मेरे साथी:-

Saturday, September 17, 2011

जेबकतरी सरकार


बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |

Wednesday, September 14, 2011

हिंदी हिन्दुस्तान है

हिंदी मेरी जान है,
भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |

खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |

देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |

हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |

देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |

Tuesday, September 13, 2011

राष्ट्रभाषा हिंदी


हिंदी बस एक मात्र नहीं यह मातृभाषा है;
गर्व है मुझको हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा  है |

बिन निज भाषा उन्नति के, राष्ट्र का विकास नहीं;
परदेशी भाषा के बल पे, हो सकता कुछ खाश नहीं |

राष्ट्रभाषा जब हिंदी है, फिर अंग्रेजियत छोड़ दो;
हिन्दुस्तान में रहते हो, तो दोहरी नियत छोड़ दो |

हिंदी को अधिकार मिले, हर कोने में प्रयोग हो,
संसद में, हर राज्यों में, परदेश में भी उपयोग हो |

हिंदी जन-जन की भाषा, जन-जन तक इसका प्रचार हो;
भारत के हर क्षेत्र में पहुंचे, ऐसे नेक विचार हो |

भारत का हर एक वासी, हिंदी का सम्मान करे;
हर कोई सीखे, हर कोई बोले, नहीं कोई अपमान करे |

हिंदी को बना भारत की बिंदी, इसे सर्वत्र चमकाना है;
हर निजी, सरकारी काज में, हिंदी ही अपनाना है |

बुरा नहीं हर भाषा जानो, पर हिंदी ही सर्वोपरि हो;
हो ज्ञान भले हर भाषा का, पर निज भाषा सर्वोपरि हो |

Saturday, September 10, 2011

वो लोकगीत

न जाने कहाँ
खो गई
मिट्टी की वो
असली खुशबू
गुम हुए
आधुनिकता में
मीठे-सुरीले
वो लोकगीत |

कर्ण-फाड़ू
संगीत ही रहा
वो असली रंगत
नहीं रही
मूल भारत की
याद दिलाती
कहाँ गए
वो लोकगीत |

एफ. एम., पोड ने
निगल लिया
फिल्मी गानों ने
ग्रास लिया
अब तो कोई
सुनता भी नहीं
न गाता कोई
वो लोकगीत |

Thursday, September 8, 2011

आतंक का अंत

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

आये दिन हो जाता है विस्फोट,
कई जिंदगियों का अस्तित्व उखड जाता है,
हो जाते हैं अनाथ कई मासूम,
और न जाने कितनो का सुहाग उजड़ जाता है |

अस्पतालों का भी तब विहंगम दृश्य होता है,
किसी का हाथ तो किसी का पैर धड़ से अदृश्य होता है |

विस्फोट की आवाज तो क्षणिक होती है,
पर कईयों के कानों में वो जिंदगी भर गूंजती है |

नेता इस में भी राजनीति से नहीं चुकते,
सरकार के नुमाइंदें भी समाधान नहीं, बस आश्वाशन देते हैं |

कब इस दहशत के माहौल से उबरेंगे ?
कब हमारी जिंदगियों की कीमत होगी और वो सुरक्षित होगी ?
कब तक दिल दहलाने वाले ये दृश्य हम देखते रहेंगे ?
कब तक अपनों को इस कदर हम खोते रहेंगे ?

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

Monday, September 5, 2011

तस्मेव श्री गुरुवे नम:

गुरु की महिमा क्या कहूँ, कह न पाऊँ मित्र |
जीवन को महकाते हैं, तन को जैसे इत्र ||

सीखलाते हैं पाठ ये, जीने का भी ढंग |
बतलाते जीवन का मर्म, कितने होते रंग ||

ईश्वर से भी बढ़कर है, गुरु की महिमा जान |
गुरु के बिन जीवन दुष्कर, अर्थहीन ये मान ||

मन को देते ज्ञान ये, तन को जैसे प्राण |
शुद्धि करते अंतर की, दे शिक्षा का दान ||

आदि काल से शिक्षक ही, करते विकास संपूर्ण |
बिन गुरु के होता है, मानव ही अपूर्ण ||

(शिक्षक दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ | तथा उन सभी ब्लॉगरों को प्रणाम जिनसे कुछ भी सीखा है |)

Friday, September 2, 2011

जज़्बात-ए-ईश्क

कुछ सुन लो या कुछ सुना दो मुझको,
गुमसुम रहकर न यूँ सजा दो मुझको,
जान से भी प्यारी है तेरी ये मुस्कुराहट,
मुस्कुरा कर थोड़ा सा हँसा दो मुझको |

आँखों से ही कुछ सीखा दो मुझको,
थोड़ी सी खुशी ही दिखा दो मुझको,
तेरी खुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं है,
अपनो की सूची में लिखा दो मुझको |

पलकें उठा के एक नज़र जरा दो मुझको,
ज़न्नत के दरश अब करा दो मुझको,
तेरी जीत में ही छुपी है मेरे जीतने की खुशी,
नैनों की लड़ाई में थोड़ा हरा दो मुझको |

Thursday, September 1, 2011

काव्य का संसार


अनुपम, अक्षय होता है ये काव्य का संसार,
अखिल जगत में अकथ, अकाय और निराकार |

साहित्य की यह विधा अनूठी, पद्य भी कहाय,
हृदय से उत्थित, सरस शब्दों में उकेरा जाय |

भावों की ये मंजूषा, मञ्जीर, मधुर मानिक,
मुतक्का साहित्य का दृढ, मनन करो तनिक |

अमरसरित सी पावन, जनश्रुत ये अपार,
अद्भूत, असम, अनुरक्त है ये काव्य का संसार |

(शब्दार्थ: मञ्जीर=मनोहर, मुतक्का=खम्भा,
अमरसरित=गंगा, जनश्रुत=प्रसिद्द, अनुरक्त=प्रेम युक्त )

स्मरण करो सिया राम का

स्मरण करो सिया राम का,
स्मरण करो सिया राम का,
कृपा सिन्धु गुण धाम का;
उल्टा जपके भी तर जाते,
पावन से उस नाम का |
स्मरण करो सिया राम का |

घट-घट में वे बसने वाले,
श्रद्धा सुमन वे देने वाले;
शिव भी जिनको जपते हैं,
पुरुषोत्तम श्रीराम का |
स्मरण करो सिया राम का |

असुरों का वध करने वाले,
धरनि का दुःख हरने वाले,
हनुमान जस भक्त हैं जिनके
जानकीनाथ भगवान का |
स्मरण करो सिया राम का |

शबरी के फल खाने वाले,
उच्च चरित दर्शाने वाले;
भरत, लखन सम भ्रात जो पाए,
रघुकुल नायक राम का |
स्मरण करो सिया राम का |

धनुष बाण जिन हस्त को सोहे,
अनुपम रूप जगत को मोहे;
त्रिलोकी होकर भी मानव,
बन गए उस मतिमान का |
स्मरण करो सिया राम का |

Tuesday, August 30, 2011

गलती किसकी ?

समझ के भेजा था तुझे हमदर्द अपना,
दर्द जो न महसूस किये तो ये गलती किसकी ?
सोचा था दो-चार खुशियाँ हमे दोगे,
लगे अपनी खुशी समेटने तो ये गलती किसकी ?

जन-गण ने चुना कि हमारे बीच ही रहोगे,
लगे शीशमहल बनाने तो ये गलती किसकी ?
वतन के नाम पे चंद कसीदे तो पढ़ोगे,
लगे वतन को ही पढ़ाने तो ये गलती किसकी ?

तुम अगर जगते, जनता चैन से सोती,
स्वयं चीर निद्रा में खोये तो ये गलती किसकी ?
जनता यहाँ स्वामी, तुझे स्वामी ने ही भेजा,
लगे खुद को बॉस समझने तो ये गलती किसकी ?

जगी है अब जनता और दागे चाँद सवाल,
तेरे कर्मों ने ही जगाया तो ये गलती किसकी ?
मांग रही हक़ अपना और तुझे देना भी होगा,
तुने नाफ़रमानी की है तो ये गलती किसकी ?

Saturday, August 27, 2011

पूज्य दादाजी को श्रद्धांजलि


मेरे पूज्य दादाजी को १७वी पुण्य तिथि में सादर श्रद्धांजलि |

चरणों में आपके सर नवाते रहेंगे,
संस्कारों को आपके निभाते रहेंगे,
गुजारिश है आपसे, सदा कृपा बनाये रखना,
हृदय से सुमन भेंट हम चढाते रहेंगे |

करता हूँ अर्पित मैं श्रद्धांजलि आपको,
परमात्मा में विलीन रहे आत्मा आपकी;
मोक्ष हो, मोह-माया का अंश भी न हो,
नश्वर जग से सुदूर रहे जीवात्मा आपकी |

Wednesday, August 24, 2011

सुनो ऐ सरकार !!

भ्रष्टाचारियों की हुई भरमार,
त्रस्त कर गया जब भ्रष्टाचार,
अन्ना ले आये गाँधी का अवतार,
जाग गया युवाओ का संसार,
जनता चली संग करने आर या पार;
माँगे उठाई हमने असरदार,
पर मौन है बैठा मन"मौन" सरदार,
कर्महीन ये निकम्मी सरकार;
आफत में पड़े देश के गद्दार,
क्या होगा अब सोच रहे मक्कार,
लूट जो जायेगा उनका बाजार;
पर हमे है देश से सरोकार,
करते रहेंगे वार पे वार,
जब तक जनलोकपाल न ले आकार;
अहिंसा ही है हमारा आधार,
दिखायेंगे हम एकता अपार;
सुन लो ऐ सोई सरकार !
न बनो भ्रष्टाचार का पहरेदार,
मान लो माँगे और समझ लो सार |

Sunday, August 21, 2011

उम्मीद

एक उम्मीद है लगी,
एक किरण है दिखी,
नये कोंपल है लगे,
नवल कलियाँ है खिली ।
पतझड़ के बाद,
शायद आये ऋतुराज,
ह्रदय में शतत,
एक आशा है जगी ।
युवा शक्ति आज,
है उठ खड़ा हुआ,
आलोक की तलाश,
अब शुरु हो चुकी ।
बदलाव की आये बयार,
रिमझिम-सी हो फुहार,
सुखद एक परिवर्तन की,
विश्वास है जगी ;
राष्ट्र नवनिर्माण की,
एक उम्मीद है लगी ।

Friday, August 19, 2011

"छोटू"

चाय की दुकान पे,
एक बालक है रहता |
नौ-दस वर्षीय, सकुचाया हुआ-सा |

चाय पीने वालों का मुख निहारता रहता ;
पेंट भी है ढीला, गंजी भी फटेहाल |

ग्लास हाथ से छूटने का इंतज़ार करता रहता,
चाय ख़त्म होते ही झट ग्लास ले जाता,
धोकर वापस अपने मालिक को थमाता |
कभी पेंट ठीक करता,
कभी गंजी को उठाकर नाक पोंछा करता |
यही उसका कार्यक्रम, यही उसकी दिनचर्या,
बदले में शाम को मिलता, तीस या चालीस रुपैया |

एक दिन मैंने उसे बुलाया,
पास में बिठाया,
पूछा मैंने बाबू तेरा नाम क्या है?
असमंजस सा खड़ा उसने मुझे देखा,
ठठक कर बस एक ही शब्द कहा-
"छोटू"
इधर-उधर से वापस वो ग्लास समेटने लगा,
मैंने तब उसको पुनः पास बुलाया,
बोला, छोटू तुम कभी स्कूल क्यों नहीं जाते,
सीखने को मिलेगा कुछ पढ़ क्यों नहीं आते?

मालिक की तरफ देखा फिर मुझे देखकर बोला,
माँ रहती बीमार और पिता है शराबी,
काम नहीं करूंगा तो होगा बहुत खराबी;
पैसे लेकर जाता हूँ, तब खाना खाता हूँ,
बाप की प्यास मिटाने को शराब भी तो लता हूँ |
 सहज भाव से बोल के वो निकल गया,
पर नेत्र का कोना भींगा और दिल मेरा भर आया |

न जाने सरकार के कितने सारे योजना है,
पर जहाँ जरुरत है वहां तक वो कभी पंहुचा ही नहीं;
ऐसे ही कितने "छोटू" भारत में हैं बसते,
भारत हो रहा विकसित, फिर भी हम कहते |

क्या यही जनता का शासन है ?
क्या यही प्रजातंत्र है ?
क्या यही हमारी व्यवस्था है ?
क्या यही हमारा लोकतंत्र है ?

Monday, August 15, 2011

गर्जना

न कुचलो हमारी स्वाधीनता को इस तरह,
कि इसके लिए हमने बहुत कुछ सहा है,
खैरात में नहीं मिली है हमे ये आजादी,
कितने कुर्बान हुए हैं और कितनो का लहू बहा है |

प्राणों से भी प्यारी है हमे ये स्वतंत्रता,
रक्षा को इसकी हम जान तक लुटा देंगे,
कोशिश न करना इसे छीनने की हमसे,
सरफिरे हैं तेरा वजूद तक मिटा देंगे |

देश के ठेकेदारों ! वक्त है संभलो,
आँच आये आजादी को वो काम मत करना,
गोरे अंगरेजो को सन ४७ मे भगाया,
साहस न करना,गेहुँए अंगरेज मत बनना |

सवा अरब जनता अगर सनक गई काफिर,
यातनाओ के जवाब मे हम भी दिखा देंगे,
उनको तो हमने बस खदेड़ के था छोड़ा,
गर्जना सुन तेरा नामोनिशान डूबा देंगे |

Saturday, August 13, 2011

अंतर्द्वंद

सोचा की इस बार आज़ादी का जम कर जश्न मनाऊँ,
तभी ख्याल आया देश की मौजूदा हालात का,
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

भागते हुए निहत्थे किसान कहीं गोलियां खा रहें हैं,
रैलियों में निहत्थे लोग कहीं लाठियां खा रहें हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मौलिक अधिकारों का भी यहाँ हनन हो रहा है,
रोज नए घोटालेबाजों का जनम हो रहा है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

महंगाई इतनी है की लोग दो जून की रोटी को तरसते हैं,
नेताओं और रसूखदारों के यहाँ धन ही धन बरसते हैं;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

अमर शहीदों की गाथा याद करके उन्नत हो जाता है भाल मेरा,
अपने चुने हुए लोगों के करतूत के ख्याल से शर्म से झुक जाता है भाल मेरा; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

हर एक मुद्दे पर नेताओं की राजनीती भारी है,
नियम-कानून कुछ नहीं हर एक नीति हारी है;
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

मानव आज मानवता के मूल्यों को कहाँ बुझ रहा है,
स्त्रियों का वर्ग हर कोने में असुरक्षा से जूझ रहा है; 
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

यह अंतर्द्वंद मेरे नहीं हर एक के मन में चल रहा है,
किसकी खुशियाँ मनाऊँ और किसका गम करूँ, हर एक के मन में चल रहा है;

क्या इसी अंतर्द्वंद का जश्न मनाऊँ?
क्या इनका जश्न मनाऊँ?

Friday, August 12, 2011

एक प्रश्न

खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,
पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;
फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं  लगाते,
पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ?

नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,
अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,
लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम,
मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा |

सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक,
तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का,
एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु,
गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न का |

Tuesday, August 9, 2011

बहना मेरी

तब  था मैं बस छोटा सा, जब तू थी जीवन में आई,
पुलकित था मन हर्षित था, जब तू थी आँगन में आई |

बाल मन भी गदगद था, खुशियाँ खुद अंगना थी आई,
संग पलने संग बढ़ने को, जीवन में बहना थी आई |

हाथ मेरे बांधेगी राखी, सोच के मन उद्वेलित था,
खेलूँगा इस गुडिया से, जान के मन प्रफुल्लित था |

जैसे जैसे जीवन बीता, तू बस खुशियाँ देती गयी,
जीवन के हर एक मोड़ पर, तू बस खुशियाँ देती गयी |

आज तेरा निज जीवन है, पर मेरे लिए तू वैसी है,
गृहस्थ में तू है व्यस्त बड़ी, पर बहना मेरी तू वैसी है |

हाथ मेरा इंतजार है करता, राखी के त्यौहार का,
राखी से तेरे हाथ सजेगा, अमूल्य उस उपहार का |

दुआ है मेरी इश्वर से, सुख पाये बहना मेरी,
जो गम आये मुझे मिले, खुश रहे बहना मेरी |

Saturday, August 6, 2011

एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये

नहीं चाहता मखमल के गद्दे में मुझको आराम आये,
नहीं चाहता व्यापार में मेरा कोई बड़ा दाम आये,
चाहत मेरी बड़ी नहीं बस छोटी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |
                                          
नहीं चाहता लाखों की लौटरी कोई मेरे नाम आये,
नहीं चाहता खुशियों भरा बहुत बड़ा कोई पैगाम आये,
ख्वाहिश मेरी ज्यादा नहीं बस थोड़ी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता मधुशाला में मेरे लिए अच्छा जाम आये,
नहीं चाहता फायदा भरा बहुत बड़ा कोई काम आये,
सपने  मेरे अनेक नहीं बस एक ही तो है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं चाहता प्रसिद्धि हो, नाम मेरा हर जुबान आये,
नहीं चाहता जीवन में कोई अच्छा बड़ा उफान आये,
इश्वर से दुआ मेरी बस इतनी सी ही है,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

नहीं कोई देशभक्त बड़ा मैं, नहीं देश का लाल बड़ा,
पर दिल में एक ज्वाला सी है, देश हित करूँ कुछ  काम बड़ा,
भारत माँ के चरणों में नत एक बात मन में आये,
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये |

Friday, August 5, 2011

एक नारी के रूप अनेक

कभी मात बन जनम ये देती,
कभी बहन बन दुलराती;
पत्नी बन कभी साथ निभाती,
कभी पुत्री बन इतराती;

कहने वाले अबला कहते,
पर भई इनका तेज तो देख;
काकी, दादी सब बनती ये,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी शारदा बन गुण देती,
कभी लक्ष्मी बन धन देती;
कभी काली बन दुष्ट संहारती,
कभी सीता बन वर देती;

ममता भी ये, देवी भी ये,
नत करो सर इनको देख;
दुर्गा, चंडी सब बन जाती,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी कृष्णा बन प्यास बुझाती,
यमुना बन निच्छल करती;
गंगा बन कभी पाप धुलाती,
सरयू बन निर्मल करती;

नदियाँ बन बहती जाती,
न रोक पाओगे बांध तो देख,
कावेरी भी, गोदावरी भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |

कभी अश्रु बन नेत्र भिगोती,
कभी पुष्प बन मुस्काती;
कभी मेघ बन बरस हैं पड़ती,
कभी पवन बन उड़ जाती;

पल-पल व्याप्त कई रूप में ये,
न जीवन है बिन इनको देख;
जल भी ये, पावक भी ये,
एक नारी के रूप अनेक |

Monday, August 1, 2011

मुस्कुरा दिया करना

जिन्दगी रुठी भी रही तो शिकवा नहीं कोई,
बस जब तुझे देखुँ, मुस्कुरा दिया करना;
घाव भर जायेंगे देख कर ही तुझको,
जब पास तेरे आऊँ खिलखिला दिया करना ।

वर्षों की थकान यूँ ही मिट जायेगी,
नींद बनकर थोड़ा सुला दिया करना;
कभी-भी मन जब काठ बन जाये,
इतना एहसान करना,रुला दिया करना ।

समझ न पाऊँ गर दुनिया की रीत,
हौले से बस थोड़ा समझा दिया करना;
नफरत भरी दुनिया में झुलस जाऊँ थोड़ा,
द्वेष की आग को बुझा दिया करना ।

भाग तो रहा हूँ मंजिल की खोज में,
बैठ जाऊँ थककर, उठा दिया करना;
भाग-दौड़ की दुनिया में,जब भागता ही जाऊँ,
प्यार की छाँव में बिठा दिया करना ।

भुल जाऊँ हर जख्म, भुल जाऊँ हर गम,
सर पर बस हाथ फिरा दिया करना;
जुड़ा है तुझसे,हर श्वास, हर खुशियाँ,
बस जब तुझे देखुँ, मुस्कुरा दिया करना ।

Monday, July 25, 2011

कीमत

जिन्दगी की कीमत उन्हे क्या मालुम जो सुरक्षा चक्र के बीच घुमा करते है,
रोजाना सर पर कफन बाँध कर घर से निकलने वाले एक आम जन से पुछो कि जिन्दगी क्या चीज है ।

पानी का कदर उन्हे क्या मालूम जो घरों में स्विमिंग पूल बनवा कर रखते हैं,
दिन भर खून जैसा पसीना बहाने वाले मजदूर से पुछो की पानी क्या चीज है ।

रिश्तों का मतलब उन्हे क्या मालूम जो अक्सर रिश्ते बनाते और बिखेरते हैं,
स्टेशन पे भीख माँगते एक अनाथ बच्चे से पुछो कि अपनापन क्या चीज है ।

Sunday, July 10, 2011

अवतार: नन्ही-सी देवी का


नन्ही-सी देवी ने अवतार धर लिया,
मेरे मन मष्तिस्क को निसार कर दिया;
खुशियों की आज मेरी न सीमा है कोई,
बगिया को आज मेरे गुलजार कर दिया ।

सबको हँसी की सौगात देन आई,
दिल को एक सुन्दर जज्बात देने आई;
आना उसका सुखद है हम सबके लिए,
रत्नों के संग्रह में आफताब देने आई ।

जीवन के मुकुट में आज रत्न जड़ गया,
चलते-चलते रास्ता एक सोपान चढ़ गया;
"दीप" करे आभार जिसने दिया ये उपहार,
मेरे हृदय का आकार थोड़ा और बढ़ गया ।

Wednesday, July 6, 2011

कि मैं साथ हूँ

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ,
रहेंगी खुशियाँ पास
कि मैं साथ हूँ ।

करना मेरा विश्वास
कि मैं साथ हूँ,
न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

गम का बादल तुझपे कभी छाने नहीं दुँगा,
कमल-सा ये चेहरा मुर्झाने नहीं दुँगा ।
मुस्कान आयेगी रास
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

साथ ले चलुँगा तुझे, कभी खोने नहीं दुँगा,
टूट भी जाऊँ मैं भले, तुझे रोने नहीं दुँगा ।
रखुँगा तेरा आस
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

एक भी स्वप्न आँखों का कभी टूटने नहीं दुँगा,
जिंदगी की दौड़ में पीछे छुटने नहीं दुँगा ।
रहोगे तुम खाश
कि मैं साथ हूँ,

न हो तू उदास
कि मैं साथ हूँ ।

Saturday, July 2, 2011

गूंजेगी मीठी किलकारियाँ

मेरे घर गूंजेगी अब मीठी किलकारियाँ,
वो रुदन और क्रंदन अब अकसर सुनाई देगा |

खुशियों की भेंट लेकर कोई तैयार है पड़ा,
देवी कदम रखेगी या कोई देवदूत दिखाई देगा |

बगिया में मनके पुष्प खिलने है वाला,
महक उसका जीवन को नयी ऊंचाई देगा |

कोई कह रहा बालक, कोई बालिका है कहता,
पर एहसास उसके आने का मन को तरुनाई देगा |

हर अपना मेरा बेसब्र हो बाट जोह रहा,
गोद में कोई नया जाने कब अंगडाई लेगा |

माता-पिता, भाई-बहन प्रफुल्लित है बड़े,
उसके लिए प्रतीक्षा भी दिल को मिठाई देगा |

आभार है उनको जो उसे लाने है वाली,
ममता के छाँव में उनके वो जम्हाई लेगा |

हर्षित “दीप” बार-बार कहता है रब से,
कुशल मंगल आगमन की ये हृदय दुहाई देगा |

Thursday, June 30, 2011

चवन्नी की विदाई

( मित्रो, सुना है आज से अधिकारिक तौर पे चवन्नी का अस्तित्व ख़त्म कर दिया जायेगा | इसी बात पे मैंने अपनी ये कविता लिखी है | कृपया अपनी राय रखें |)

जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है,
तुझको रुख्सत करने वाली और कोई नही महँगाई है ।

देश से तेरा वजूद आज मिटने को है आया,
तुझपे भी समय का ये कोप है छाया |

पहला सिक्का बनके अठन्नी आज इठलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

मोल तेरा आज यहाँ रहा नहीं कुछ,
महंगाई की भेंट चढ़ सहा बहुत कुछ |

दस पैसा कबका गया, आज तेरी बारी आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

गरीबों और बच्चों की एक चाहत थी तुम,
दर-ब-दर भटकती, फिर भी राहत थी तुम |

कहने वाले कहते हैं, आर्थिक तरक्की आई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

इस कृतघ्न समाज से विदाई शायद खुशनशीबी है तुम्हारी,
तुझको इस कदर भूलना शायद बदनशीबी है हमारी |

तेरी हंसी आज इस देश में कुम्भलाई है,
जा चवन्नी जा ! आज तेरी विदाई है |

Tuesday, June 28, 2011

दर्द-ए-ईश्क

दर्द-ए-ईश्क पत्थर को भी रुलाता है ऐ "दीप",
हर शख्स किसी न किसी के प्यार में खोया होगा;
यूँ ही नहीं गिरा करती हैं ओंस की बुँदे,
आसमान भी शायद किसी के गम मे रोया होगा ।

चकोर के दिल में भी उठती होगी चाँद के लिए हुक,
मयूर ने भी घटा संग प्रेम का बीज बोया होगा;
पत्थर दिल कहते हैं कि आँसू नहीं आते,
पर उसने भी किसी की याद मे आँख भिंगोया होगा ।

नदियों ने भी सौंपी होंगी सागर को ख्वाहिशे,
पौधे ने भी लताओ संग सपना संजोया होगा;
कभी खुशी तो कभी गम के आँसू देता ये दर्द,
इस दर्द को भी सबने सिद्दत से जीवन मे पिरोया होगा ।

Saturday, June 25, 2011

महँगाई से मोहब्बत

आज हर तरफ है छाई महँगाई,
हर एक के उपर आज आफत है आई,
महँगाई में ही सर्वोच्चता का दीदार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

हर किसी के होठों पे बस इसका नाम है,
महँगाई खाश है बाकि सब आम है,
महँगाई के बिना चल पाना दुस्वार हो गया,
ये देख के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

सरकार के नीति का ही कुछ गोलमाल है,
लफड़ा करुँ तो ये अपने ईज्जत का सवाल है,
हाथ खड़े करके ही अपना जीवन साकार हो गया,
इसलिए तो महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

परेशान तो हैं क्योंकि सबके बढ़ते दाम हैं,
पर क्या करें हम तो एक इंसान आम हैं,
सी नहीं सकता इसलिए जख्मों पे निसार हो गया,
ये सोच के महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

सबके लिए मेरे पास एक राय है,
अगर आपके खर्च है ज्यादा और कम आय है,
आप भी कहो महँगाई का सबको खुमार हो गया,
आज से महँगाई से मुझे प्यार हो गया ।

Friday, June 24, 2011

मजा कुछ और है !!

किताबें तो पढ़ के बहुत आनन्द आता है,
पर आँखे बंद कर मन की किताब पढ़ने का मजा कुछ और है ।

बाहर तो लोग हजारों से मिल लेते हैं,
पर अंतरआत्मा से साक्षात्कार का मजा कुछ और है ।

रोशनी का लुत्फ तो बहुतेरे उठाते हैं,
पर अंधेरे में स्वयं की पहचान करने का मजा कुछ और है ।

बाहरी सुन्दरता को देख हर कोई है मुस्कुरा उठता,
पर भीतरी सौन्दर्य को परख लेने का मजा कुछ और है ।

औरों पे अट्टाहस तो अकसर ही करते हम,
पर अपने आप पे थोड़ा हँस लेने का मजा कुछ और है ।

अपनों का सहायक बन पुलकित होते हम,
पर एक असहाय को सहाय देने का मजा कुछ और है ।

नींद में तो ख्वाबों का पुलिन्दा सा बँध जाता है,
पर जागती आँखों से स्वप्न देख लेने का मजा कुछ और है ।

प्रेम रस से सराबोर प्रेमी-प्रेमिका हैं फिरते,
पर अपने ईष्टदेव से भक्ति पुर्ण प्रेम करने का मजा कुछ और है ।

अपनी तो हजारों ईच्छा पूरी कर लेते हैं हम,
पर माँ-बाप के अरमान पूरा कर देने का मजा कुछ और है ।

अपनी जरुरत के लिए जंगल का जंगल उड़ा देते हैं हम,
पर प्यार से एक पेड़ लगा जाने का मजा कुछ और है ।

भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हम,
पर हृदय को भव्य बना लेने का मजा कुछ और है ।

जिन्दगी की अमिट साख पे मर ही मिटते हम,
पर जिन्दगी को जिन्दगी बना लेने का मजा कुछ और है ।

Monday, June 20, 2011

कवि हृदय मेरा

बचपन में जब नासमझ था,
काव्य का मुझको क्या समझ था,
गुप्त संसार में पड़ा हुआ था,
ये कवि हृदय मेरा ।

बीत गए अनमोल पल,
खेल-कूद में गया निकल,
बाल मन में जाग न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

तब भी तो मै ठाठ में था,
शायद कक्षा आठ में था,
एक शख्स ने जगा दिया,
सुप्त कवि हृदय मेरा ।

हिन्दी के थे शिक्षक सख्त,
नाम था उनका राम जी भक्त,
पानी डाल वे सींच गए,
ये कवि हृदय मेरा ।

फिर तो जैसे ललक उठी,
भावनाएँ भी धधक उठी,
झर-झर काव्य बहाने लगा,
ये कवि हृदय मेरा ।

समय के साथ मैं चलता रहा,
पढ़ाई के साथ ही पलता रहा,
पर धीमे-धीमे धीमा पड़ा,
ये कवि हृदय मेरा ।

दिल में तो एक ओज-सा था,
पर पढ़ाई का बोझ-सा था,
शिक्षा संग न चल पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

उच्च शिक्षा की बारी आई,
अभियंत्रण में हाथ लगाई,
किताबों बीच ही दबा रहा,
ये कवि हृदय मेरा ।

सेमेस्टरों में धँसा रहा,
परीक्षाओं में फँसा रहा,
साहित्य पटल पर चमक न पाया,
ये कवि हृदय मेरा ।

अभियंता बन निहाल हुआ,
शादी कर खुशहाल हुआ,
पर उपेक्षित रह गया,
ये कवि हृदय मेरा ।

जिम्मेदारी आज बुझ रहा हूँ,
समय की कमी से जूझ रहा हूँ,
पर आशा है सुप्त न रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

घर और नौकरी निभाना है,
जिन्दगी को भी भुनाना है,
सब के साथ बस जागृत रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

रचता रहूँ है कामना,
लेखनी को दूँ आराम ना,
पुष्ट और संतुष्ट रहे,
ये कवि हृदय मेरा ।

नहीं हूँ मैं कवि,
पर दिल में काव्य की है छवि,
भावनाओं संग छलक है पड़ता,
ये कवि हृदय मेरा ।

Thursday, June 16, 2011

शादी की सालगिराह मुबारक हो

'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।

इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )

(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)

Saturday, June 11, 2011

फूलों की तरह हँसो

फूलों की तरह हँसो, औरों की मुस्कान तू बन,
धन से तुम गरीब ही सही, दिल से ही धनवान तू बन ।

रात देख भयभीत न हो, सुबह होगी इंतजार तो कर,
दुनिया तुझसे प्यार करेगी,औरों से तू प्यार तो कर ।

पर्वत से भी राह मिलेगा, थक कर बस यूँ हार न तू,
तलाश ही ले तू अपनी मंजिल, मन को अपने मार न तू ।

जीत तुझको भी मिलेगी, राह पे अपने चल निकल,
"दीप" दिखा तू औरों को, राह भी तेरा हो उज्ज्वल ।

Thursday, June 9, 2011

उसने एहसान कर दिया

आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया,
मैं तो था एक अदना प्राणी उसने एक सुलझा इंसान कर दिया ।

सुबह से लेके शाम तक मेरे ही फिक्र में रहती वो,
गम को जीवन में चंद लम्हों का मेहमान कर दिया ।

भटक रहा था नभ में बिना किसी लक्ष्य को लिए,
लक्ष्य देकर मुझको कर्म को मेरा ईमान कर दिया ।

गुलजार कर दिया उसने मेरे हर एक लम्हे को,
हर एक पल खुशियों से मेरा मिलान कर दिया ।

हर एक जिंदगी में मैं उससे ही मिलता रहुँ,
मेरी जिंदगी में वो रहे रब से ये एलान कर दिया ।

भगवान का शुक्रगुजार हूँ वो मुझको है मिली,
आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया ।

Friday, June 3, 2011

आज के लोग

नकाब पे नकाब लगाते हैं लोग,
अपनी असल पहचान छुपाते हैं लोग,
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
और बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।

जाने कितने ही रिश्ते बनाते हैं लोग,
पर कितने रिश्ते निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे लोग होशियार हो चले,
काम निकल जाने पे भूल जाते हैं लोग ।

वादे पे वादे किये जाते हैं लोग,
उन वादों से अकसर मुकर जाते हैं लोग,
भरोसा आखिर करे तो किसपे ऐ "दीप",
भरोसे तो अकसर तोड़ जाते हैं लोग ।

इंसानों को ही अकसर सताते हैं लोग,
दुश्मनी भी शान से निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे इंसान ही इंसान का दुश्मन,
इंसान से शैतान भी बन जाते हैं लोग ।

अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
पर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता नहीं ऐ "दीप",
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।

प्रकृति की कृति बदल जाते हैं लोग,
भगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ताक में रखकर मानवता को "दीप",
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।

Sunday, May 29, 2011

इंसान तू खुद को पहचान

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं ।

पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।

खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान की नियति का कद्रदान हूँ ।

जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।

मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये सुरुर है ।

अपनों का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण हैं ।

हर किसी से किसी न किसी को आस है,
इसलिए हर इंसान अपने आप में खास है ।


बड़ा वो नहीं जिसके पास बहुत ज्ञान है,
महान तो वो है जिसे खुद की पहचान है ।

(शीर्षक का सुझाव-पूनम श्रीवास्तव)

Friday, May 27, 2011

नेता बन जाते तो...

संसद में हंगामा हम भी खुब मचाते,
उद्घाटन समारोह में हम भी खुब जाते,
हम तो अंतर्मुखी बन घर में बैठ गए,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

भाषणबाजी में दो कदम आगे बढ़ जाते,
आरोप प्रत्यारोप हम भी खुब लगाते,
माँ ने कहा बेटा अच्छा इंसान बन,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

झुठे वादे कर मूर्ख हम भी खुब बनाते,
चुनाव जीतकर जनता के पास भी न जाते,
गुरुजी ने सिखाया था झुठ नहीं बोलना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

विदेश भ्रमण का संयोग हम भी कुछ लगाते,
बाहुबलि बन हर तरफ रौब हम जमाते,
जमीर ने कहा सदा भला काम करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

लाल बत्ती लगा गाड़ी हम भी खुब दौड़ाते,
बड़े-बड़े अफसरों को हम भी पीट आते,
अंतर्मन ने कहा कभी दिखावा नहीं करना,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

स्विस बैंक में खाता हम भी एक खुलवाते,
काली कमाई को उसमे आराम से छुपाते,
'काला धन राख समान' सीखा है हमने,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

दो-एक बार भले जेल भी हम जाते,
पैसों के बल पे अपनी ईज्जत हम बचाते,
पिताश्री ने बेटे को इंजीनियर बना दिया,
वर्ना नेता बन जाते तो हम भी खुब कमाते ।

Tuesday, May 24, 2011

हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता

राह-ए-जिन्दगी में करोड़ों से होती है मुलाकात,
ऐ "दीप" हर शख्स दिल का सहारा नहीं होता ।
समन्दर में चाहे जिस ओर मोड़ लो कश्ती,
अफसोस! हर तरफ एक किनारा नहीं होता ।
चंद लोग हर कदम पे चलते साथ-साथ,
सब लोग के मरजी पे वश हमारा नहीं होता ।
चंद लोग ही सफर को आसाँ हैं करते,
हर कोई दिल-ए-गुलजार तुम्हारा नहीं होता ।
सफर में गर कोई छोड़ देता है हाथ,
चंद साथ के छुटने से कोई बेसहारा नहीं होता ।
निकाल लो चाहे झील से कुछ पानी,
उस पानी के लिए झील कभी बेजारा नहीं होता ।

Wednesday, May 18, 2011

भ्रष्ट पच्चीसा

                भ्रष्ट समाज का हाल मैं,       तुमको रहा सुनाय |
                भूल भयो तो भ्रात, मित्र, झापड़ दियो लगाय    ||

                ज्यों सुरसा का मुख बढे,      वैसो फैलत जाय |
                हनुमान की पूंछ सम, अंत न इसका भेन्ताय ||

देश की दुर्गत हाल भई है      | जनता-जन बेहाल भई है ||
बसते थे संत नित हितकारी | आज पनपते भ्रष्टाचारी |१|

राजनीति व नेता, अफसर    | ढूंढ़ रहे सब अपना अवसर    ||
मधुशाला में जाम ज्यों होता | व्यभिचार अब आम यूँ होता |२|

ज्यों बालक फुसलाना होता | वैसा घुस खिलाना होता        ||
एक कर्म नहीं आप ही होता | बिन पैसा सब शाप ही होता |३|

काम चाहिए अगर फटाफट    | जेब भरो तुम यहाँ झटाझट ||
बिन पैसा पानी भी न मिलता | पैसों से सरकार भी चलता |४|

जब हो सब यूँ भ्रष्टाचारी      | तब पैसों की महिमा प्यारी ||
सोकर चलती तंत्र सरकारी | गर्व करो ये राज हमारी     |५|

लोकपाल बिल है लटकाई | कई की इससे सांशत आई ||
देशभक्त बदनाम हो चलते | निजद्रोही निज शान से फलते |६|

गाँधी भी निज नेत्र भर लेते | गर देश दशा दर्शन कर लेते ||
कह जाते मैं नहीं हूँ बापू      | भला होई तुम मार दो चाकू |७|

ऐसे न था सोच हमारा      | देश चला किस राह तुम्हारा ||
यह नहीं सपनों का भारत | खो गया अपनों का भारत |८|

राज्य, देश सब एक हाल है | भ्रष्टों का यह भेड़ चाल है   ||
है हर महकमा बेसहारा      | भ्रष्ट ने सबमे सेंध है मारा |९|

फ़ैल चूका विकराल रूप है | ज्यों फैला चहुँओर धुप है      ||
जस जेठ की गर्मी होती    | तस तापस ये भ्रष्ट की नीति |१०|

जो समझे ईमान धर्म जैसा | वो मेमना श्वानों मध्य जैसा ||
सत्य मार्ग पे जो चल जाये | जग में हंसी पात्र बन जाये  |११|

सच्चों का यहाँ एक न चलता   | गश खाकर बस हाथ ही मलता ||
जो ध्रूत चतुर चालाक है बनता | उसका ही संसार फल-फूलता |१२|

अपना है यह देश निराला | चाँद लोगों ने भ्रष्ट कर डाला     ||
लोग स्वार्थी हो रहे नित   | को नहीं समझे औरों का हित |१३|

स्वार्थ ही सबको भ्रष्ट बनाता | स्वार्थ ही सब कुकर्म करता    ||
स्वार्थ है सबके जड़ में व्याप्त | स्वार्थ ख़तम हर भ्रष्ट समाप्त |१४|

महंगाई का अलग तमाशा   | बीस कमाओ खर्च पचासा ||
घर का बजट बिगड़ता जाये | चीर निद्रा में राजा धाये  |१५||

महंगाई अम्बर को छूता    | धन, साधन कुछ नहीं अछूता ||
जन-जन ही बेहाल हुआ है | दो-एक मालामाल हुआ है    |१६|

अब धन निर्धन क्या कमाए | क्या खिलाये क्या वह खाए           ||
महंगाई ने कमर है तोड़ी      | आम जन की नस-नस है मरोड़ी |१७|

सरकारी धन अधर में लटका | बीच-बिचौलों ने सब झटका ||
एक नीति न धरा पर आई     | कागज में होती है कमाई   |१८|

सरकारी हैं बहुत योजना        | सब बस अफसर के भोजना  ||
जो नित नीति के योग लगाते | स्वयं ही उसका भोग लगाते |१९|

मन मानस पर ढूंढ है छाई       | देश को खुद है उबकी आई            ||
स्वयं समाज है जाल में उलझा | राजनीति एक खेल अन-सुलझा |२०|

पढ़ ले जो यह भ्रष्ट पचीसा | निज मन नाचे मृग मरीचा   ||
भ्रष्टाचार जो मिटाने जाई        | खुद अपनी लुटिया है डूबाई |२१|

मत समझो इसे लिट्टी चोखा | दिन दुनिया का खेल अनोखा  ||
गहराई में उतर चूका यह        | रक्त-रक्त तक समा चूका यह |२२|

जम चूका है बा यह बीमारी | फ़ैल रहा बनके महामारी        ||
कहीं तो है यह भूल हमारी   | जिम्मेदारी लें हम सब सारी |२३|

जन-जन को ही बदलना होगा   | हर भारतीय को सुधरना होगा ||
सब अपना चित निर्मल कर लें | गंगा सम मन निर्मल कर लें |२४|

भ्रष्टाचार न हो नाग हमारा    | ऐसे देश जाये जाग हमारा        ||
कहे "प्रदीप" ये राग हमारा   | स्वच्छ समाज हो भाग हमारा |२५|

            सुन्दर स्वप्न देख लिया, हो भ्रष्टाचार विमुख        |
            देश हमारा यों रहे ज्यों,   गाँधी स्वप्न सन्मुख ||

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-प्रदीप