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Thursday, January 20, 2011

क्यों मिलती नहीं है मौत भी

जिंदगी भी यहाँ साँस लेने को तरसती है,
खुशी भी खुद नाखुश है,
गरीबों को महँगाई मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

हौसले वाले भी पस्त पड़े हैं,
साहस भी भयभीत है,
हर राह बड़ा ही दुष्कर है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

जीत स्वयं हारा खड़ा है,
सरकार ही लाचार है,
हर तरफ से बस भय मिला है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

महँगाई डायन बनी हुई है,
सुकून ही स्वयं बेचैन है,
दो रोटी गर मिलती नहीं है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

व्यवस्था ही अव्यवस्थ है,
स्वस्थता पूरी अस्वस्थ है,
मौसम की भी मार लगी है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

आँसुओं का सागर भी सुखा पड़ा है,
लाश बनके सब चल रहे हैं,
जिंदगी गर मिलती नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

गरीबी भी शर्मिंदा है,
लोग किसी तरह जिंदा हैं,
हरपल की असुरक्षा मिली है,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

कोई नहीं जो समस्या देखे,
सब अपना हित साधते है,
आम जन को गर राहत नहीं तो,
क्यों मिलती नहीं है मौत भी।

Wednesday, January 19, 2011

एक अलग दुनिया

सोचता हूँ बस जाए अपनी एक अलग दुनिया,
जहाँ बस अपने हो,प्रेम हो,सौहार्द हो।
न कोई त्रस्त हो न कोई भ्रष्ट हो,
न कोई दगा दे,न कोई सजा दे,
न कोई नेता न राजनीति हो,
न कोई पुलिस न हो कोई कानून,
अपनत्व की धारा हो,
सब एक दूसरे का सहारा हो।
अपनो का साथ हो, सिर में बड़ों का हाथ हो।
उज्ज्वलता ही चारों ओर हो, पँछियों का कर्णप्रिय शोर हो,
जिन्दगी खुशहाल रहे, हर आशायें बहाल रहे;
संजीदगी से जीवन-यापन करे हर कोई,
बैर-वैमनस्य का कहीं कोई नाम न हो।
वह दुनिया हो, हसीन वह दुनिया हो मलिन,
ऐसे ही हो मेरी एक अलग दुनिया।

Saturday, January 8, 2011

पहली मुलाकात

( अपनी धर्म पत्नी, अपने प्यार के साथ पहली मुलाकात के वास्तविक पल को मैंने कविता के रूप में लिखने कि कोशिश कि है, पता नहीं मेरी कोशिश कहाँ तक सफल हुई है  )

दिल में बसी थी एक सूरत, होठों पे एक नाम था;
वास्तविकता से कुछ परे नहीं था, फिर भी मैं अनजान था |

मन में कई उन्माद थे, दिल में भी एक जूनून था;
ऑंखें दो से चार कब होंगी, सोच कर न सुकून था |

बस एक छवि है जिसकी देखि, वास्तविकता उसकी क्या होगी;
कुछ खुशियाँ तो कुछ उलझन भी थे, प्रतिक्रिया उसकी क्या होगी |

कशमकश में ही रात कटी थी, आने वाली सौगात जो थी;
पल-पल भी मुश्किल हो चल था, होने वाली मुलाक़ात जो थी |

शमाँ भी कुछ अजीब-सा था, जिंदगियों का वहां झोल था;
रेलगाड़ियों का ही शोर था, वह स्टेशन का माहौल था |

सुबह का खुशनुमा वक़्त था, रंगीला मौसम चहुँ और था;
तनहाइयाँ नहीं, बस भीड़ थी, पर न जाने वो कीस ओर था |

धड़कने तो तेज उधर भी होंगी, लब भी उनके फड़फड़ाते होंगें;
पहली मुलाकात ये कैसी होगी, सोच के वो भी घबराते होंगे |

ये सोच के मैं दिल ही दिल में, दिल को तसल्ली देता था;
घबराहट कहीं सामने न आये, धडकनों को यूं समझाता था |

वो घडी तब आ ही गयी, चितचोर थे जो सामने आते;
अब तक जिसे बस दिल में देखा, वो आँखों के सामने आते |

धडकनों को तेज होना ही था, मन भी तब कुछ घबराया;
होठों पे मुस्कराहट थी आई, पहली मुलाकात का वक़्त जब आये |

हजारों के बीच जब उनको देखा, हम वही बस ठिठक से गए;
उनकी नज़रें भी मुझपे पड़ी, ओर उनके कदम भी रुक से गए |

नज़रों से नज़र का सामना जब हुआ, दिल में अजीब एक हुक सा लगा;
हजारों नहीं, बस हम ओर वो थे, दो पल के लिए कुछ ऐसा लगा |

उन भूरी आँखों में बस गहराई थी, उन गहराइयों में बस प्यार था;
फूलों से भी कोमल लब थे, मुस्कान का उनमे भण्डार था |

मुस्कुराता हुआ वो भोला चेहरा, जिसे अब तक था दिल में छुपाया;
जो कुछ भी था हमने सोचा, दिल ने तो कुछ बढ़कर पाया |

हाथों का स्पर्श जब हुआ, खुशियों के बादल छा गए;
नज़रें उनकी देख कर लगा, प्यार के बरसात आ गए |

कानों कि प्रतीक्षा भी टूटी, लब भी उनके खुल ही गए;
दिल कि बात को दिल ही दिल में, वो हमसे सब बोल ही गए |

थोड़ी -सी शर्म, थोड़ी-सी हया, घबराहट में उनके वो बोझिल कदम;
साथ-साथ हम चल ही पड़े थे, ये साथ निभाना है हरदम |

दिल से दिल का था रिश्ता पुराना, आँखों से आँखों कि थी पहली मुलाकात;
बातें तो कुछ खाश ना हुई, पर दिल ने किये हजारों बात |

ऐसे ही कुछ अजीब-सी थी, प्यार से वो पहली मुलाकात;
खुशियों का सागर छलका था, मचले थे दिल के जज्बात |

खाश न होकर भी खाश थी, पहली मुलाकात का वो पल;
जिंदगी के हर एक मोड़ पर, याद आएगा वो हर पल |

Friday, January 7, 2011

आशातीत

तेज हवा के झोंको में बैठा, जब पत्तियों को इनके साथ उड़ते देखता हूँ;
सोचता हूँ काश !
पत्तियों की तरह हवा के साथ मैं भी उड़ पाता |

चांदनी रात में खामोश बैठा, जब धरती को रौशनी में नहाये देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
ऐसी ही धवल उज्ज्वलता मैं भी सबको दे पाता |

राहों में जब चलते-चलते वृक्षों को मदमस्त हो लहराते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सभी ग़मों को भूल ख़ुशी में, मैं भी ऐसे ही लहरा पाता |

राह के अँधेरे में जब आसमान में तारों को टिमटिमाते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
इस बोझिल जिंदगी का चोला उतार, मैं भी आसमान में टिमटिमा पाता |

सोती-जागती आँखों से जब, कई सुनहरे और चल सपने देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
सपनों कि मानिंद जिंदगी को भी, ऐसे ही साकार कर पाता |

नज़रों के सामने झुरमुठों में, पक्षियों को जब किलोलें करते देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
अपना भी जीवन इनकी तरह, चंद लम्हों का खुशियों से भरा हो पाता |

निर्जीव-सा पड़ा हुआ, आँखों को मूँद सुन्या में देखता हूँ,
सोचता हूँ काश !
खुद में भी ऐसी शक्ति होती कि आशातीत कि आशा कभी न कर पाता |

वो आँखें

वो आँखें झील की जैसी, प्यार ही प्यार है जिसमे,
अपनत्व की उमड़ती धारा, उसमे ही तकदीर नज़र आती है |

भोली-भाली सी आँखें, बोझिल होती सपनो के भार से,
प्यार के जल की छलक जिसमे, उसमे ही तस्वीर नज़र आती है |

आकान्छाओं से भरी वो आँखें, लेकर तमन्नाओ का सागर,
चाहत पूरा करने की जिसमे, उसमे कल्पना की ज़ंजीर नज़र आती है |

मोतियाँ ढ़ोती वो भीगी आँखें, कुछ कहने को उतावली-सी,
दिल की बातों का पुलिंदा लिए, उसमे इशारों की तफ़सीर नज़र आती है |

खुलती बंद होती सी पलकें, होठों की मुस्कराहट को समेटे,
खुशियों को पाकर खुश होती, उसमे अपनों की तहरीर नज़र आती है |

जीवन रस से भरी आँखें, देखकर ही जिसे जीवन मिल जाये,
जीने की चाहत-सी जगाती, उसके बिना जिंदगी गैरहाज़िर नज़र आती है |

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-प्रदीप