मेरे साथी:-

Thursday, June 16, 2011

शादी की सालगिराह मुबारक हो

'शा'श्वत है इस जग में आपका प्रम,
'दी'पक के समान उज्ज्वल भी है;
'की'मत आँकना है अति दुष्कर,
'सा'मर्थ्य तो इसमे प्रबल ही है ।
'ल'हू के रग-रग में है व्याप्त,
'गि'रि सम हरदम अटल भी है ;
'रा'त्रि के धुप्प तिमिर में भी,
'ह'मेशा चन्द्र सम धवल भी है ।
'मु'मकिन नहीं यह राह बिन आपके,
'बा'तों से सिर्फ कुछ कह नहीं सकता;
'र'हे ये साथ यूँ ही बना हुआ,
'क'लम से ज्यादा कुछ लिख नहीं सकता ।
'हो' ऐसा कि यह दिन यूँ ही हर बार आता रहे ।

इस कविता के प्रत्येक पंक्ति का पहला अक्षर मिलाने पर-"शादी की सालगिराह मुबारक हो" )

(यह कविता हमारी शादी की वर्षगाँठ पर मेरी जीवन साथी 'मानसी' को समर्पित ।)

Saturday, June 11, 2011

फूलों की तरह हँसो

फूलों की तरह हँसो, औरों की मुस्कान तू बन,
धन से तुम गरीब ही सही, दिल से ही धनवान तू बन ।

रात देख भयभीत न हो, सुबह होगी इंतजार तो कर,
दुनिया तुझसे प्यार करेगी,औरों से तू प्यार तो कर ।

पर्वत से भी राह मिलेगा, थक कर बस यूँ हार न तू,
तलाश ही ले तू अपनी मंजिल, मन को अपने मार न तू ।

जीत तुझको भी मिलेगी, राह पे अपने चल निकल,
"दीप" दिखा तू औरों को, राह भी तेरा हो उज्ज्वल ।

Thursday, June 9, 2011

उसने एहसान कर दिया

आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया,
मैं तो था एक अदना प्राणी उसने एक सुलझा इंसान कर दिया ।

सुबह से लेके शाम तक मेरे ही फिक्र में रहती वो,
गम को जीवन में चंद लम्हों का मेहमान कर दिया ।

भटक रहा था नभ में बिना किसी लक्ष्य को लिए,
लक्ष्य देकर मुझको कर्म को मेरा ईमान कर दिया ।

गुलजार कर दिया उसने मेरे हर एक लम्हे को,
हर एक पल खुशियों से मेरा मिलान कर दिया ।

हर एक जिंदगी में मैं उससे ही मिलता रहुँ,
मेरी जिंदगी में वो रहे रब से ये एलान कर दिया ।

भगवान का शुक्रगुजार हूँ वो मुझको है मिली,
आकर मेरी जिंदगी में उसने एक एहसान कर दिया ।

Friday, June 3, 2011

आज के लोग

नकाब पे नकाब लगाते हैं लोग,
अपनी असल पहचान छुपाते हैं लोग,
अंदर से वो होते कुछ और ऐ "दीप",
और बाहर से कुछ और दिखाते हैं लोग ।

जाने कितने ही रिश्ते बनाते हैं लोग,
पर कितने रिश्ते निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे लोग होशियार हो चले,
काम निकल जाने पे भूल जाते हैं लोग ।

वादे पे वादे किये जाते हैं लोग,
उन वादों से अकसर मुकर जाते हैं लोग,
भरोसा आखिर करे तो किसपे ऐ "दीप",
भरोसे तो अकसर तोड़ जाते हैं लोग ।

इंसानों को ही अकसर सताते हैं लोग,
दुश्मनी भी शान से निभाते हैं लोग,
"दीप" कहे इंसान ही इंसान का दुश्मन,
इंसान से शैतान भी बन जाते हैं लोग ।

अपनी गलतियाँ अकसर छुपाते हैं लोग,
पर औरों पे ऊँगली उठाते हैं लोग,
अपने गिरेबान में कोई झाँकता नहीं ऐ "दीप",
और गलतियों का पुलिंदा बना जाते हैं लोग ।

प्रकृति की कृति बदल जाते हैं लोग,
भगवान को धर्मों में बाँट जाते हैं लोग,
ताक में रखकर मानवता को "दीप",
खुद को ही ईश्वर समझ जाते हैं लोग ।

Sunday, May 29, 2011

इंसान तू खुद को पहचान

पहचान उनकी होती है ऐ "दीप" जो कि महान हैं,
हम तो बस एक अदना सा इंसान हैं ।

पर हम भी किसी के दिल के बादशाह हैं,
अपनी अलग कायनात के शहंशाह हैं ।

खुश हूँ कि धरातल पर का एक इंसान हूँ,
भगवान की नियति का कद्रदान हूँ ।

जिन्दगी तो कुछ क्षणों की मेहमान है,
सफल वही जो झेलता तूफान है ।

मानव होने का मुझको गुरुर है,
परहितकारी बनूँ ये सुरुर है ।

अपनों का पेट भर लेता हर जीवित जान है,
मनुष्य वही पर अश्रु में जिसके प्राण हैं ।

हर किसी से किसी न किसी को आस है,
इसलिए हर इंसान अपने आप में खास है ।


बड़ा वो नहीं जिसके पास बहुत ज्ञान है,
महान तो वो है जिसे खुद की पहचान है ।

(शीर्षक का सुझाव-पूनम श्रीवास्तव)

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