी:-

Tuesday, January 17, 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

Thursday, January 12, 2012

कन्यादान

मतलब क्या है इस कन्यादान का ?
क्या ये सीढ़ी भर है नए जीवन निर्माण का ?

या सचमुच दान ही इसका अर्थ है,
या समाज में हो रहा अर्थ का अनर्थ है ?

दान तो होता है एक भौतिक सामान का,
कन्या जीवन्त मूल है इस सृष्टि महान का ।

नौ मास तक माँ ने जिसके लिए पीड़ा उठाई,
एक झटते में इस दान से वो हुई पराई ?

नाजो-मुहब्बत से बाप ने जिसे वर्षों पाला,
क्या एक रीत ने उसे खुद से अलग कर डाला ?

जिस घर में वह अब तक सिद्दत से खेली,
हुई पराई क्योंकि उसकी उठ गई डोली ?

क्या करुँ मन में हजम होती नही ये बात,
यह प्रश्न ऐसे छाया जैसे छाती काली रात |

कौन कहता है कन्याएँ नहीं हमारा वंश है,
वह भी सबकुछ है क्यो.कि वह भी हमारा ही अंश है ।

कन्या 'दान' करने के लिए नहीं है कोई वस्तु,
परायापन भी नहीं है संगत, ज्यों कह दिया एवमस्तु ।

Tuesday, January 10, 2012

मुस्कुराहट तेरी



कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

थक-हार कर संध्या जब घर आता हूँ,
बस देख कर तुझको मैं चहक जाता हूँ |

देखकर हर दिखावे से दूर तेरे नैनों को,
पंख मिल जाता है मेरे मन के मैनों को |

जब गोद में लेके तुम्हे खिलाता हूँ,
सच, मैं स्वयं स्वर्गीय आनंद पाता हूँ |

नन्हें हाथों से तेरा यूँ ऊँगली पकड़ना,
लगता है मुझे स्वयं इश्वर का जकड़ना |

आज हो गयी है तू छः मास की,
बाग़ खिलने लगा है मन में आस की |

पर  "परी" जब भी तू रोती है,
हृदय में एक पीड़ा-सी होती है |

देखकर मुझे बरबस खिलखिला देती हो,
पुलकित कर देती हो, झिलमिला देती हो |

कर देती है दूर हर मुश्किल मेरी,
बस एक मीठी सी  मुस्कुराहट  तेरी |

Sunday, January 8, 2012

धवल चाँदनी

उन्मुक्त से गगन में,
पूर्ण चन्द्र की रात में,
निखार पर है होती
ये धवल चाँदनी ।

मदमस्त सी करती,
धरनि का हर कोना,
समरुपता फैलाती
ये धवल चाँदनी ।

क्या नदिया, क्या सागर,
क्या जड़, क्या मानव,
हर एक को नहलाती
ये धवल चाँदनी ।

निछावर सी करती,
परहित में ही खुद को,
रातों को उज्ज्वल करती
ये धवल चाँदनी ।

प्रकृति की एक देन ये,
श्रृंगार ये निशा रानी का,
मन "दीप" का हर लेती
ये धवल चाँदनी ।

Saturday, December 31, 2011

****नए साल में****


जियेंगे नए साल में, जिन्दगी तुझे फिर से,
अश्कों को लेकर हम खुशियाँ उधार देंगे;
काँटों से भी रण गर होता है तो हो ले,

जीने का सलीका अब फिर सुधार देंगे |

बहुत हो गया, बहुत सहा, बस, अब नहीं है होता,
इस नैतिक गुलामी को तेरे मुँह पे मार देंगे;
माना तुम बलशील हो. अडिग हो मेरु जैसे,
पर तेरे हर चोट पे अब, हम भी वार देंगे |

सोच लिया नववर्ष को खुशनुमा है बनाना,
गत वर्ष का आडंब यहाँ अब उतार देंगे;
करेंगे वही जो हुकुम ह्रदय से मिलेगा,
खुद भी उबरेंगे और सबको उबार देंगे |

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें |

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